भारत की सुप्रीम रिलीजियस अथॉरिटी, आफ़ताबे शरीअत मौलाना डॉ. कल्बे जवाद नक़वी का बड़ा बयान –वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम फैसला चिंताजनक ,वक्फ संपत्तियों की हिफाज़त के लिए आंदोलन का ऐलान

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तहलका टुडे टीम

लखनऊ, 19 सितंबर। सेव वक्फ इंडिया मिशन के संरक्षक और मजलिस-ए-उलमा-ए-हिंद के महासचिव, इमाम-ए-जुमा मौलाना डॉ. सैय्यद कल्बे जवाद नक़वी ने वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले को “निराशाजनक और चिंताजनक” बताया। उन्होंने साफ कहा कि यह फैसला सरकार के दबाव में आया है और मुसलमानों को अब अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी।

मौलाना ने कहा—“सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संतोषजनक नहीं है। सरकार ने जजों को डराने-धमकाने और उन पर राजनीतिक दबाव डालने की हर कोशिश की। इसका असर अंतरिम आदेश में साफ झलकता है। जब सरकार के मंत्री ही मुख्य न्यायाधीश पर सवाल उठाते और धमकाते हैं, तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।”

‘वक्फ बाय यूज़र’ पर अदालत की खामोशी

मौलाना ने कहा कि मुसलमानों की सबसे बड़ी आपत्ति “वक्फ बाय यूज़र” को खत्म करने पर थी, लेकिन अदालत ने इस पर चुप्पी साध ली। इसके विपरीत अदालत ने वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) अनिवार्य कर दिया है।
उन्होंने सवाल उठाया—“आख़िर 200-400 साल पुराने दस्तावेज़ मुसलमान कहाँ से लाएँगे? यह कानून दरअसल हमारी संपत्तियों को हड़पने की साज़िश है। केवल तीन धाराओं पर अंतरिम रोक लगना नाकाफी है। असली लड़ाई अभी बाकी है और हमारा रुख साफ है—पूरा कानून वापस होना चाहिए।”

गैर-मुस्लिमों की सदस्यता पर आपत्ति

मौलाना ने अदालत द्वारा सेंट्रल वक्फ काउंसिल और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने की संभावना पर भी कड़ी आपत्ति जताई।
उन्होंने तीखा सवाल किया—“क्या सरकार और अदालत राम मंदिर ट्रस्ट में मुसलमानों को सदस्य बना सकती हैं? क्या अन्य धर्मों के धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों को जगह दी जा सकती है? जब वहां यह संभव नहीं, तो वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम क्यों?”

हुसैनाबाद ट्रस्ट में धांधली और कब्ज़े

मौलाना ने हुसैनाबाद ट्रस्ट में लगातार हो रहे भ्रष्टाचार और कब्ज़ों की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि फूल मंडी से घंटाघर जाने वाली पूरी सड़क वक्फ हुसैनाबाद की थी, लेकिन उस पर कब्ज़ा कर लिया गया।
उन्होंने आरोप लगाया—“फूल मंडी के सामने वक्फ हुसैनाबाद की ज़मीन को सड़क में मिला दिया गया। वहां लगा हुसैनाबाद की मिल्कियत दर्शाने वाला बोर्ड तोड़कर नाले में डाल दिया गया। जिलाधिकारी इसे प्राइवेट ट्रस्ट बताकर RTI से बाहर मानते हैं, ताकि जनता को कभी हिसाब न मिल सके। दरअसल पूरी संपत्ति पर सरकार का कब्ज़ा है और आय का कोई रिकॉर्ड जनता तक नहीं पहुँचता।”

आंदोलन की पुकार

मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने साफ कहा कि वक्फ संशोधन कानून की वापसी और हुसैनाबाद ट्रस्ट की हिफाज़त के लिए आंदोलन अब अनिवार्य है। उन्होंने उलमा, अंजुमनों और आम मुसलमानों से मतभेद भुलाकर एकजुट होने की अपील की।
उन्होंने कहा—“अगर जनता ताक़त से आवाज़ उठाए, तो सरकारें गिर जाती हैं। बांग्लादेश और नेपाल इसके ताज़ा उदाहरण हैं। अगर हमने अब खामोशी बरती तो वक्फ संपत्तियों का अस्तित्व मिट जाएगा।”

मौलाना ने एलान किया कि बहुत जल्द उलमा और अंजुमनों की बड़ी बैठक होगी, जिसमें आंदोलन की रणनीति तय की जाएगी।
“यह वक्फ की हिफाज़त का वक़्त है। अब खामोशी नहीं, इंकलाब ज़रूरी है,”

 

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