करबला से प्रेरणा लेकर बनीं इंसाफ़ की अलमबरदार, ज़किया जाफ़री अलविदा ,अन्याय के ख़िलाफ़ आख़िरी दम तक लड़ने वाली भारत की इस बहादुर बेटी को आख़िरी सलाम

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करबला से प्रेरणा लेकर बनीं इंसाफ़ की अलमबरदार, ज़किया जाफ़री अलविदा

अन्याय के ख़िलाफ़ आख़िरी दम तक लड़ने वाली भारत की इस बहादुर बेटी को आख़िरी सलाम

तहलका टुडे टीम/अली मुस्तफा

गुजरात दंगों में अपने पति, पूर्व सांसद एहसान जाफ़री को खोने वाली ज़किया जाफ़री अब इस दुनिया में नहीं रहीं। मगर उनकी रुख़सती सिर्फ़ एक इंसान के जाने की नहीं, बल्कि एक पूरी क़ौम की आवाज़ के खामोश होने की है। वो 22 साल तक इंसाफ़ की लड़ाई लड़ती रहीं, लेकिन सत्ता की ताक़तें हर बार उन्हें कुचलने की कोशिश करती रहीं। आज वो हमारे बीच नहीं हैं, मगर उनकी हिम्मत, सब्र और हक़ की आवाज़ हमेशा ज़िंदा रहेगी।


जब दर्द और हौसले का संगम हुआ था

2002 में जब गुजरात की गलियों में नफ़रत की आग लगी थी, तब एहसान जाफ़री ने अपने घर में पनाह लेने आए बेगुनाहों को बचाने की आख़िरी कोशिश की थी। लेकिन इंसानियत हार गई, नफ़रत जीत गई। ज़किया जाफ़री पर भी वो ग़मों का पहाड़ टूटा, जिसकी कल्पना भी रूह कंपा देती है। मगर उन्होंने अपने आँसू पोंछे और इंसाफ़ की जंग जारी रखी।

2004 में, जब वो बाराबंकी के मशहूर वकील चचा अमीर हैदर एडवोकेट के बेगमगंज स्थित आवास पर आईं, तो वहाँ की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उन्होंने जो कुछ कहा, वह सुनने वालों के रोंगटे खड़े कर देने के लिए काफ़ी था। जब उनसे पूछा गया कि इतने ज़ुल्म के बाद आप कैसे ज़िंदा बचीं? तो उनकी आँखों में आँसू थे, लेकिन जुबां पर बस एक जवाब—

“करबला से ताक़त मिली, जब तक ज़िंदगी है, अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ती रहूँगी।”


करबला से प्रेरणा लेकर बनीं इंसाफ़ की अलमबरदार

चचा अमीर हैदर बताते हैं कि ज़किया जाफ़री सिर्फ़ एक पीड़ित महिला नहीं थीं, बल्कि वो करबला के उस पैग़ाम को ज़िंदा रखने वाली थीं, जिसमें ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना सबसे बड़ा हौसला माना जाता है।

उन्होंने लखनऊ से अलम और तबर्रुकात लेकर गुजरात लौटने के बाद अपने घर में एक अज़ाख़ाना बनाया। जब भी ग़म में डूबतीं, इमाम हुसैन (अ) और शहीदाने करबला को याद करके अपने दुखों पर मरहम लगातीं। करबला के सब्र और हौसले से उन्होंने अपनी लड़ाई को ज़िंदा रखा


आख़िरी साँस तक इंसाफ़ की उम्मीद

ज़किया जाफ़री ने सिर्फ़ अपने शौहर के लिए नहीं, बल्कि हर बेगुनाह मज़लूम के लिए इंसाफ़ की लड़ाई लड़ी। अदालतों के चक्कर लगाए, मगर इंसाफ़ की उस आवाज़ को कुचलने की हर मुमकिन कोशिश की गई।

अफ़सोस, वो दिन नहीं देख पाईं जब कातिलों को सज़ा मिलती। लेकिन उनकी लड़ाई सत्ता के गलियारों में बैठे ज़ालिमों के लिए हमेशा एक डर की तरह रही।


ज़किया जाफ़री की रुख़सती—हमारे लिए दुख, सत्ताधीशों के लिए राहत

आज जब ज़किया जाफ़री इस दुनिया से चली गईं, तो उनके चाहने वालों के लिए ये ग़म का दिन है, मगर उनकी लड़ाई से डरने वाले लोगों ने राहत की साँस ली होगी

लेकिन ये भी सच है कि एक बहादुर औरत, जिसने अपने आँसूओं को हिम्मत में बदल दिया, उसकी रुख़सती सिर्फ़ जिस्म की है—उसकी रूह, उसकी जंग और उसका पैग़ाम हमेशा ज़िंदा रहेगा।


एक आख़िरी सलाम

अल्लाह एहसान जाफ़री, ज़किया जाफ़री और हर उस मज़लूम को जन्नत नसीब करे, जिन्होंने नफ़रत की आग में अपनी जानें गँवाईं। उनके परिवार को सब्र दे और हमें इतनी हिम्मत कि हम भी उनके पैग़ाम को आगे बढ़ा सकें।


ज़किया जाफ़री—नाम याद रखना!
क्योंकि यह नाम सिर्फ़ एक औरत का नहीं, बल्कि हिम्मत की एक पूरी दास्तान का है।

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