रिपोर्ट: सैयद रिज़वान मुस्तफा
जब दुनिया को लगता है कि ईरान सिर्फ़ ‘परमाणु बम’ बनाने के पीछे पड़ा है, तब वह एक नई ख़ामोश इंक़लाबी रेखा खींच देता है — इंसानियत की भलाई के लिए। अमेरिका और जर्मनी, जो हार्ट वाल्व जैसी जान बचाने वाली डिवाइस को ₹8 लाख तक में बेचते हैं, उन्हें आज ईरान ने महज़ ₹16 हज़ार की लागत में बना डाला है — और हज़ारों मरीज़ों को मुफ़्त में लगा भी दिया।
अब सोचिए, जो मुल्क दुनिया की आंखों में ‘खतरा’ बना के पेश किया गया, वो असल में खुदा के बंदों के लिए ‘नेमत’ बनकर उभरा है।
जिन्होंने दुआओं की क़द्र की, उन्हे खुदा ने दवा दी
ईरान का ये कारनामा महज़ मेडिकल साइंस नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, अदम-इस्तेहकाम के खिलाफ़ उठी एक इंकलाबी चुप्पी है। अमेरिका और जर्मनी जैसे तथाकथित ‘तरक्कीपसंद’ मुल्कों ने हार्ट वाल्व जैसी डिवाइसेज़ पर पेटेंट के नाम पर मुनाफ़ाखोरी का बाज़ार बनाया हुआ था। लेकिन अब ईरान के डॉक्टर्स, इंजीनियर्स और रिसर्च साइंटिस्ट्स ने मिलकर वो कर दिखाया जो सिर्फ़ दुआओं और जुनून से मुमकिन होता है।
ईरान की टेक्नोलॉजी अब सिर्फ़ मिसाइल नहीं, मोहब्बत भी बन रही है
जहाँ अमेरिका और इज़राइल बमों से दिल दहलाते हैं, वहीं ईरान हार्ट वाल्व से धड़कनों को बचा रहा है। यह वो ज़मीनी सच्चाई है जिसे मीडिया या तो छुपाता है, या तोड़-मरोड़ कर दिखाता है।
ईरान के इस प्रोजेक्ट का नाम है: “Rah-e-Hayat” — यानी “ज़िंदगी की राह”।
लुटेरे मुल्कों को झटका: अमेरिका अब क्या खुराफ़ात करेगा?
ईरान की इस क़ामयाबी के बाद अब वाशिंगटन और बर्लिन के हेल्थ टेक्नोलॉजी कार्टेल को बड़ा झटका लगा है। जो सामान पहले सिर्फ अमीरों की पहुंच में था, अब ग़रीब इंसान भी उसे पा सकता है। यही बात इन ‘लुटेरे मुल्कों’ को हज़म नहीं हो रही।
क्योंकि दवा अगर सस्ती हो जाए, तो मुनाफ़ा ख़त्म हो जाता है — और यही पश्चिमी दुनिया का सबसे बड़ा डर है।
तेहरान से लेकर तमाम बेवा मांओं की दुआओं तक: ये साइंस नहीं, सवाब है
जिस मिट्टी ने शहीद क़ासिम सुलेमानी जैसे लोग पैदा किए, उसी मिट्टी में अब वो तकनीक पैदा हो रही है जो दुनिया के ग़रीबों को नई ज़िंदगी देगी। अब ईरान के अस्पतालों में वो लोग इलाज पा रहे हैं जो पहले सिर्फ़ इंतज़ार करते थे — या फिर क़र्ज़ में डूबकर जान बचाते थे।
एक सवाल हम सब से: क्या ये बायकॉट करने वाला मुल्क है या सलाम करने वाला?
आज अगर दुनिया वाकई इंसाफ़ चाहती है, तो उसे देखना चाहिए कि ईरान ने बम नहीं, दिल बनाया है। जान ली नहीं, जान बचाई है। और वो भी बिना शोर, बिना घमंड — सिर्फ़ इंसानियत के नाम पर।
तो अब अमेरिका-इज़राइल को हार्ट अटैक चाहिए या इंसानियत का इलाज?
क्योंकि अब आवाज़ उठेगी, और सच्चाई बोलेगी!
ईरान जिंदाबाद | दुआओं की साइंस जिंदाबाद | इंसानियत सरफ़राज़