“राम की धरती से खुमैनी की मिट्टी तक — भारत ने निभाया इंसानियत का रिश्ता”,”तहज़ीब ने तीर थामा, तमीज़ ने दिल छुआ,ईरान के घावों पर लगाया मरहम” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ईरानी राष्ट्रपति डॉ. पेज़ेश्कियान के बीच अहम बातचीत

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📍 तहलका टुडे टीम/अली मुस्तफा

नई दिल्ली / तेहरान, 22 जून 2025

जब आसमान से बम बरस रहे थे, ज़मीन काँप रही थी, और इंसानियत चीख रही थी— ऐसे दौर में भारत ने शोर नहीं किया, अदब और तहज़ीब के साथ शांति का पैग़ाम दिया।

अमेरिका और इज़राइल द्वारा ईरान पर किए गए हमलों के बाद जहाँ वैश्विक शक्तियाँ राजनीतिक समीकरणों की जोड़-घटाव में उलझी रहीं, वहीं भारत ने ईरान की खैरियत पूछकर इंसानियत और दोस्ती का रिश्ता निभाया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति डॉ. मसऊद पेज़ेश्कियान से बात की और तनाव कम करने, कूटनीति और संवाद को आगे बढ़ाने की अपील की। लेकिन ये संवाद सिर्फ राजनीतिक नहीं था— इसमें भारत की मिट्टी की तहज़ीब, तमीज़, अदब, और शाइस्ता अंदाज़ बोल रहा था।


भारत: वह धरती जहाँ राम का तीर और अली की तलवार दोनों तहज़ीब में ढल जाते हैं

भारत की पहचान केवल एक भूगोल नहीं, एक विचार है — वसुधैव कुटुम्बकम्। यहां राम का तीर अधर्म के रावण को भेदता है, और अली की तलवार ज़ुल्म के खिलाफ उठती है, मगर दोनों का मक्सद एक ही होता है — इंसाफ और अमन।

2021 में जब भारत ने “रामायण” की प्रेरणा से अग्नि-V मिसाइल को लॉन्च किया, वह केवल सामरिक शक्ति का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि उस पुरुषोत्तम विचारधारा की पुनर्पुष्टि थी कि जब अन्याय बढ़ता है, तो जवाब ज़रूरी होता है।

आज जब ईरान पर हमला हुआ, भारत ने  संवाद का रास्ता चुना। यही भारत की ताक़त है — ज़रूरत पड़ने पर तीर बन जाता है, और ज़ख़्म पर मरहम बनकर भी उतरता है।

ये पुरुषोत्तम राम का तीर आज इंसानियत के जालिमों पर मिसाइल की शक्ल में आफत बन गया हैं


🕌 खुमैनी की मिट्टी और गांधी की धरती का संगम: इस्लामी क्रांति से सीख, भारतीय संवेदना से जोड़

ईरान की इस्लामी क्रांति (1979) ने जिस इंसाफ, अद्ल और हिम्मत का पैग़ाम दिया था, वह कहीं न कहीं भारत की स्वतन्त्रता संग्राम की गूँज से मेल खाता है। आयतुल्लाह खुमैनी की आवाज़ में जिस इन्कलाब का जोश था, वही जोश भारत की मिट्टी में भी गांधी, भगत सिंह और मौलाना आज़ाद की तहरीक में दिखता है।

आज जब तेहरान एक बार फिर साजिशों का निशाना बना है, भारत ने खामोश समर्थन नहीं, खुलकर हमदर्दी और दोस्ती का इज़हार किया है। यह वही भारत है, जहाँ हज़रत हुसैन के ग़म में भी आंखें नम होती हैं और राम के वनवास में भी दिल उदास होता है।


📞 मोदी का संदेश: “हम आपके साथ हैं” — सिर्फ़ शब्द नहीं, वक़्त पर निभाया गया रिश्ता

प्रधानमंत्री मोदी का ईरानी राष्ट्रपति से संवाद केवल राजनीतिक औपचारिकता नहीं थी — यह उस रिश्ते की मिसाल थी, जहाँ मुसीबत में दोस्त सबसे पहले दरवाज़ा खटखटाता है। भारत न सिर्फ़ हालात पर नजर रखे हुए है, बल्कि राहत भेजने और चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने पर भी विचार कर रहा है।

सूत्रों के अनुसार, भारत जल्द ही मानवीय सहायता के रूप में मेडिकल सप्लाई, फर्स्ट एड यूनिट्स, मोबाइल हॉस्पिटल और खाद्य सामग्री ईरान भेज सकता है।


🌐 भारत की भूमिका: ज़ुल्म के बीच अमन की आवाज़

जहाँ अमेरिका “डिप्लोमेसी” के नाम पर मिसाइलें दागता है, वहाँ भारत अपने पुरखों की तहज़ीब और परंपरा के अनुसार डायलॉग और इंसानियत की भाषा बोलता है।

भारत ने यह साफ़ कर दिया है कि शक्ति के साथ शालीनता भी ज़रूरी है। इतिहास गवाह है, भारत ने कभी पहले हमला नहीं किया, लेकिन जब भी इंसानियत पर हमला हुआ — भारत मौन नहीं रहा।


📌 आज़माइश के दौर में दोस्त की परख होती है

जब दुनिया ने चुप्पी ओढ़ ली, भारत ने आवाज़ उठाई। वही भारत ने ईरान को सीने से लगाया है। आज ईरान के घावों पर जो मरहम रखा गया है, वह किसी औपचारिक राजदूत की चिट्ठी नहीं, दोस्ती, तहज़ीब और इन्कलाब के रिश्ते की ताबीर है।

“तूफानों में जो हाथ थामे, वही सच्चा यार होता है।”
और इस बार भारत ने वही हाथ बढ़ाया है।

 

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