भारत-ईरान के इल्मी रिश्तों में नया ऐतिहासिक पड़ाव: हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम की सौवीं सालगिरह पर भारतीय उलमा की आयतुल्लाह आराफी से अहम मुलाक़ात

THlkaEDITR
4 Min Read

तहलका टुडे इंटरनेशनल डेस्क

तेहरान/क़ुम ईरान हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम की स्थापना की सौवीं सालगिरह के मौके पर आयोजित भव्य और ऐतिहासिक बैठकों ने एक नई इल्मी और रूहानी रवायत को जन्म दिया है। इसी सिलसिले में ईरान के प्रमुख धार्मिक मरकज़ हौज़ा इल्मिया ईरान के सरबराह आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी से भारत के चोटी के उलमा की मुलाक़ात ने दोनों मुल्कों के दीनी रिश्तों को और मज़बूती प्रदान की।

इस मौके पर भारत की सुप्रीम रिलीजियस अथॉरिटी आफ़ताबे शरीअत मौलाना डॉ कल्बे जवाद नकवी साहब, 1200 से ज़्यादा मकातिबों की निगरानी करने वाले बोर्ड तंजीमुल मकातिब के सेक्रेट्री और समाजी इस्लाह के पैरोकार हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद सफी हैदर जैदी साहब और हौज़ा गुफरान माब लखनऊ के प्रिंसिपल और नायब इमामे जुमा मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी साहब खास मेहमानों के तौर पर शामिल हुए। इनकी शिरकत पूरे प्रोग्राम की रौनक बन गई और इल्मी व फिक्री तबकों में ज़ोरदार चर्चा का विषय रही।

इस ऐतिहासिक प्रोग्राम में नाज़िमिया अरेबिक कॉलेज के बुजुर्ग आलिम हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद हमीदुल हसन साहब क़िब्ला को भी बुलाया गया था, लेकिन बीमारी के कारण वह शरीक न हो सके।

बाग़-ए-म्यूज़े मलक, तेहरान में आयोजित आयतुल्लाह आराफी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने हौज़ा क़ुम की नई स्थापना के सौ साल मुकम्मल होने पर शहीदों, उस्तादों और इस्लामी तालीम के मैदान में सेवाएं देने वाले मरहूम आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद काज़िम हैरी यज़्दी और हाज शेख अब्दुल करीम हाएरी यज़्दी (रह.) को खास अंदाज़ में खिराजे अकीदत पेश किया।

इस मौके पर आयतुल्लाह आराफी ने ऐलान किया कि 17 और 18 उर्दीबहिश्त 1404 (मुताबिक मई 2025) को हौज़ा की शताब्दी के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाली बैठकों में 50 से ज़्यादा इल्मी व ताहक़ीकी किताबों और रिसर्च वर्क्स का अनावरण किया जाएगा। दूसरे दिन मख़सूस कमेटियों की बैठकों का भी आयोजन होगा।

आयतुल्लाह आराफी ने कहा:

“हौज़ा ए इल्मिया सिर्फ एक तालीमी इदारा नहीं, बल्कि इस्लामी तहज़ीब और सोच की रूहानी बुनियाद है। हमने बहुत तरक़्क़ी की है लेकिन हमें अब भी मौजूदा दौर की मुश्किलात का हल तालीम, तर्बियत और युनिवर्सिटी-हौज़ा ताल्लुक़ात के ज़रिए तलाश करना होगा।”

भारत और ईरान के इस मुश्तरका प्रोग्राम ने ये साबित कर दिया कि भारत सिर्फ इल्मी नहीं, बल्कि अदबी, सामाजिक और मज़हबी सतह पर भी पूरी दुनिया में एक अहम मुक़ाम रखता है। ईरानी उलमा और अवाम, भारतीय उलमा की शाइस्ता अंदाज़, इल्मी तबस्सुर और रूहानी गहराई की कद्र करते हैं।

आख़िर में आयतुल्लाह आराफी ने ज़ोर देकर कहा:

“हौज़ा ए इल्मिया इस्लामी उम्मत, मज़लूमों और मुस्तज़अफीन के साथ हर दौर में खड़ा रहा है और रहेगा। हम दुश्मनों को ये पैग़ाम देना चाहते हैं कि ईरानी कौम किसी भी हालत में अपने इस्लामी और इंकलाबी अफ़कार की हिफ़ाज़त में पीछे नहीं हटेगी।”

यह मुलाक़ात और प्रेस कॉन्फ्रेंस ना सिर्फ हौज़ा की शताब्दी को यादगार बनाती है, बल्कि भारत-ईरान के इल्मी रिश्तों को एक नया आयाम भी देती है। दोनों मुल्कों के उलमा का यह इत्तेहाद उम्मत की रहनुमाई, तहज़ीब की हिफाज़त और इस्लामी सोच के इस्तेहकाम का सुबूत है।

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *