“छात्रावास में ‘हवा’ से पंखे और ‘कागज़ी स्वर्ग’ की सैर – असीम अरुण ने भ्रष्टाचार की पतंग काट दी!”

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रामनगर छात्रावास में मंत्री के औचक निरीक्षण ने खोल दी अफसरशाही की पोल; 5 लाख के बिल में ‘गायब’ स्विच, ‘अदृश्य’ पंखे और ‘अलौकिक’ मरम्मत।

बाराबंकी/रामनगर से सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा की विशेष रिपोर्ट

जिन दीवारों ने कभी छात्रों के भविष्य के सपनों को सुना था, अब वो खुद फुसफुसा रही हैं—“हमें भी नहीं पता कि पंखे कहां गए!” जी हां, हम बात कर रहे हैं रामनगर के राजकीय अनुसूचित जाति बालक छात्रावास की, जहां करोड़ों नहीं तो लाखों की “काल्पनिक सुविधाएं” तैयार कर दी गई थीं, और वो भी केवल काग़जों पर।

पुलिस की वर्दी उतार कर कुर्ता-पायजामा पहन चुके असीम अरुण जब अचानक छात्रावास का औचक निरीक्षण करने पहुंचे, तो वहां का नज़ारा देखकर उनके भीतर का आईपीएस फिर से जाग गया। पंखे थे मगर हवा नहीं, स्विच थे मगर काम नहीं कर रहे, और जो काम हुआ था, वो ऐसा कि देखकर ‘दिवार’ भी कह दे, “मुझे छोड़ दो मालिक!”

मंत्री जी ने छात्रों से बात की, गिनती करवाई, और नतीजा साफ था—5 लाख रुपये का काम हवा में उड़ाया गया था। बिल-वाउचर इतने चतुराई से भरे गए थे कि उन्हें देखकर अक्षरशः ‘हैरान’ हो जाएं।

“जहां पंखा नहीं, वहां पैसे गए, जहां स्विच नहीं, वहां स्वराज था!”

असीम अरुण ने गड़बड़ी की गंध मिलते ही ज्यादा समय नहीं गंवाया और मौके पर ही जिला समाज कल्याण अधिकारी सुषमा वर्मा और छात्रावास अधीक्षक संतोष कुमार कनौजिया को निलंबन का ‘तोहफा’ दे दिया।

कहा गया है कि छात्रावास की दीवारों ने भी चैन की सांस ली—“चलो अब कोई ईमानदार आया है!”

इतना ही नहीं, मंत्री जी ने मामले की गहराई से जांच के लिए विशेष टीम गठित कर दी है, जो अब इस “हवा में उड़ते बजट” की असलियत उजागर करेगी।

असीम अरुण ने क्या कहा?
“जो बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करेगा, उसे विभाग में जगह नहीं मिलेगी। यह सरकार जवाबदेही और पारदर्शिता की पक्षधर है।”

और तो और, मंत्री जी ने छात्रावास के कायाकल्प के लिए 10 लाख रुपये का अतिरिक्त बजट जारी करने की घोषणा भी कर डाली, ताकि अगली बार किसी निरीक्षण में पंखे ‘हवा’ में नहीं बल्कि छत पर मिलें, और स्विच दबाने पर बल्ब जले—झूठ का पोल खुल जाए।

रामनगर छात्रावास की यह कहानी सिर्फ एक संस्था की नहीं, बल्कि उस ‘काग़ज़ी विकास’ की है, जो अक्सर सरकारी फाइलों में बुलेट ट्रेन की स्पीड से दौड़ता है, मगर ज़मीनी हकीकत में बैलगाड़ी भी नहीं पकड़ पाता।

पर इस बार मामला फाइलों में दफ्न नहीं हुआ।
क्योंकि सामने थे असीम अरुण – जो अब कुर्ता पहनकर भी वर्दी वाली सख्ती नहीं भूले।

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