“जब मिम्बर हुसैनी से निकली ग़ीबत, तौहीन और इल्ज़ाम की आवाज़ — मौलाना ग़जनफ़र अब्बास तूसी से सवाल: क्या हज़रत अब्बास (अ.स) की दरगाह पर इमामे ज़माना (अ.ज) की जागीर के नाम पर झूठ, मक्कारी और सियासत भू माफियाओं को बचाने के लिए जायज़ है? कुरआन और अहलेबैत (अ.स) की तालीमात की रौशनी में इस गंदी हरकत का हिसाब ज़रूरी है!”

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“मिंबर रसूल ,हुसैनी से ग़ीबत नहीं ग़म का पैग़ाम दीजिए जनाब — मौलाना तूसी की ज़बान से निकले ज़हर का जवाब कुरआन और अहलेबैत की रोशनी में”

तहलका टुडे टीम/हसनैन मुस्तफा


मजलिसें सिर्फ इमाम हुसैन (अ.स) के ग़म का इज़हार नहीं, बल्कि इंसानियत, सब्र, अद्ल और हक़ की बुलंदी का मजहर होती हैं। ये मिम्बर इमामे मासूम (अ.स) की अमानत है, जहाँ से अल्लाह और रसूल (स.अ.व) की तालीमात, कुरआन की तर्जुमानी और अहलेबैत की रोशनी बिखरनी चाहिए — न कि नफरत, ग़ीबत, तौहीन और ज़ाती अदावत का जहर।

मगर अफ़सोस, दरगाह हज़रत अब्बास अलमदार बघरा की सालाना मजलिस के मौके पर जो कुछ मौलाना ग़जनफ़र अब्बास तूसी की ज़बान से निकला, उसने मजलिस के पाक मफ़हूम, मिम्बर की साख और शिया तहज़ीब पर एक सवाल खड़ा कर दिया।


कुरआन की रोशनी में ग़ीबत की हकीकत:
कुरआन मजीद में फरमाया गया:

“ऐ ईमान वालों! बहुत से गुमान से बचो, कुछ गुमान गुनाह होते हैं। और एक-दूसरे की जासूसी न करो, और न एक-दूसरे की ग़ीबत किया करो। क्या तुममें से कोई अपने मरे हुए भाई का गोश्त खाना पसंद करेगा? तुम तो इससे घिनाते हो!”
(सुरह हुजुरात, आयत 12)

क्या मौलाना तूसी को यह आयत याद नहीं थी? या फिर मिम्बर को उन्होंने अपनी ज़ात के ग़ुस्से का अड्डा समझ लिया था?


हज़रत अब्बास अलमदार (अ.स): इख़लास और वफ़ादारी का पैग़ाम:
जिस दरगाह का नाम लेकर आपने खुद को साबित करने की कोशिश की, क्या उसी दरगाह के सरदार हज़रत अब्बास (अ.स) ने कभी किसी पर इल्ज़ाम लगाए थे? करबला के तपते हुए मैदान में उन्होंने सिर्फ इमामे वक्त की इताअत की। उनकी ज़िंदगी का हर लम्हा वफ़ादारी, सब्र, और तहज़ीब का नमूना था।

क्या आपने उस वफ़ादार बेटे के दरगाह से जुड़ने का मतलब समझा भी है?


इल्ज़ामात का सैलाब — जवाब कौन देगा?
आपने मजलिस में यह दावा किया कि “दो दिन में बीस करोड़ आ गए” — तो फिर सवाल उठता है:

  • वो बीस करोड़ गए कहाँ?
  • किसने 60 लाख डकार लिए?
  • किसके हाथों 1 लाख और फिर 65 लाख में तौलियत की सनदें बिक गईं?

अगर ये सच है तो सरकार से शिकायत क्यों नहीं की गई?
कोर्ट में मुकदमा क्यों नहीं दायर किया गया?
वक्फ बोर्ड, CBI, या EOW में शिकायती चिट्ठियाँ क्यों नहीं भेजीं?

अगर इल्ज़ाम लगाना ही मक़सद था, तो क्या ये मिम्बर का इस्तेमाल है या सियासी मंच का?


सेव वक्फ इंडिया मिशन — मज़ाक नहीं, इमामे ज़माना की जागीर की हिफाज़त की कोशिश:
जिस मिशन ने इमामे ज़माना (अ.ज) के वक्फ की हिफाज़त के लिए सरकारों से लड़ाई लड़ी, मीडिया और अदालत तक आवाज़ उठाई, आपने उसी मिशन का मज़ाक उड़ाया। आफताब ए शरीयत का मजाक उड़ाया।

क्या ये मज़ाक इमामे ज़माना की जागीर का मज़ाक नहीं है?
क्या ये वक्फ की सैकड़ों एकड़ ज़मीन को माफियाओं से छुड़ाने की कोशिशों की तौहीन नहीं है?


आपने क्या किया, मौलाना गजनफर अब्बास तूसी?

  • क्या कभी किसी अनाथ की पढ़ाई करवाई?
  • किसी गरीब लड़की की शादी कराई?
  • किसी बीमार के इलाज के लिए खड़े हुए?
  • वक्फ की एक इंच ज़मीन भी माफिया से वापस ली?
  • किसी बेरोज़गार के लिए रोजगार लाए?

या सिर्फ बड़े लिबास, भारी भरकम लफ़्ज़ों और “वाह वाह” करने वालों के जमघट से अपने अहम की तस्कीन करते रहे?


अहलेबैत (अ.स) की तालीम — सब्र, सच्चाई और खुदा का खौफ:
इमाम सादिक (अ.स) ने फरमाया:

“हमारे शिया वो हैं जिनकी ज़ुबान सच्ची, दिल साफ़, और अमल नेक हो।”

क्या आप वाकई शिया कहलाने के लायक हैं?

मौलाना ग़जनफ़र अब्बास तूसी साहब,
आपने जो कुछ मिम्बर पर कहा, वो कुरआन, हदीस, और अहलेबैत (अ.स) की तालीमात के खिलाफ़ था। मिम्बर से ग़ीबत, इल्ज़ाम, तौहीन और झूठ का बोलबाला करके आपने उस मिम्बर की तौहीन की है जो इमामे मासूम की अमानत है।

आज भी वक़्त है, तौबा कीजिए, क़ौम से माफ़ी मांगिए और फिर से कुरआन और अहलेबैत की राह पर चलने का संकल्प लीजिए।
वरना एक दिन यही मिम्बर आपके खिलाफ़ गवाही देगा।


“ग़ीबत से भरी मजलिसें इमामे हुसैन (अ.स) की नहीं हो सकतीं। अगर आपकी ज़ुबान से इंसाफ़ नहीं निकलता, तो मिम्बर को छोड़ दीजिए — क्योंकि ये मिम्बर उस अब्बास अलमदार (अ.स) का है, जिसने कभी हक सब्र और इंसाफ का दामन नहीं छोड़ा।

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