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🌿 “न दूसरों की तनकीद का कायल हूं, न तनकीस का” – अल्लामा ज़ीशान हैदर जवादी की तफ़सीर से निकला एक फ़लसफ़ा 

तहलका टुडे 

कभी-कभी एक जुमला हमारे दिल पर ऐसी दस्तक देता है कि वह हमारी सोच का हिस्सा बन जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ जब मैंने अल्लामा जीशान हैदर जवादी साहब की तफसीर-ए-कुरान पढ़ी। उनकी तर्जुमे की किताब में “कुछ अपनी बात में” जब मैंने यह जुमला पढ़ा –
“न दूसरों की तनकीद का कायल हूं, न तनकीस का”,
तो मैं उसी पर ठहर गया। मानो यह जुमला मेरी ज़िंदगी का एक हिस्सा बन गया हो। इसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर हम इंसान क्यों दूसरों की बेवजह आलोचना में या फिर झूठी तारीफ में उलझे रहते हैं?


🔥 अल्लामा जीशान हैदर जवादी – एक बेमिसाल मुफस्सिर का फलसफा

अल्लामा जीशान हैदर जवादी सिर्फ एक आलिम ही नहीं, बल्कि एक फिक्र थे, एक पैगाम थे। उनकी तफसीर-ए-कुरान में हर लफ्ज़ में इल्म, इखलास और तजुर्बे की झलक मिलती है।

  • उन्होंने अपने तर्जुमे में सिर्फ कुरान के लफ्ज़ों को नहीं, बल्कि उसकी रूह को बयान किया।
  • उनकी तफसीर में जगह-जगह पर इंसान को खुद का जायज़ा लेने का पैगाम दिया गया है।
  • उनके जुमलों में गहरी सोच और तजुर्बे का निचोड़ था, जो पढ़ने वाले के दिल में उतर जाता था।

जब मैंने उनकी तफसीर में यह जुमला पढ़ा –
👉 “न दूसरों की तनकीद का कायल हूं, न तनकीस का” – तो मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे यह सिर्फ एक बात नहीं, बल्कि एक मुकम्मल जिंदगी का फलसफा है।


🌟 तनकीद और तनकीस का मतलब – दो किनारे, दोनों से बचना जरूरी

अल्लामा जवादी साहब ने अपनी तफसीर में इस बात की तालीम दी कि इंसान को दूसरों की आलोचना या झूठी तारीफ में नहीं उलझना चाहिए, बल्कि अपने किरदार को संवारने पर ध्यान देना चाहिए।

1. तनकीद (आलोचना) – जब आलोचना हद पार कर जाए

  • आलोचना तब तक सही है, जब तक वह सुधार के लिए हो।
  • मगर जब आलोचना तंज़, जलन या हिकारत का रूप ले लेती है, तो यह इंसान को गिराने का काम करती है।
  • आलोचना कई बार बेवजह की नफरत को जन्म देती है, जिससे समाज में दूरियां बढ़ती हैं।
  • कुरान-ए-पाक में भी अल्लाह ने हिदायत दी है कि किसी का मजाक न उड़ाओ, क्योंकि वह तुमसे बेहतर हो सकता है।

👉 तनकीद का असर:

  • इंसान का आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है।
  • वह खुद पर शक करने लगता है।
  • कई बार आलोचना इंसान को अवसाद में डाल देती है।

🌿 2. तनकीस (झूठी तारीफ) – जब खुशामद का जाल उलझा दे

  • झूठी तारीफ इंसान को खुशफहमी में डाल देती है।
  • लोग चमचागिरी में झूठी प्रशंसा करते हैं, ताकि अपना मतलब निकाल सकें।
  • तारीफ में फंसकर इंसान अपनी कमियों को नजरअंदाज कर देता है।
  • वह खुद को मुकम्मल समझने लगता है और सुधार की गुंजाइश खत्म हो जाती है।

👉 तनकीस का असर:

  • इंसान में घमंड और अहंकार आ जाता है।
  • वह खुद को बेहतरीन मानने लगता है और सीखने की भूख खत्म हो जाती है।
  • सच्चाई से दूर होकर दिखावे में जीने लगता है।

🌿 अल्लामा जीशान हैदर जवादी का पैगाम – आत्मविश्लेषण की तालीम

अल्लामा जवादी साहब की तफसीर हमें यह सिखाती है कि न दूसरों की आलोचना से डरें और न झूठी तारीफ से बहकें। बल्कि खुद का जायज़ा लें।
👉 आत्मविश्लेषण यानी खुद का सच्चा मूल्यांकन – अपनी खूबियों और कमियों को पहचानना।
👉 जो इंसान खुद का आकलन करता है, वह दूसरों की बातों से प्रभावित नहीं होता।
👉 वह अपने फैसलों में मजबूती और ईमानदारी के साथ आगे बढ़ता है।


🌟 अल्लामा जवादी साहब के जुमले ने मेरी सोच को कैसे बदला?

जब मैंने यह जुमला पढ़ा, तो यह मेरे लिए महज़ एक बयान नहीं, बल्कि जिंदगी का एक उसूल बन गया।

  • मैंने महसूस किया कि हम अक्सर दूसरों की बातों में उलझकर अपना वक्त और सुकून बर्बाद कर देते हैं।
  • हम तारीफ में फूलकर झूठी खुशफहमी में जीते हैं या आलोचना से टूट जाते हैं।
  • मगर इस जुमले ने मुझे सिखाया कि खुद को इतना मजबूत बनाओ कि न आलोचना तुम्हें गिरा सके और न तारीफ तुम्हें बहका सके।
  • मैंने यह भी जाना कि असल सुधार दूसरों की बातों में नहीं, बल्कि खुद को संवारने में है।

🌿 क्या करें? – अल्लामा जीशान हैदर जवादी की तालीम से सबक

  1. खुद का आकलन करें: हर दिन खुद का जायज़ा लें – अपनी गलतियों और खूबियों को पहचानें।
  2. झूठी वाहवाही में न बहकें: तारीफ हो या आलोचना – दोनों को तटस्थ होकर लें।
  3. खुद को बेहतर बनाने पर ध्यान दें: अपनी तालीम, किरदार और आदत को रोज़ सुधारें।
  4. सच्चाई को अपनाएं: न खुशामद में फंसें और न निंदा से घबराएं – बस हकीकत में जिएं।

“न दूसरों की तनकीद का कायल हूं, न तनकीस का” – अल्लामा जीशान हैदर जवादी का यह जुमला मेरे लिए एक फलसफा बन गया।
👉 अब मैं दूसरों की आलोचना से न डरता हूं और न झूठी तारीफ से बहकता हूं।
👉 मैंने सीखा कि असली कामयाबी लोगों की बातों से परे, खुद को निखारने में है।
👉 यह फलसफा मुझे हर दिन यह याद दिलाता है कि दूसरों की सोच से ज्यादा जरूरी खुद की सच्चाई है।


🌿 आख़िर में सैयद रिज़वान मुस्तफा का पैगाम:

“अल्लामा जीशान हैदर जवादी की तफसीर का यह एक जुमला मेरे लिए पूरी जिंदगी का उसूल बन गया – न आलोचना से गिरना है, न तारीफ से बहकना है – बस सच्चाई के साथ जीना है।”
📜 – सैयद रिज़वान मुस्तफा

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