गांधी स्मृति व्याख्यान में सियासी ‘गुप्त मंत्रणा’!
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और सपा नेता अरविंद सिंह गोप की कानाफूसी से बढ़ी हलचल
तहलका टुडे टीम
बाराबंकी। राजनीति में न दोस्त स्थायी होते हैं, न दुश्मन! लेकिन जब दो धुर विरोधी नेता मंच साझा करें और फिर कानाफूसी करें, तो सियासी हलचल मचना तय होता है। गांधी स्मृति व्याख्यान में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला, जब बिहार के राज्यपाल और भाजपा नेता आरिफ मोहम्मद खान व समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप मंच पर फुसफुसाते नजर आए।
बगल में बैठे भाजपा नेता विवेक वर्मा भी रह गए हैरान!
मंच पर इस सियासी ‘संवाद’ के दौरान भाजपा नेता विवेक सिंह वर्मा भी मौजूद थे, जो दोनों नेताओं की बातचीत पर खास नजर बनाए हुए थे। लेकिन यह दिलचस्प बात रही कि राज्यपाल और सपा नेता कुछ ऐसा कह रहे थे, जो केवल उन्हीं तक सीमित रहा।
2022 में गोप को हराने के लिए झोंकी थी भाजपा ने ताकत, अब क्या नया समीकरण?
इस ‘गुप्त मंत्रणा’ पर चर्चाएं इसलिए भी तेज हो गई हैं, क्योंकि 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अरविंद सिंह गोप को हराने के लिए पूरा दमखम लगा दिया था।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद दरियाबाद में जनसभा करनी पड़ी थी।
- दर्जनों मंत्रियों और भाजपा नेताओं को मैदान में उतारकर ऐसा सियासी ताना-बाना बुना गया कि गोप को हार का सामना करना पड़ा।
बावजूद इसके, गोप आज भी सपा के कद्दावर नेता बने हुए हैं, लेकिन यह भी सच है कि भाजपा के खिलाफ उनके तल्ख तेवर हमेशा चर्चा में रहते हैं।
तो क्या भाजपा-सपा के बीच कोई ‘खुफिया डील’ हो रही है?
अब सवाल उठ रहा है कि मंच पर हुई इस कानाफूसी की वजह क्या हो सकती है?
- क्या पर्दे के पीछे भाजपा और सपा के बीच कोई नई सियासी डील चल रही है?
- क्या 2029 के लोकसभा चुनाव या 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले अरविंद सिंह गोप कोई बड़ा सियासी फैसला लेने वाले हैं?
- या फिर यह सिर्फ एक मंचीय औपचारिक बातचीत थी, जिसे सियासी रंग दिया जा रहा है?
नेताओं ने साधी चुप्पी, लेकिन चर्चाएं तेज
जब मीडिया ने इस मुलाकात पर सवाल किया, तो राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और अरविंद सिंह गोप दोनों ने कोई ठोस जवाब नहीं दिया।
भाजपा नेता विवेक वर्मा से जब पूछा गया कि इस कानाफूसी में क्या चर्चा हुई, तो उन्होंने सिर्फ मुस्कान दी और जवाब देने से बचते नजर आए।
क्या अखिलेश यादव कद्दावर नेताओं की सलाहियत की अनदेखी करते है ?
यह चर्चा इसलिए भी गर्म है, क्योंकि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद भी अखिलेश यादव ने अरविंद सिंह गोप को न एमएलसी बनाया, न राज्यसभा सदस्य।
जब भी मौका आया, उन्हें किनारे कर दिया गया।
हालांकि, इसके बावजूद गोप ने सपा के लिए खुलकर वफादारी निभाई और भाजपा के खिलाफ आक्रामक बयानबाजी भी की।
लेकिन अखिलेश यादव का उनके प्रति ठंडा रवैया अब सपा कार्यकर्ताओं के बीच भी चर्चा का विषय बन चुका है।
पहले भी भाजपा नेताओं के साथ मंच साझा कर चुके हैं गोप
गांधी स्मृति व्याख्यान से पहले भी एक अस्पताल के कार्यक्रम में भाजपा सरकार के स्वास्थ्य राज्य मंत्री मयंकेश्वर सिंह (जो गोप के पुराने दोस्त भी हैं) के साथ गोप ने मंच साझा किया था।
इससे पहले भी, भाजपा के कई नेता गोप के साथ मंच साझा करने से नहीं कतराए।
अब आगे क्या?
बाराबंकी की राजनीति में इस घटना ने नया भूचाल ला दिया है।
सियासी पंडितों का मानना है कि अगर यह सिर्फ औपचारिक बातचीत थी, तो इतनी गहरी कानाफूसी की जरूरत क्यों पड़ी?
क्या उत्तर प्रदेश की राजनीति में कोई बड़ा बदलाव होने वाला है?
फिलहाल, तस्वीर ने हलचल जरूर मचा दी है, लेकिन इसका रहस्य अभी बाकी है।
आने वाले दिनों में यह साफ होगा कि यह सिर्फ एक संयोग था या फिर सियासत की नई बिसात बिछाई जा रही है!