तहलका टुडे इंटरनेशनल डेस्क
भारत और ईरान के बीच रिश्ते गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जुड़ाव पर आधारित हैं। सदियों से इन दोनों देशों ने व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और रणनीतिक साझेदारी के माध्यम से एक मजबूत बंधन विकसित किया है। वर्तमान समय में ये रिश्ते और भी प्रासंगिक हो गए हैं, खासतौर से चाबहार पोर्ट परियोजना के तहत, जो भारत के लिए मध्य एशिया और उससे आगे तक रणनीतिक और आर्थिक पहुंच का एक महत्वपूर्ण जरिया है।
चाबहार पोर्ट: भारत के लिए रणनीतिक जीत
चाबहार पोर्ट, ईरान के दक्षिण-पूर्व में स्थित एक प्रमुख बंदरगाह है, जिसे भारत के आर्थिक और रणनीतिक उद्देश्यों के लिए बेहद अहम माना जाता है। भारत ने इस बंदरगाह के विकास और संचालन के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया है। भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर के अनुसार, भारत ने अब तक इस परियोजना में 24 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 203 करोड़ रुपये) के उपकरण उपलब्ध कराए हैं।
चाबहार पोर्ट का महत्व:
- मध्य एशिया तक पहुंच: चाबहार बंदरगाह पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों तक सीधी पहुंच प्रदान करता है।
- INSTC के लिए कड़ी: चाबहार पोर्ट अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भारत को रूस, यूरोप और मध्य एशिया के साथ जोड़ता है।
- पाकिस्तान पर दबाव: इस पोर्ट के संचालन से पाकिस्तान की कराची और ग्वादर बंदरगाहों पर अफगानिस्तान और अन्य देशों की निर्भरता घट गई है।
- आर्मेनिया के लिए नई संभावनाएं: भारत चाबहार के जरिए आर्मेनिया तक हथियार और अन्य सामग्री भेज रहा है, जिससे इस क्षेत्र में अजरबैजान और पाकिस्तान के प्रभाव को कम करने में मदद मिल रही है।
आर्थिक सहयोग और निवेश
ईरान के साथ चाबहार परियोजना के तहत भारत ने 120 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुदान सहायता और 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण सहायता का वादा किया है। 2018 से इस बंदरगाह ने 450 से अधिक जहाजों और 87 लाख टन से अधिक कार्गो का संचालन किया है।
INSTC का प्रभाव:
INSTC परियोजना मास्को से मुंबई तक 7,200 किमी लंबा परिवहन गलियारा है, जो समय और लागत दोनों में 30-40% की बचत करता है। यह परियोजना भारत को यूरोप, रूस और मध्य एशिया से सीधे जोड़ने के साथ-साथ व्यापार को तेजी से बढ़ावा देती है।
अमेरिका के प्रतिबंधों के बावजूद मजबूत रिश्ते
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद, भारत और ईरान ने अपने रिश्तों को मजबूत बनाए रखा है। चाबहार पोर्ट परियोजना को विशेष छूट मिली है, ताकि भारत-ईरान व्यापार और रणनीतिक साझेदारी पर कोई प्रभाव न पड़े। यह भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
क्षेत्रीय संतुलन में भूमिका
चाबहार परियोजना से न केवल भारत और ईरान को लाभ हो रहा है, बल्कि यह अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए भी वरदान साबित हो रही है। तालिबान शासन के दौरान पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान को ब्लैकमेल किए जाने की घटनाओं के बाद, अफगानिस्तान अब ईरान के चाबहार पोर्ट पर अधिक निर्भर हो गया है।
पाकिस्तान और चीन पर प्रभाव:
- ग्वादर पोर्ट का विकल्प: चाबहार पोर्ट ने पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को कमजोर किया है, जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का हिस्सा है।
- चीन की चुनौती का जवाब: चाबहार और INSTC के जरिए भारत ने क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की रणनीति बनाई है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जुड़ाव
ईरान और भारत का जुड़ाव केवल व्यापार तक सीमित नहीं है। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, शैक्षणिक और धार्मिक संबंध भी गहरे हैं। ईरानी साहित्य, कला और स्थापत्य का भारत पर गहरा प्रभाव रहा है।
प्रमुख सहयोग:
शैक्षणिक आदान-प्रदान: दोनों देशों के विश्वविद्यालयों और शैक्षिक संस्थानों के बीच आदान-प्रदान कार्यक्रम।
ऊर्जा सहयोग: ईरान भारत के लिए एक प्रमुख ऊर्जा आपूर्तिकर्ता है, खासतौर से तेल और गैस के क्षेत्र में।
भविष्य की राह
भारत और ईरान के बीच संबंध केवल चाबहार परियोजना तक सीमित नहीं हैं। दोनों देश क्षेत्रीय स्थिरता, ऊर्जा सुरक्षा और सांस्कृतिक जुड़ाव पर मिलकर काम कर रहे हैं।
प्रमुख उद्देश्यों:
- मध्य एशिया में प्रभाव बढ़ाना: भारत, ईरान के जरिए मध्य एशिया और रूस तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।
- व्यापारिक नेटवर्क का विस्तार: INSTC और अन्य परियोजनाओं के जरिए व्यापार और निवेश के नए अवसर पैदा करना।
- सुरक्षा सहयोग: आतंकवाद और कट्टरपंथ के खिलाफ मिलकर काम करना।
भारत और ईरान के रिश्ते केवल एक परियोजना तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी का हिस्सा हैं। चाबहार पोर्ट इन संबंधों का प्रतीक बन गया है, जो न केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। आने वाले समय में ये रिश्ते और गहरे होंगे और एशिया में स्थिरता और विकास को नया आयाम देंगे।
ईरान की क्रान्ति के बाद दोनों देशों के रिश्तों में नया पड़ाव
जवाहर लाल नेहरू के बाद इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई ने भी प्रधानमंत्री रहते हुए ईरान का दौरा किया। साल 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुआ। इसके बाद भारत और ईरान बीच जुड़ाव का एक नया चरण शुरू हुआ। दोनों देशों के बड़े नेता लगातार दौरे करते रहे। दोनों देशों की विभिन्न स्तरों पर द्विपक्षीय बैठकें होती रहती है।
भारत और ईरान के आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध भी पुराने हैं। ईरानी कच्चे तेल का भारत बड़ा खरीदार रहा है। 2009-10 में भारत ईरानी कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा बाजार था। भारत की ओर से ईरान को निर्यात में पेट्रोलियम उत्पाद, चावल, मशीनरी और उपकरण, विनिर्माण शामिल रहा है। भारत और ईरान अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारा परियोजना के भी सदस्य हैं।
भारत और ईरान व्यापार के अलावा सांस्कृतिक और शैक्षिक स्तर पर भी कई चीजें साझा करते हैं। ईरान के दिल्ली और मुंबई में दो सांस्कृतिक केंद्र हैं। भारत में कई हजार ईरानी छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। भारत ईरानियों के लिए पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से भी एक रहा है।