तहलका टुडे टीम
रमज़ान का पाक महीना इंसान को भूख और प्यास के ज़रिए गरीबों का दर्द महसूस कराने और नेकी की राह दिखाने के लिए आया है। लेकिन अफ़सोस, हर साल जैसे ही रमज़ान आता है, सियासी इफ़्तार पार्टियों का सिलसिला शुरू हो जाता है। ये पार्टियाँ ज़रूरतमंदों की मदद करने के बजाय महंगे होटल, चमचमाते हॉल और कैमरों की फ्लैश लाइटों में खो जाती हैं।
क्या कुरआन, हदीस, नहजुल बलागा और अहलेबैत (अ.) ने हमें यही सिखाया है? क्या इस्लाम का असल मकसद सिर्फ़ दिखावा और सियासी रिश्ते मजबूत करना है? या फिर गरीब, यतीम और बेसहारा लोगों की मदद करना?
आज हमें खुद से यह सवाल पूछना होगा कि हम रमज़ान को अल्लाह की रज़ा और गरीबों की मदद के लिए मना रहे हैं, या सिर्फ़ अपनी शोहरत और रसूख दिखाने के लिए?
अगर आप भी सोचते हैं कि इफ़्तार सिर्फ़ अल्लाह की खुशी और गरीबों की मदद के लिए होनी चाहिए, तो यह आर्टिकल ज़रूर पढ़ें…
रमज़ान का महीना अल्लाह की रहमतों, इबादत और इंसानियत की भलाई का सबसे पाक वक्त है। लेकिन अफ़सोस, इस मुबारक महीने में भी दिखावे और सियासत का खेल जारी रहता है। जैसे ही रमज़ान शुरू होता है, वैसे ही इफ़्तार पार्टियों का सिलसिला भी तेज़ हो जाता है। ये पार्टियाँ अब इबादत कम और राजनीतिक स्वार्थ व सामाजिक रसूख बढ़ाने का ज़रिया ज़्यादा बन गई हैं।
हर साल बड़े होटलों, बंगलों और आलीशान दावतों का आयोजन होता है, जहां नेता, रसूखदार और बड़े अधिकारी इकट्ठा होते हैं। फोटो सेशन होते हैं, सोशल मीडिया पर तस्वीरें डाली जाती हैं, और इसे नेकदिली का लिबास पहनाया जाता है। मगर सवाल यह है कि क्या यही रमज़ान की असली तालीम है? क्या यह पाक महीना सिर्फ़ दिखावे और मक्खनबाज़ी (खुशामद) के लिए है?
इंसानियत बनाम दिखावा
रमज़ान का असली मकसद अल्लाह की इबादत, खुद को पाक करना और ज़रूरतमंदों की मदद करना है। अल्लाह तआला कुरआन में फरमाते हैं:
“नेकी केवल यही नहीं कि तुम अपने चेहरे पूरब या पश्चिम की ओर कर लो, बल्कि असली नेकी यह है कि तुम अल्लाह, क़यामत के दिन, फ़रिश्तों, किताब और नबियों पर ईमान लाओ और अल्लाह की राह में अपना माल खर्च करो – चाहे वो अपने रिश्तेदार हों, यतीम हों, गरीब हों, मुसाफिर हों या मदद मांगने वाले हों।”
(सूरह बकरह: 177)
यानी असली नेकी यह है कि ज़रूरतमंदों की मदद की जाए, न कि उन लोगों की दावतें की जाएँ जो पहले से ही सुख-सुविधाओं में हैं। लेकिन आज के समाज में हम नेकी छोड़कर दिखावे की दौड़ में लग गए हैं।
इफ़्तार पार्टियों से हासिल क्या होता है?
- नेताओं का प्रचार – ये पार्टियाँ नेताओं और रसूखदारों के लिए अपना चेहरा चमकाने का ज़रिया बन चुकी हैं।
- गरीबों की अनदेखी – बड़े-बड़े होटलों और शानदार हॉल में लाखों रुपये खर्च करने वाले वही लोग अक्सर किसी भूखे को खाना खिलाने से कतराते हैं।
- असली मकसद से भटकाव – रमज़ान का मकसद खुदा की इबादत, संयम और गरीबों की मदद करना है, न कि फ़ोटो खिंचवाना और रसूखदारों से ताल्लुक़ बढ़ाना।
- अहंकार और रियाकारी (दिखावा) – इन पार्टियों में जाने का असल मकसद सियासी और सामाजिक फायदा होता है, जबकि असली भलाई ग़रीबों की मदद करने में है।
रमज़ान में सच्ची भलाई क्या होनी चाहिए?
अगर कोई सच में अल्लाह की रज़ा चाहता है, तो इफ़्तार पार्टी में पैसे खर्च करने के बजाय, किसी ग़रीब के घर राशन भिजवा दे। सोचिए, अगर कोई रोज़ेदार रोज़ा रखकर शाम को भूखा सो जाए, तो अल्लाह से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं? अगर आप किसी गरीब के घर रमज़ान का पूरा राशन दे दें, तो उसकी पूरी फैमिली सुकून से रोज़ा खोलेगी और आपकी नेकदिली की सच्ची दुआएँ देगी।
कुछ नेक काम जो इफ़्तार पार्टियों से बेहतर हैं
- किसी गरीब परिवार को रमज़ान का पूरा राशन दें।
- यतीम बच्चों के लिए इफ़्तार और सहरी का इंतज़ाम करें।
- बेसहारा औरतों और बुजुर्गों की मदद करें।
- मस्जिदों और मदरसों में गरीब बच्चों के खाने का इंतज़ाम करें।
- रोज़ा खोलने के लिए सड़क किनारे जरूरतमंदों को खाना बांटें।
अल्लाह किसे पसंद करता है?
हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) ने फरमाया:
“सबसे बेहतर इंसान वो है जो दूसरों के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद हो।” (हदीस)
इसलिए रमज़ान में अगर सच में कुछ करना चाहते हैं, तो किसी गरीब को इफ़्तार कराएं, उसके घर राशन दें, ताकि वो पूरे महीने रोज़े रख सके। यही असली इबादत है, यही असली इंसानियत है।
इफ़्तार पार्टियाँ दिखावे और राजनीतिक फायदे के लिए होती हैं, जबकि गरीबों की मदद असली भलाई और अल्लाह की रज़ा पाने का जरिया है। अब हमें तय करना है कि हम दिखावे और सियासत के लिए इफ़्तार करेंगे या अल्लाह की खुशी के लिए गरीबों का पेट भरेंगे।
अब वक्त आ गया है कि इस फ़िज़ूलखर्ची और दिखावे की परंपरा को खत्म किया जाए और असली रमज़ान की रूह को समझा जाए। याद रखें, अल्लाह को आपकी तस्वीरें नहीं, आपके नेक अमल चाहिए।