तहलका टुडे टीम/हसनैन मुस्तफा,सदाचारी लाला उमेश चंद्र श्रीवास्तव,मोहम्मद वसीक
बाराबंकी, 1 सितंबर। आठवीं अलम के मौके पर बाराबंकी की गलियां “लब्बैक या हुसैन” की गूंज और नोहाख़ानी से गूँज उठीं। रोते आसमान और काले कपड़े पहने आज़ादार, अपने चेहरे पर ग़म और आंखों में आंसू लिए, इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद कर रहे थे।
जुलूस मौलाना गुलाम अस्करी हाल से सुबह 7:45 बजे शुरू हुआ। दिल्ली से आए मौलाना जिनान असगर मोलाई ने खिताब किया। अलविदाई जुलूस में अन्जुमन गुलामे अस्करी, बाराबंकी के आयोजन में तबर्रुकात अज़ा, अमारी, कजावा, जुलजनाह, शबीहे ताबूत इमाम हसन अस्करी (अ.) और ताजिया, मौला अब्बास का अलम शामिल थे।
जुलूस अपने तय शुदा रास्तों से गुजरते हुए करबला सिविल लाइन पहुँचा, अलविदाई मजलिस खतीब ए अहलेबैत बाकर रिजवी ने किया।
जहां स्थानीय और बाहरी अन्जुमनो ने इमामे ज़माना (अ.स.) को उनके जद का पुरसा पेश किया।
इस अवसर पर कई प्रमुख अन्जुमन भी शामिल हुए, जिनमें अन्जुमन इमामिया, फैजानपुर, अन्जुमन हुसैनी लखनऊ, अन्जुमन सिपाहे मेहदी कानपुर, अन्जुमन जैनुल एवा कदीम रायबरेली, अन्जुमन आरफी बारगाहे हुसैन, अन्जूमन शब्बीरिया कानपुर, अन्जुमन मुहाफिज़े अज़ा सिंगरीसी उन्नाव, अन्जुमन यादगारे हुसैनी नौगांव सादात, अन्जुमन हैदरी मुज़फ़्फरपुर, अन्जुमन गुलदस्ते अज़ा जायस, अन्जुमन इस्लामिया जोगीकोट, अन्जुमन जुल्फिकारे हैदरी कानपुर, अन्जुमन मज़लूमिया गौरी खालसा हरदोई, अन्जुमन अब्बासिया फैज़ाबाद, अन्जुमन सदा-ए-हुसैन बाराबंकी, अन्जुमन सक्का-ए-सकीना हरदोई शामिल थे।
अरविंद सिंह गोप की इंसानियत भरी पहल ने बढ़ाई जुलूस की शोभा
जुलूस के दौरान इंसानियत और भाईचारे की मिसाल तब देखने को मिली जब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री अरविंद कुमार सिंह गोप अपने आवास के पास पहुंचे। उन्होंने जुलूस में शामिल आज़ादारों का गर्मजोशी से स्वागत किया और सबील पर मौजूद लोगों को पानी और जूस वितरित किया।
नेल्सन हॉस्पिटल के सामने आयोजित सबील पर भी उन्होंने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहकर जलपान कराया। अरविंद सिंह गोप ने कर्बला के शहीदों को खिराजे अकीदत अर्पित करते हुए इमाम-ए-ज़माना को श्रद्धांजलि दी और इस साल का आख़िरी सलाम पेश किया।
अरविंद सिंह गोप ने कहा:
“इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की कुर्बानी हमें यह सिखाती है कि इंसाफ़ और इंसानियत की राह कभी कठिन ज़रूर हो सकती है, लेकिन यही राह इंसान को अमर बना देती है।”
इस मौके पर धर्मगुरु मौलाना जवाद अस्करी जैदी ने कहा:
“कर्बला का पैग़ाम मज़हबी सरहदों से परे है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की याद हमें इंसाफ़, सब्र और इंसानियत की हिफाज़त का संदेश देती है। जब इस ग़म में सभी धर्म के लोग शरीक होते हैं, तो यह गंगा-जमुनी तहज़ीब की सबसे बड़ी मिसाल बनती है।”
जुलूस में बड़ी संख्या में शामिल लोगों ने इस जज़्बे का तहेदिल से स्वागत किया।
अलविदाई मजलिस और नव्हाख़्वानी से गूँजी करबला
मौलाना अली अब्बास छपरावी ने भी मजलिस को खिताब किया। करबला सिविल लाइन में ताबूत इमाम हसन अस्करी (अ.), अलम, अमारी और जुलजनाह की ज़ियारत की गई और सभी अन्जुमनों ने इमामे ज़माना (अ.स.) को पुरसा पेश किया।
अलविदाई मजलिस ख़िताब ए अहलेबैत अली अब्बास रिज़वी ने खिताब किया। नौहाख़ान अली मूसा लखनऊ, अन्जुमन जैनुल एवा कदीम रायबरेली, अन्जुमन आरफी बारगाहे हुसैन, अन्जुमन शब्बीरिया कानपुर समेत कई अन्जुमनों ने अपने अंदाज में नव्हा पढ़ा।
कार्यक्रम की समाप्ति पर जहीर जैदी और अन्जुमन गुलाम ए अस्करी के एबाद अस्करी ने सभी उपस्थित लोगों का शुक्रिया अदा किया।
शहरवासियों ने कहा कि जुलूस और मजलिस में शामिल सभी शख्सियतों, अन्जुमनों और आज़ादारों की मौजूदगी ने इस साल के रुखसते अज़ा को और भी यादगार और मार्मिक बना दिया। ग़म और मातम के बीच, इंसानियत, भाईचारा और धार्मिक एकता का संदेश बाराबंकी की गलियों में हर दिल तक पहुँच गया।