तहलका टुडे टीम
लखनऊ/नई दिल्ली, 13 जून 2025:
ईरान पर इज़राइल के कायराना हमले के बाद, भारत के कई शहरों में रोष, शोक और इत्तेहाद का नज़ारा देखने को मिल रहा है। मुसलमानों के साथ-साथ अमनपसंद नागरिकों ने ज़ुल्म के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद करते हुए जगह-जगह क़ुरान की तिलावत, दुआएं और इबादतों का सिलसिला शुरू कर दिया है।
लखनऊ से गूंजा संदेश — “जालिम को शिकस्त मिले, मज़लूम को राहत”
भारत की राजधानी दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, मुंबई, पटना, चेन्नई सहित कई शहरों में इबादतगाहों में ईरान की सलामती और ज़ालिम के नाश के लिए दुआएं मांगी गईं।
लेकिन सबसे ख़ास नज़ारा देखने को मिला उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में — जो भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का संसदीय क्षेत्र भी है।
- यहां हज़रतगंज, मुफ्तीगंज, नक्खास, दरगाह, घंटाघर,शीश महल,सज्जाद बाग,गार वाली करबला,और राजाजीपुरम में स्थित इबादतगाहों में तिलावत-ए-क़ुरान और दुआएं आयोजित की गईं।
हर ज़ुबान पर एक ही जुमला था:
“ईरान की हिफ़ाज़त हो, ज़ालिम की तबाही हो, दुनिया में अमन कायम हो!”
भारत की सुप्रीम धार्मिक शख़्सियत मौलाना डॉ. कल्बे जवाद नकवी का ऐलान — “जुल्म के खिलाफ़ दुआ भी हथियार है”
भारत की सुप्रीम रिलीजियस अथॉरिटी और आलिम-ए-दीन आफ़ताब-ए-शरीअत मौलाना डॉ. कल्बे जवाद नकवी ने लखनऊ में एक बयान जारी करते हुए कहा:
❝ईरान पर हमला दरअसल इंसानियत पर हमला है। जब कोई ज़ालिम मज़लूम पर हमला करता है, तो पूरे जहान के इंसाफ़ पसंद लोगों को उसका जवाब देना चाहिए — और दुआ एक अज़ीम हथियार है जो दिलों को जोड़ता है और आसमानों तक असर करता है।❞
उन्होंने मस्जिदों, इमामबाड़ों और दरगाहों में विशेष दुआओं और तिलावत की अपील की, जिस पर देशभर में अमल हो रहा है।
युवा और बच्चों की भी भागीदारी — “हम ईरान के साथ हैं” के नारे
कई जगहों पर स्कूल, मदरसों और युथ ऑर्गनाइजेशन्स ने भी ईरान के लिए विशेष प्रार्थनाएं आयोजित कीं। सोशल मीडिया पर #WeStandWithIran और #PrayersForPeace जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
इंसानियत के हक़ में भारत की सरज़मीन पर उठी आवाज़
यह पहली बार नहीं है जब भारत ने मज़लूम के लिए आवाज़ उठाई है। भारत की मिट्टी गंगा-जमुनी तहज़ीब और इंसाफ़ की पैरोकार रही है। चाहे यमन का मुद्दा हो या फ़िलिस्तीन — भारत के अमनपसंद अवाम ने हर बार दुनिया को बताया है कि:
“जहां ज़ुल्म होगा, वहां दुआएं भी उठेंगी और सच्चाई के लिए आवाज़ भी।”
भारत की सरज़मीन से उठी ये आवाज़ें सिर्फ़ इबादत नहीं, बल्कि इंसानियत और इत्तेहाद की सबसे बड़ी मिसाल हैं।
जुल्म कितना भी बड़ा हो, दुआओं की ताक़त उससे बड़ी होती है — और भारत आज इस ताक़त का गवाह बन चुका है।
रिपोर्ट: हसनैन मुस्तफा | विशेष संवाददाता, लखनऊ
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