“एक खाली हांडी, एक रोता बच्चा और ग़ज़ा की बुझती हुई सांसें – कब जागेगा इंसान?”
तहलका टुडे टीम/सैयद रिज़वान मुस्तफा
वो तस्वीर अब इंटरनेट पर तैर नहीं रही, बल्कि इंसानियत के ज़मीर को डुबो रही है –
एक बच्चा, भूख से बेहाल, अपने छोटे से हाथों में एक खाली हांडी को सीने से लगाकर फूट-फूटकर रो रहा है।
कहीं माँ मलबे के नीचे दबी होगी, कहीं बाप का कोई अता-पता नहीं। और पेट में जलती आग, जिसमें रोटी नहीं, बम गिर रहे हैं।
यह ग़ज़ा है – एक ऐसा टुकड़ा जो अब धरती का नहीं, नरक का नक्शा बन चुका है।
84 और लोग आज मारे गए।
न कोई शोकसभा, न शांति प्रस्ताव – बस धुआं, बारूद और बच्चे।
ग़ज़ा की सड़कों पर अब क़ब्रें बन चुकी हैं, और अस्पताल युद्धभूमि।
हर ओर सिर्फ रोने की आवाज़ है – जिनमें कुछ आवाज़ें तो अब थककर खामोश हो गई हैं।
ग़ज़ा की स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार अब तक 53,339 लोग मारे जा चुके हैं, जबकि वहां की सरकारी मीडिया यह संख्या बढ़ाकर 61,700 से अधिक बता रही है – क्योंकि मलबे में दबे हजारों लोगों को अब ‘ग़ायब नहीं, मृत’ माना जा रहा है।
इस तबाही के बीच कनाडा, फ्रांस और ब्रिटेन ने चेतावनी दी है कि यदि इज़राइल ग़ज़ा पर हमला बंद नहीं करता, तो उस पर प्रतिबंध लगाए जाएंगे। 22 देशों ने मानवीय सहायता बहाल करने की मांग की है। मगर इज़राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू कह रहे हैं, “हम पीछे नहीं हटेंगे।”
क्या यह लड़ाई है?
या वह जुनून, जिसमें एक पूरी क़ौम मिटा देने की योजना है?
7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले में इज़राइल में 1,139 लोग मारे गए, यह एक भयानक त्रासदी थी। लेकिन क्या एक त्रासदी की आड़ में दूसरी, उससे भी भयानक और लंबी त्रासदी को जायज़ ठहराया जा सकता है?
ग़ज़ा में अब हर घर एक विधवा है, हर गली एक अनाथ।
मदद के लिए चिल्लाते बच्चों की आवाज़ों से ज़्यादा तेज़ हैं युद्धक विमानों की गड़गड़ाहट।
एक ऐसा मंजर जहाँ खाली हांडी इंसाफ़ मांगती है, रोटी नहीं।
दुनिया चुप है।
संयुक्त राष्ट्र संकल्प पास करता है, और उसी रात ग़ज़ा पर और बम गिरते हैं।
ओआईसी बयान देती है, और बच्चों की लाशें मिट्टी में दबाई जाती हैं।
ये सिर्फ युद्ध नहीं, इंसानियत की हार है।
वो बच्चा जो हांडी को गले लगाए रो रहा है, वो सवाल कर रहा है –
“क्या मेरी भूख से ज़्यादा मायने रखती है तुम्हारी राजनीति?
क्या मेरा आंसू भी धर्म देखकर बहाया जाएगा?”
ग़ज़ा की इस तस्वीर को देखकर अगर आपके दिल में दर्द नहीं उठा,
तो समझ लीजिए – इंसान होने की आखिरी निशानी भी आपने खो दी।
आज ग़ज़ा में एक हांडी खाली है,
कल शायद दुनिया का दिल भी।
अब भी समय है – उठिए, बोलिए, और ज़ुल्म के खिलाफ खड़े हो जाइए।
वरना इतिहास आपके खामोश चेहरे को कायर कहकर याद रखेगा।