“बाबू रामसेवक यादव की आत्मा भी पूछ बैठी – बेटा, राकेश और सुरेश कहां हैं?” समाजवाद की सभा में समाजवादी ही ग़ायब, मंच पर माल्यार्पण – कुर्सियों पर सन्नाटा

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तहलका टुडे टीम/सदाचारी लाला उमेश चंद्र श्रीवास्तव, मोहम्मद वसीक 

बाराबंकी, 2 जुलाई 2025 |गांधी भवन, देवा रोड बाराबंकी – जहां आज स्वर्गीय बाबू रामसेवक यादव की 99वीं जयंती के मौके पर एक भव्य व्याख्यान एवं सम्मान समारोह का आयोजन हुआ। लोहियावादी विचारधारा से प्रेरित इस आयोजन में समाजवाद, संघर्ष और सेवा जैसे शब्द गूंजते रहे, लेकिन इन शब्दों के बीच दो नामों की गूंज और भी तेज थी – पूर्व मंत्री राकेश वर्मा और विधायक सुरेश यादव।

उनकी अनुपस्थिति को लेकर जितनी खामोशी मंच पर थी, उससे कहीं ज़्यादा हलचल गांधी भवन के गलियारों, कार्यकर्ताओं के मोबाइल फोन और समाजवादी मन के कोनों में देखने को मिली।


आत्मा का हस्तक्षेप: श्रद्धांजलि से संतोष नहीं, सवाल भी थे

कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही आयोजकों ने मंच पर स्वर्गीय बाबू रामसेवक यादव जी की तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की, लेकिन जैसे ही दीप प्रज्वलन हुआ, कुछ अनुभवी समाजवादी नेताओं ने आंखें बंद कर ध्यान लगाया और वहीं “बाबूजी की आत्मा” से संवाद करने लगे।

एक बुजुर्ग नेता ने मंच पर धीरे से कहा:

“बाबूजी कह रहे हैं – बेटा, तुमने माला चढ़ा दी, भाषण भी अच्छा दिया, पर क्या हमसे जुड़ा वर्तमान इतना कमजोर हो गया है कि राकेश और सुरेश तक श्रद्धा नहीं पहुंची?”


समाजवाद की राजनीतिक GPS: जहां शक्ति, वहीं श्रद्धा

समारोह के प्रमुख वक्ताओं में नेता प्रतिपक्ष रहे रामगोविंद चौधरी और पूर्व कैबिनेट मंत्री अरविंद सिंह गोप ने बाबूजी के विचारों, संघर्ष और योगदान पर विस्तार से चर्चा की। गोप ने घोषणा की कि 100वीं जयंती को पूरे साल जन्मशताब्दी वर्ष के रूप में मनाया जाएगा।
उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा:

“आज के युग में मोबाइल से ज़्यादा ज़रूरी है मिशन। बाबू रामसेवक यादव जी के विचारों को पढ़ना और उन पर चलना वक्त की ज़रूरत है।”

लेकिन जैसे ही उनकी आवाज़ गूंजी, एक युवा कार्यकर्ता बगल में फुसफुसाया –

“गोप जी सच कह रहे हैं, पर टिकट कटने के डर से लोग अब विचार नहीं, ‘वायरल वीडियो’ और ‘जाती गणित’ पढ़ते हैं।”


कुर्सियाँ कहती रहीं – “हमारी तक़दीर खाली क्यों है?”

कार्यक्रम स्थल पर पंडाल सजा था, फूलों की सजावट, बैनर, माइक और मंच की रोशनी सब कुछ परिपूर्ण था। पर मंच के सामने कुछ कुर्सियां थीं जो खाली थीं, और बेहद मायूस।
एक कुर्सी ने जैसे खुद ही मीडिया से बयान दिया:

“हर साल हमारी किस्मत में एक ही बात लिखी जाती है – राकेश वर्मा आज नहीं आएंगे, सुरेश यादव जी के पास समय नहीं होगा।”


सम्मान समारोह या राजनीतिक वर्ग विभाजन?

इस बार सम्मान समारोह में समाजसेवियों, समाजवादी विचारधारा के लोगों को मंच से सम्मानित किया गया। लेकिन लोगों की चर्चाओं में यह सम्मान समारोह कम और सपा के अंदर की खींचतान का आईना ज़्यादा बन गया।

एक सम्मानित व्यक्ति ने व्यंग्य में कहा:

“आज तो सम्मान के साथ-साथ सबको ये भी दिखा दिया गया कि पार्टी में कौन ‘करीबी’ है और कौन सिर्फ ‘कागज़ी समाजवादी’।”


खुद स्वर्गीय बाबूजी होते तो क्या करते?

कार्यक्रम के समापन पर संचालक ने जब सबका धन्यवाद किया, तो एक बुजुर्ग कार्यकर्ता ने आंखों में नमी लिए कहा:

“बाबू रामसेवक यादव जी आज होते तो शायद मंच से यह ज़रूर कहते – ‘बेटा, अगर कार्यक्रम सिर्फ रस्म अदायगी बन जाए, और अपने लोग खुदगर्ज़ी में ग़ायब रहें, तो विचारों का सम्मान सिर्फ भाषण में नहीं, हकीकत में दिखना चाहिए।’”

समाजवादियों का यह आयोजन भले ही विचारों का संगम था, लेकिन यह भी साबित हो गया कि आजकल राजनीति में विचार नहीं, अवसर हाजिरी लगाते हैं।
स्वर्गीय बाबू रामसेवक यादव की आत्मा शायद आज भी गांधी भवन के ऊपर मंडरा रही होगी, कुर्सियों को निहारती, और सोचती होगी:

“हमने तो जीवन भर संगठन जोड़ा, संघर्ष किया, पर आज के समाजवाद में ‘समाज’ भी छूट गया और ‘वाद’ भी केवल चुनावी वादा रह गया!”

 

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