तहलका टुडे टीम
लखनऊ/महिलाबाद,जब मिट्टी की महक में लिपटी हुई तहज़ीब, आम के पेड़ों की छांव, और दिलों में उबाल मारता देशभक्ति का जज़्बा एक जगह इकट्ठा हो जाए — तब कोई आयोजन सिर्फ़ एक सम्मान समारोह नहीं रहता, वह एक आंदोलन बन जाता है, एक प्रेरणा बनकर उभरता है।
ऐसा ही अनोखा और ऐतिहासिक दृश्य देखने को मिला उत्तर प्रदेश के महिलाबाद में, जहाँ विश्वविख्यात आम वैज्ञानिक पद्म श्री कलीमुल्लाह खान को अम्बर फाउंडेशन के चेयरमैन वफ़ा अब्बास ने “अम्बर रत्न सम्मान” से नवाज़ा। यह कार्यक्रम न तो किसी आलीशान मंच पर हुआ और न ही चमक-दमक के साये में — बल्कि वहीं, उस ज़मीन पर, जहाँ कलीमुल्लाह साहब ने अपने जीवन की पूंजी, अपने श्रम और समर्पण से 500 से अधिक आम की अनूठी किस्मों को जन्म दिया।
वफ़ा अब्बास ने उन्हें शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया और कहा:
“आज हम उस मिट्टी को सलाम करने आए हैं जिसमें कलीमुल्लाह साहब जैसे लोग पैदा होते हैं। इन्होंने खेत को प्रयोगशाला बना दिया और भारत को कृषि विज्ञान का गौरव दिलाया। आज अमेरिका, यूएई, ईरान जैसे देश इनके ज्ञान का लोहा मानते हैं।”
वहीं पद्म श्री कलीमुल्लाह खान ने भी दिल से बात की और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को देश की सुरक्षा और साहसिक निर्णयों के लिए खुले दिल से सराहा। उन्होंने कहा:
“आज का किसान खुद को केवल अन्नदाता नहीं, बल्कि देश का सच्चा सिपाही भी मानता है। जब पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक हुई, तो हमें यह अहसास हुआ कि भारत अब हर वार का जवाब देने वाला मुल्क बन गया है। इसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे नेताओं की बड़ी भूमिका है।”
यह आयोजन केवल एक औपचारिकता नहीं था, यह एक संस्कृति की पुनर्प्रस्तुति थी — जहाँ देशप्रेम का इज़हार पेड़ों की टहनियों पर टंगे फलों की तरह स्वाभाविक और मीठा लगा। वहाँ न कोई भारी-भरकम भाषण थे, न ही दिखावे की राजनीति — केवल भारतीयता की जड़ों में बसी सहजता और सच्चाई।
वफ़ा अब्बास का अंदाज़ एक बार फिर लोगों के दिलों में उतर गया। वे उन चुनिंदा समाजसेवियों में से हैं जो देश की महान विभूतियों को सिर्फ़ मंच पर नहीं, बल्कि उनकी आत्मा से जुड़कर सम्मानित करते हैं। उन्होंने इस सम्मान को एक नई सोच, नई शैली और नई संवेदनशीलता दी।
इस मौके पर प्रेस फाउंडेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा, खदीजा फाउंडेशन के सचिव अली आगा, और कई युवा सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे, जिन्होंने इस माहौल को और प्रेरणादायक बना दिया।
कार्यक्रम की हर झलक ने यह बताया कि यह सम्मान सिर्फ़ एक व्यक्ति का नहीं था, यह उस भारत का सम्मान था जो अपने किसान को वैज्ञानिक और अपने नेता को रक्षक मानता है। यह उस संस्कृति की झलक थी जिसमें देशभक्ति, मेहनत और नवाचार एक साथ चलते हैं।
कार्यक्रम का समापन इन विचारों के साथ हुआ:
“जहाँ पेड़ सिर्फ़ फल नहीं, विचार भी दें — वहीं से असली क्रांति जन्म लेती है। और ऐसी क्रांति कलीमुल्लाह जैसे कर्मयोगियों के कंधों पर आगे बढ़ती है।”