तहलका टुडे इंटरनेशनल डेस्क
भारत और अमेरिका — दो सबसे बड़े लोकतंत्र। एक समय दोनों देशों के संबंधों में नई ऊँचाई देखने को मिली थी। लेकिन जैसे ही अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में आए, रिश्तों में एक अजीब-सी तल्ख़ी आ गई। और इस तल्ख़ी का निशाना बने भारत के मौजूदा विदेश मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर (S. Jaishankar) — जो खुद अमेरिका में भारत के राजदूत रह चुके हैं।
आज ट्रंप भारत की अर्थव्यवस्था को “मरी हुई” कहकर तंज कस रहे हैं, भारतीय कंपनियों पर टैरिफ और बैन की धमकी दे रहे हैं। इस सारे घटनाक्रम के केंद्र में हैं एस. जयशंकर — एक ऐसा राजनयिक जो झुकता नहीं, केवल तथ्य और रणनीति से जवाब देता है।
🧠 डॉ. एस. जयशंकर: एक परिचय जिनसे अमेरिका भी डरता है
विवरण | जानकारी |
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पूरा नाम | डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर |
जन्म | 9 जनवरी 1955, नई दिल्ली |
शिक्षा | B.Sc. (सेंट स्टीफन कॉलेज), PhD (JNU) |
विदेश सेवा | 1977 में IFS जॉइन किया |
राजदूत रहे | अमेरिका, चीन, सिंगापुर, चेक गणराज्य में |
विदेश सचिव | 2015 से 2018 तक |
विदेश मंत्री | 2019 से वर्तमान तक |
सांसद | राज्यसभा (गुजरात से) |
लेखक | The India Way, Why Bharat Matters |
🇺🇸 अमेरिका में जयशंकर की भूमिका:
कूटनीति जो ट्रंप को नहीं आई रास
2013 से 2015 के बीच जयशंकर अमेरिका में भारत के राजदूत रहे। उस समय उन्होंने न्यूक्लियर डील, डिफेंस कोऑपरेशन, H1B वीजा पर संवाद और टेक्नोलॉजी सहयोग को नई दिशा दी।
जब मोदी सरकार सत्ता में आई और जयशंकर को विदेश सचिव बनाया गया, तब उन्होंने ट्रंप के “अहंकारी और अस्थिर” रवैये के बावजूद अमेरिका से एक संतुलित रिश्ते बनाए रखे।
लेकिन उनकी 3 स्पष्ट नीतियाँ ट्रंप को चुभ गईं:
💣 ट्रंप की चिढ़ के 5 ठोस कारण
1. ईरान से भारत का तेल आयात
जब ट्रंप ने ईरान पर प्रतिबंध लगाए, भारत ने ईरान से तेल लेना कम तो किया, लेकिन पूरी तरह बंद नहीं किया।
जयशंकर ने अमेरिका को साफ कहा:
“भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को किसी एक देश के एजेंडे से नहीं चला सकता।”
2. चाबहार बंदरगाह में भारत की भागीदारी
यह बंदरगाह भारत, ईरान और अफगानिस्तान के लिए सामरिक रूप से अहम है। ट्रंप चाहते थे कि भारत इससे हट जाए — जयशंकर ने मना कर दिया।
3. मेक इन इंडिया Vs. अमेरिका फर्स्ट
मोदी सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ नीति ने अमेरिकी कंपनियों की बल्लियों को काटा। ट्रंप ने बदले में भारत के स्टील, एल्यूमिनियम, टेक्सटाइल पर टैरिफ लगा दिए।
4. डेटा लोकलाइजेशन कानून
जयशंकर के समर्थन से भारत ने फेसबुक, अमेजन, गूगल जैसे दिग्गजों से डाटा भारत में रखने की शर्त रखी — ट्रंप प्रशासन ने इसे व्यापार में बाधा बताया।
5. जयशंकर की शैली: विनम्र पर अडिग
ट्रंप जैसे नेता उम्मीद करते हैं कि देश उनकी बात मानें। लेकिन जयशंकर जैसे विशेषज्ञ सतर्क, व्यावहारिक और सिद्धांतवादी हैं — जो कभी दबाव में नहीं आते।
💥 ट्रंप की ख़ुराफ़ात
🔴 1. भारतीय कंपनियों पर टैरिफ
ट्रंप ने 20 से ज्यादा भारतीय कंपनियों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया और इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल, केमिकल्स जैसे सेक्टरों को टारगेट किया।
🔴 2. भारतीय अर्थव्यवस्था को ‘Dead’ कहा
हाल ही में ट्रंप ने कहा:
“India’s economy is dead, they survive because of our generosity.”
(भारत की अर्थव्यवस्था मरी हुई है, ये हमारी मेहरबानी से चलती है)
यह बयान केवल घमंड नहीं था, बल्कि भारत के स्वाभिमान पर सीधा हमला था।
🇮🇳 जयशंकर का मूक लेकिन ठोस जवाब
डॉ. एस. जयशंकर ने ना ट्रंप का नाम लिया, ना बयान दिया — लेकिन उन्होंने अपने कृत्य, नीतियों और पुस्तकों से जवाब दिया।
📖 The India Way और Why Bharat Matters जैसी किताबों में उन्होंने कहा:
“आज का भारत सुनता है, समझता है, लेकिन फैसले खुद करता है।”
“बहुध्रुवीय दुनिया में भारत एक ध्रुव है, एक फॉलोअर नहीं।”
📌 कूटनीति की नई परिभाषा: जयशंकर शैली
- शब्दों में संयम, लेकिन निर्णयों में कठोरता
- नम्रता के साथ राष्ट्रीय हित की रक्षा
- कभी झुके नहीं, लेकिन कभी युद्ध का रास्ता भी नहीं अपनाया
- भारत को विक्टिम नहीं, विजनरी राष्ट्र के रूप में पेश किया
🌐 भारत की वैश्विक छवि पर प्रभाव
जयशंकर के प्रयासों से आज भारत:
- QUAD का अहम सदस्य है
- SCO और BRICS में सक्रिय भूमिका निभा रहा है
- G20 की अध्यक्षता कर चुका है
- UNSC में सुधार की माँग को ज़ोर से रखता है
यह सब बताता है कि ट्रंप के अपमानजनक बयानों के बावजूद दुनिया भारत को गंभीरता से लेती है — और इसका श्रेय जयशंकर जैसे रणनीतिकारों को जाता है।
जयशंकर बनाम ट्रंप – स्वाभिमान बनाम घमंड
ट्रंप की राजनीति टकराव की थी, जयशंकर की कूटनीति संतुलन की है।
जहाँ ट्रंप ने धमकियाँ दीं, जयशंकर ने संविधान, सिद्धांत और राष्ट्रीय सम्मान से जवाब दिया।
भारत को गर्व होना चाहिए कि उसकी विदेश नीति किसी की धौंस में नहीं, बल्कि अपने विवेक और गरिमा से चलती है