✍️ रिपोर्ट — रिज़वान मुस्तफ़ा
🌍 दुनिया की “सुपरपावर” का डगमगाता ताज
कभी पूरी दुनिया को आर्थिक प्रतिबंधों और सैन्य ताक़त से झुकाने वाला अमेरिका आज खुद आर्थिक संकट, राजनीतिक जड़ता और प्रशासनिक ठपपन से जूझ रहा है।
ईरान और भारत जैसे देशों पर टैरिफ और प्रतिबंध लगाने वाले इस देश की अपनी ही व्यवस्था सरकारी शटडाउन की वजह से चरमराने लगी है।
जहां कभी यह देश “दूसरों की उड़ानें रोकता था”, आज खुद उसकी उड़ानें ज़मीन पर खड़ी हैं।
💸 अमेरिका की ‘शक्ति’ अब उसके ही खिलाफ़
वॉशिंगटन से लेकर लॉस एंजिल्स तक हवाई अड्डों पर अफरा-तफरी मची है।
सरकारी कामकाज 36 दिनों से ठप है —
13,000 एयर ट्रैफिक कंट्रोलर और 50,000 TSA अधिकारी बिना वेतन के काम कर रहे हैं।
FAA को मजबूर होकर घोषणा करनी पड़ी कि देश के 40 प्रमुख हवाई अड्डों पर हवाई यातायात में 10% कटौती की जाएगी।
कभी “सुरक्षा के प्रतीक” कहे जाने वाले अमेरिकी एयरपोर्ट अब अव्यवस्था और इंतज़ार के प्रतीक बन गए हैं।
“हम सुरक्षा से समझौता नहीं करेंगे, लेकिन उड़ानों को सीमित करना ही एकमात्र रास्ता है।”
— ब्रायन बेडफोर्ड, FAA प्रशासक
⚠️ कुदरत की मार या इंसान का गुरुर?
अमेरिका ने दशकों तक ईरान, रूस और चीन जैसे देशों पर आर्थिक बंदिशें लगाकर अपनी शक्ति जताई।
भारत से व्यापारिक करारों पर टैरिफ बढ़ाकर उसने “सुपरपावर” का रुतबा बनाए रखा।
लेकिन आज जब खुद उसी की अर्थव्यवस्था “हवा-हवाई” साबित हो रही है,
तो यह सवाल उठता है —
क्या यह गुरुर का अंजाम है या कुदरत की मार?
🏭 जब ईरान और भारत ने झुकने से इंकार किया
अमेरिका ने तेल व्यापार को लेकर ईरान पर सबसे सख्त प्रतिबंध लगाए।
फिर भारत को भी चेतावनी दी कि अगर वह ईरान से तेल खरीदेगा, तो “नतीजे भुगतने होंगे।”
लेकिन नतीजा उल्टा हुआ —
ईरान ने रूस और चीन के साथ नया ऊर्जा गलियारा (Energy Corridor) शुरू कर दिया।
भारत ने भी ईरान के साथ चाबहार पोर्ट समझौते को जारी रखा, जिससे मध्य एशिया तक उसका प्रभाव बढ़ गया।
इस कदम ने अमेरिकी दबाव को तोड़ा और दिखाया कि नई दुनिया बहुध्रुवीय (Multipolar) बन चुकी है,
जहाँ अमेरिका की धमक अब उतनी कारगर नहीं रही।
📉 आर्थिक रूप से कमजोर होता अमेरिका
- राष्ट्रीय ऋण (National Debt): 35 ट्रिलियन डॉलर के पार
- मुद्रास्फीति (Inflation): 4.2% — जो पिछले 10 सालों में सबसे ऊँची
- रोज़गार दर: टेक सेक्टर में 12% तक छंटनी
- शेयर बाज़ार: Dow Jones और Nasdaq दोनों में 8% गिरावट
अमेरिका के अंदरूनी हालात अब यह दर्शा रहे हैं कि “डॉलर की ताकत” के पीछे खड़ी व्यवस्था कमज़ोर नींव पर टिके महल जैसी है।
🕊️ ईरान का जवाब: ‘हम झुकेंगे नहीं’
ईरान ने हाल ही में अपने राष्ट्रपति डॉ. मसऊद पेज़ेश्कियन के नेतृत्व में कहा:
“हम पर जितनी बंदिशें लगाओ, हमारी अर्थव्यवस्था खुदनिर्भर बनती जाएगी।”
ईरान न सिर्फ़ तेल, बल्कि रेलवे, रक्षा और परमाणु तकनीक में स्वदेशी विकास की राह पर बढ़ रहा है।
इसका सीधा असर यह हुआ है कि अमेरिका की “एकध्रुवीय नीतियाँ” अब अप्रासंगिक लगने लगी हैं।
🌏 भारत की रणनीतिक मजबूती
भारत ने अमेरिका के दबाव के बावजूद ईरान, रूस और अरब देशों के साथ अपने आर्थिक संबंध और भी मज़बूत किए।
- INSTC (International North–South Transport Corridor) से भारत से रूस तक नया व्यापार मार्ग शुरू हुआ।
- तेल आयात में विविधता बढ़ाकर भारत ने अमेरिकी दबाव से स्वतंत्र नीति अपनाई।
भारत अब पश्चिम के आदेश पर नहीं, बल्कि अपने हित पर निर्णय ले रहा है — और यही अमेरिका के “गुरुर” पर सबसे बड़ा झटका है।
‘सुपरपावर’ की उड़ान जमीन पर आ गई
आज अमेरिकी हवाई अड्डों पर अफरा-तफरी है,
वेतन के बिना कर्मचारी काम छोड़ रहे हैं,
और “सुरक्षा” के नाम पर देश में उड़ानें घटाई जा रही हैं।
यह वही देश है जिसने कभी दूसरों की अर्थव्यवस्था रोकने के लिए प्रतिबंध लगाए,
और आज खुद अपने ही प्रतिबंधों में घिरकर हिल गया है।
ऐ ज़िंदगी, गुरुर का अंजाम देख ले
कभी जो दुनिया को “लोकतंत्र” और “आर्थिक अनुशासन” सिखाता था,
आज वही देश अराजकता, कर्ज़ और ठप व्यवस्था का शिकार है।
कुदरत ने शायद उसे यह दिखा दिया है कि
“शक्ति जब अहंकार बन जाए, तो पतन उसकी नियति होती है।”




