तहलका टुडे टीम
बाराबंकी। बुलडोज़र अक्सर उन इमारतों पर चलते देखे गए हैं जिन्हें “माफिया” या “गुंडों का अड्डा” कहा गया। लेकिन इस बार बुलडोज़र उस जगह चला, जिसे शिक्षा का मंदिर कहा जाता था। श्री राम स्वरूप मेमोरियल यूनिवर्सिटी, जो अयोध्या के द्वार पर बसे बाराबंकी की पहचान बन चुकी थी, अब FIR और प्रशासनिक कार्यवाही की चपेट में है।
यह घटना सिर्फ एक विश्वविद्यालय पर कार्यवाही का मामला नहीं है, बल्कि उस भविष्य पर गहरा प्रहार है जहाँ से निकलने वाले हज़ारों छात्र देश की तरक्की में योगदान देने वाले थे।
FIR और बुलडोज़र की कार्रवाई – शिक्षा के मंदिर में भूचाल
उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा परिषद की रिपोर्ट और शासन स्तर की संस्तुति के बाद विश्वविद्यालय पर आरोप लगा कि पिछले तीन वर्षों से बिना मान्यता के विधि पाठ्यक्रम संचालित किया जा रहा है। इसी आधार पर थाना कोतवाली, बाराबंकी में FIR दर्ज कराई गई और जिला प्रशासन ने बुलडोज़र कार्यवाही शुरू कर दी।
कोतवाली नगर क्षेत्र के एनिमल हाउस हिस्से में बुलडोज़र चलते ही अफ़रातफ़री मच गई। मौके पर एसडीएम सदर और राजस्व टीम मौजूद रही और सर्वे कर अवैध कब्ज़े का हवाला दिया गया। प्रशासन का कहना है कि जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे और अतिक्रमण सामने आ रहे हैं। कार्यवाही कई दिनों तक चल सकती है।
11,000 छात्रों के सपनों की साख को पहुंचाया गया संकट,किया गया बदनाम
इस विवाद की सबसे बड़ी मार उन 11 हज़ार से अधिक छात्रों पर पड़ रही है, जो यहाँ पढ़ रहे हैं।
- जिन छात्रों ने सालों की मेहनत से डिग्री पाई, अब वे आशंकित हैं कि कहीं उनकी डिग्रियों पर दाग न लग जाए।
- जिन परिवारों ने कर्ज़ लेकर अपने बच्चों को यहाँ पढ़ाया, अब उनके सामने भविष्य धुंधला नज़र आ रहा है।
- सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या छात्रों की मेहनत को राजनीतिक साज़िशों और प्रशासनिक सख्ती की भेंट चढ़ा दिया जाएगा?
छात्रों और अभिभावकों की आवाज़
👉 आकाश वर्मा, लॉ स्टूडेंट (4th Year):
“हम यहाँ पढ़ने आए थे ताकि वकालत कर समाज की सेवा कर सकें। अब अचानक कहा जा रहा है कि कोर्स की मान्यता ही नहीं थी। यह हमारी गलती नहीं थी, लेकिन सज़ा हमें क्यों मिल रही है?”
👉 नेहा त्रिपाठी, बी.टेक छात्रा:
“मेरे माता-पिता ने कर्ज़ लेकर मुझे यहाँ दाखिला दिलाया। अब हर दिन डर लगता है कि डिग्री का कोई मूल्य रहेगा भी या नहीं। शिक्षा से खेलना किसी का भी हक नहीं है।”
👉 रमेश सिंह, अभिभावक:
“मैं किसान हूँ। अपनी ज़मीन गिरवी रखकर बेटी को पढ़ा रहा हूँ। अब यह विवाद और बुलडोज़र देखकर लग रहा है कि हमारी मेहनत मिट्टी में मिल जाएगी। अगर गलती यूनिवर्सिटी की थी तो सरकार को उसे सुधारना चाहिए, छात्रों को बर्बाद करना नहीं।”
👉 फातिमा बेगम, अभिभावक:
“यह राजनीति का खेल है। बच्चे पढ़ाई के लिए गए थे, उन्हें मोहरा बना दिया गया। सरकार और विपक्ष दोनों को चाहिए कि छात्रों को राजनीति से दूर रखें।”
ABVP और विपक्ष पर आरोप – सियासी खेल के पीछे कौन?
विश्वविद्यालय प्रशासन और समर्थकों का आरोप है कि यह पूरा विवाद एक सुनियोजित साज़िश है। उनका कहना है कि 24 लोगों ने, जिनके तार सपा और कांग्रेस से जुड़े बताए जाते हैं, ABVP के बैनर का सहारा लेकर विश्वविद्यालय में बवाल खड़ा किया।
सिर्फ़ दो निलंबित छात्रों को बहाना बनाकर हज़ारों छात्रों की पढ़ाई बाधित की गई। कैंपस में हंगामा, मारपीट और गुंडई की घटनाएँ करवाई गईं ताकि मीडिया में सहानुभूति जुटाई जा सके।
ABVP, जिसे हमेशा छात्र स्वाभिमान और अधिकारों की आवाज़ माना गया, उसके नाम पर इस विवाद का राजनीतिकरण होना छात्रों और समाज दोनों के लिए सवाल खड़े कर रहा है।
हर तरफ निंदा – शिक्षा को राजनीति से दूर रखने की मांग
बुलडोज़र की इस कार्रवाई की चारों ओर निंदा हो रही है। शिक्षा से जुड़े विशेषज्ञों, बुद्धिजीवियों और आम अभिभावकों का कहना है कि:
- यदि विश्वविद्यालय से कोई गलती हुई है तो सुधार और दंड की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए,
- लेकिन बुलडोज़र चलाकर शिक्षा को बर्बाद करना किसी भी दृष्टि से सही नहीं है।
- छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ रोकने के लिए सरकार को निष्पक्ष और संवेदनशील रुख अपनाना चाहिए।
शिक्षा बनाम राजनीति
राम स्वरूप यूनिवर्सिटी का विवाद इस बात का प्रतीक बन गया है कि जब शिक्षा राजनीति के अखाड़े में धकेल दी जाती है, तो सबसे ज़्यादा नुकसान छात्रों का होता है।
आज सवाल यह नहीं है कि दोषी कौन है और निर्दोष कौन, बल्कि सवाल यह है कि 11 हज़ार छात्रों के सपनों का क्या होगा?
यदि यह साज़िश है तो साज़िशकर्ताओं को कठोर दंड मिलना चाहिए, और यदि प्रशासनिक कमियाँ हैं तो उनका समाधान छात्रों को नुकसान पहुँचाए बिना होना चाहिए।
क्योंकि शिक्षा का मंदिर सिर्फ इमारत नहीं होता, बल्कि उसमें पढ़ने वाले छात्रों के सपने और भविष्य ही उसकी असली पहचान होते हैं।