🌐 “जय ईरान — जय हिंद” की गूंज: हमले के बाद भारत के समर्थन पर ईरान हुआ भावुक, किन्तूर की मिट्टी फिर बनी रिश्तों की ज़मीन
✨ जब दिल दिल से जुड़ते हैं, सीमाएं मिट जाती हैं…
तहलका टुडे टीम/सदाचारी लाला उमेश चंद्र श्रीवास्तव
21वीं सदी में जब दुनिया वैश्विक राजनीति, हथियारों और स्वार्थ की दीवारों में उलझी हुई है, तब एक भावनात्मक दृश्य ने इंसानियत और इतिहास दोनों को फिर से जगा दिया।
ईरान पर हमले के बाद भारत से मिले समर्थन पर नई दिल्ली स्थित ईरानी दूतावास ने एक विशेष बयान जारी किया, जिसके अंत में दो लफ़्ज़ गूंजे:
“जय ईरान — जय हिंद”
यह महज़ एक औपचारिक वाक्य नहीं था, बल्कि दो महान सभ्यताओं की साझी आत्मा का इज़हार था।
🤝 भारत-ईरान: दिलों के रिश्ते, सदियों पुरानी साझेदारी
ईरानी दूतावास ने अपने बयान में ज़िक्र किया कि भारत और ईरान सिर्फ़ राजनीतिक साझेदार नहीं हैं, बल्कि दोनों मुल्कों के बीच ऐसे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और मानवीय रिश्ते हैं जो तलवारों या समझौतों से नहीं, बल्कि रूहों और रिश्तों से बने हैं।
दूतावास ने कहा:
“भारत की तरफ से संकट की घड़ी में जिस संजीदगी, आत्मीयता और स्पष्ट समर्थन का प्रदर्शन किया गया, वह हमारे लिए सिर्फ़ कूटनीति नहीं, सच्चे मित्र की पहचान है।”
🌱 किन्तूर, बाराबंकी: ईरान की क्रांति की जड़ें भारत में
इस मौके पर जो बात सबसे ज़्यादा दिल को छूने वाली रही, वो यह थी कि दूतावास ने विशेष रूप से जय हिंद का उल्लेख किया। उसके पीछे भी तथ्य किन्तूर बाराबंकी ही था।
क्यों?
क्योंकि यही वह मिट्टी है जहां से निकले थे इमाम ख़ुमैनी के पूर्वज।
- आग़ा अहमद हिंदुस्तानी, एक आलिम, एक रूहानी शख्सियत, जो बाराबंकी और लखनऊ की सरज़मीन से तालीम लेकर ईरान पहुंचे।
- वहीं से शुरू हुआ वह वैचारिक सफर, जिसने इमाम ख़ुमैनी को जन्म दिया—एक ऐसी शख्सियत जिसने तानाशाही, ज़ुल्म, और अमरीकी साम्राज्यवाद के खिलाफ पूरी दुनिया को आवाज़ दी।
दूतावास ने इस बात को भावुक अंदाज़ में बयान करते हुए कहा:
“भारत की मिट्टी की तासीर ने हमारी रूह में जुल्म से लड़ने का जज़्बा बोया।”
🕌 भारत की रूह: राम, कृष्ण,इमाम हुसैन और वारिस अली शाह
भारत की वह तासीर जो आज ईरान की रगों में दौड़ रही है, वह केवल किन्तूर तक सीमित नहीं।
- पुरुषोत्तम राम की मर्यादा — जो अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना सिखाती है।
- श्रीकृष्ण की गीता — जो अधर्म के विरुद्ध धर्मयुद्ध की प्रेरणा देती है।
- हजरत ईमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत — जो हर दौर के ज़ालिम के खिलाफ इंक़लाब की आग बनती है।
- और हाजी वारिस अली शाह — जो दिलों को मोहब्बत से जीतने का पैग़ाम देते हैं।
यह सब कुछ ईरान के इंकलाब में भी दिखाई देता है — नफ़रत नहीं, बल्कि ज़ुल्म से इनकार, मज़लूम का साथ, और इंसाफ़ की पुकार।
📜 दूतावास का संदेश: साझा संघर्ष, साझा भविष्य
बयान के अंत में ईरानी दूतावास ने यह उम्मीद भी जताई कि:
“भारत और ईरान की यह एकजुटता भविष्य में वैश्विक शांति, स्थिरता और न्याय के लिए प्रेरक बनेगी।”
यह वक्तव्य बताता है कि भारत और ईरान का रिश्ता सिर्फ़ तेल और व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन साझा मूल्यों की बुनियाद पर खड़ा है, जिनमें:
- इंसानियत की इज़्ज़त
- मज़लूम का साथ
- और ज़ालिम से इनकार शामिल है।
💬 “जय ईरान — जय हिंद” : एक नारा, दो दिल, एक मक़सद
जब एक रूहानी देश ईरान और एक अध्यात्मिक राष्ट्र भारत एक साथ खड़े होते हैं, तो यह सिर्फ़ राजनीति नहीं, बल्कि इंसाफ़ और इंसानियत का गठबंधन होता है।
यह नारा उन सभी लोगों के लिए उम्मीद है:
- जो जालिम ताक़तों से लड़ने की हिम्मत रखते हैं।
- जो दिल से दिल जोड़ने की रीत को ज़िंदा रखना चाहते हैं।
- और जो भारत की उस मिट्टी को पहचानते हैं, जो ताज पहनाती भी है और तानाशाहों को गिराती भी है।
🕊️ मिट्टी की ताक़त को मत भूलिए…
“भारत की मिट्टी से निकले थे राम और कृष्ण —
इसी मिट्टी ने भगत सिंह और गांधी को जन्म दिया —
और इसी मिट्टी ने इमाम ख़ुमैनी के रूहानी सफर को भी जमीं दी।”
आज ईरान भावुक है क्योंकि भारत खड़ा है।
और भारत को फख्र है कि उसकी किन्तूरी मिट्टी, आज भी दुनिया के सबसे अहम इंक़लाब की तासीर है।
✍🏼 “कभी मिट्टी से भी इंकलाब उठता है, जब वह इंसाफ़ की खुशबू से भीगी हो।”