“देवा के मेले में सियासत की शम्मा जल उठी,
योगी राज में कांग्रेस की क़िस्मत पलट उठी।”
योगी राज में कांग्रेस की क़िस्मत पलट उठी।”
तहलका टुडे टीम/सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा
बाराबंकी :देवा शरीफ की रूहानी ज़मीन पर हर साल उर्स के मौके पर लगने वाला ऐतिहासिक देवा मेला अपने शेर-ओ-शायरी और सूफ़ियाना रंग के लिए मशहूर है।
लेकिन इस बार चर्चा शेरो-शायरी की कम और कांग्रेस के नेताओं की दावत व स्वागत की ज्यादा रही।
101वें सालाना उर्स पर आयोजित मुशायरे की सदारत कांग्रेस नेता इमरान किदवई ने की और मंच को रौशन किया मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, राज्यसभा सांसद और विवादित बयानों के शहंशाह दिग्विजय सिंह ने।
विशिष्ट अतिथि बने फिल्मकार मुजफ्फर अली, और आयोजन की कमान रही चौधरी तालिब नज़ीब कोकब साहब के हाथों में।कमेटी और प्रशासन तमाशबीन था।
मंच पर कांग्रेस का जलवा
शम्मा रोशन करने के लिए जब दिग्विजय सिंह मंच पर आए तो दर्शकों की आँखों में वही सवाल था –
“ये मेला है या कांग्रेस पुनरुद्धार समिति?”
कई लोग तो तालियाँ बजाते-बजाते सोचने लगे कि योगी सरकार के संरक्षण वाले इस मेले में कांग्रेसियों का इस तरह मंच पर अभिनंदन होना क्या आने वाले चुनावों का “ट्रेलर” है?
समाजवादी तो लोकल हैं…
हाँ, पूर्व मंत्री हर दिल अजीज नेता अरविंद सिंह गोप की मौजूदगी पर किसी को हैरत नहीं हुई। लोकल नेता हैं, समाजवादी पार्टी से हैं, रहना उनका हक़ भी है और हक़ीक़त भी।
लेकिन दिग्विजय सिंह का इस मंच पर सजी-धजी एंट्री, फूल-मालाओं और सम्मान के साथ?
बस, यहीं से गुफ़्तगू की दिशा बदल गई।
जनता का मज़ाक
पीछे खड़े एक शख़्स ने तंज़ मारा –
“लगता है कांग्रेस को चुनावी पोस्टर से ज्यादा अब कव्वालियों और मुशायरों में जगह मिल रही है।”
दूसरे ने कहा –
“दिग्विजय सिंह साहब यहाँ आकर शेर-ओ-शायरी सुन रहे हैं, वरना इनकी सियासत तो खुद ही एक लंबा व्यंग्य है।”
तीसरे ने जोड़ा –
“योगी सरकार में कांग्रेस का सरकारी मंच पर स्वागत? भाई, अब तो गठबंधन की फुलझड़ियाँ मेले में ही फूटने लगीं।”
भाजपा खेमे की बेचैनी
भाजपा समर्थकों की हालत देखकर ग़ालिब का शेर याद आया –
“दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यों…”
भक्त बोले – “ये कैसा दौर है कि हमारे योगी राज में कांग्रेस के नेताजी स्टेज पर बैठकर तालियाँ बटोर रहे हैं।”
कांग्रेस की ख़ुशी
कांग्रेसियों की तो जैसे लॉटरी लग गई।
एक कार्यकर्ता बोला – “पहली बार लग रहा है कि हम सिर्फ इतिहास की किताबों तक सीमित नहीं, सरकारी मंच पर भी वजूद रखते हैं।”
दूसरा बोला – “भाई, ये तो 2025 का सबसे बड़ा ‘कमबैक शो’ है।”
देवा शरीफ का ये मुशायरा शेर-ओ-शायरी से ज्यादा सियासी शायरी का मंच बन गया।
जगह-जगह चर्चा यही रही –
“योगी राज में सरकारी मेले के मंच पर दिग्विजय सिंह का अभिनंदन… सियासत की किताब में इसे एक नए अध्याय के तौर पर लिखा जाएगा।”
अब लोग कह रहे हैं –
*”देवा शरीफ का मेला हमेशा सूफ़ियाना इश्क़ और मोहब्बत का पैग़ाम देता था… लेकिन इस बार मुशायरे ने ये भी साबित कर दिया कि सियासत में कोई स्थायी दुश्मनी नहीं, सिर्फ़ स्थायी कुर्सियाँ होती हैं।*