तहलका टुडे टीम
भारत ने रक्षा क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने ओडिशा के तट पर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से अपनी पहली लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया। इस मिसाइल को सशस्त्र बलों के लिए 1,500 किलोमीटर से अधिक की दूरी तक विभिन्न प्रकार की विस्फोटक सामग्री ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
परीक्षण की विशेषताएँ
इस हाइपरसोनिक मिसाइल को कई डोमेन में तैनात विभिन्न रेंज प्रणालियों द्वारा ट्रैक किया गया। डाउन रेंज शिप स्टेशनों से प्राप्त उड़ान डेटा ने अत्यधिक सटीकता के साथ सफल टर्मिनल कौशल और प्रभाव की पुष्टि की। इसे हैदराबाद स्थित डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम मिसाइल कॉम्प्लेक्स की प्रयोगशालाओं तथा डीआरडीओ की विभिन्न प्रयोगशालाओं और उद्योग भागीदारों द्वारा पूरी तरह स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है।
इस परीक्षण का नेतृत्व डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिकों और सशस्त्र बलों के अधिकारियों की उपस्थिति में किया गया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए डीआरडीओ और सशस्त्र बलों को बधाई दी। उन्होंने इसे भारत को एक तकनीकी महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया।
हाइपरसोनिक मिसाइल की प्रमुख खासियतें
अत्यधिक गति: यह मिसाइल ध्वनि की गति से कम से कम पांच गुना तेज़, यानी लगभग 6174 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से हमला करने में सक्षम है।
लंबी दूरी: यह 1,500 किलोमीटर से अधिक की दूरी तक पेलोड ले जाने की क्षमता रखती है।
अदृश्यता: इसकी अत्यधिक गति और डिज़ाइन के कारण इसे दुश्मन की रडार प्रणालियों द्वारा ट्रैक करना बेहद मुश्किल है।
सटीकता: यह आधुनिक सैन्य प्रौद्योगिकी, प्रतिरोधक क्षमता और उच्च मारक शक्ति से लैस है।
भारत का स्थान और वैश्विक परिप्रेक्ष्य
भारत इस सफल परीक्षण के साथ उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो गया है जिनके पास हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक है। इस क्षेत्र में रूस, चीन, और संयुक्त राज्य अमेरिका पहले से ही अग्रणी हैं।
रूस:
रूस ने “अवांगार्ड”, “किंजल” और “जिरकॉन” जैसी हाइपरसोनिक मिसाइलों का सफल विकास और तैनाती की है।
चीन:
चीन की “DF-ZF” मिसाइल अत्यधिक गति और सटीकता के लिए जानी जाती है।
संयुक्त राज्य अमेरिका:
अमेरिका “AGM-183A ARRW” और “C-HGB” जैसे हाइपरसोनिक हथियारों पर काम कर रहा है।
भारत का HSTDV (Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle) डीआरडीओ द्वारा विकसित एक स्वदेशी प्रणाली है, जो भविष्य की हाइपरसोनिक मिसाइल परियोजनाओं के लिए आधारशिला है। इसके अतिरिक्त, भारत रूस के सहयोग से ब्रह्मोस-II विकसित कर रहा है, जो मच 7 से मच 8 की गति तक पहुंच सकेगी।
भविष्य की रणनीतियाँ
इस मिसाइल प्रणाली के सफल परीक्षण से भारत की रक्षा क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि भारत की आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उसकी स्थिति को भी सुदृढ़ करेगा।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत ने टीम को इस सफलता पर बधाई दी और इसे भारत के रक्षा इतिहास का एक मील का पत्थर बताया।
हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक में भारत की यह प्रगति देश को एक तकनीकी महाशक्ति बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह मिसाइल न केवल भारत की सैन्य शक्ति को मजबूती प्रदान करेगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसकी रक्षा और तकनीकी क्षमताओं को पहचान दिलाएगी।