तहलका टुडे टीम
कुछ शख्सियतें ऐसी होती हैं जिनका वजूद सिर्फ एक शख्स तक महदूद नहीं रहता, बल्कि वो एक तहरीक बन जाती हैं। उनकी जिंदगी, उनके खयालात और उनकी खिदमत आने वाली नस्लों के लिए रहनुमा बन जाती हैं। मौलाना ग़ुलाम असकरी साहब भी उन्हीं रौशन शख्सियतों में से एक थे।
वो सिर्फ एक आलिम-ए-दीन नहीं थे, बल्कि इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.) के मिशन और हज़रत अब्बास (अ.स.) की वफादारी के असल नमूना थे। उनकी पूरी जिंदगी इस्लामी तालीम, समाजी इस्लाह और अज़ादारी के फरोग में गुज़री। उनकी बरसी के मौके पर हमें उनके नक्श-ए-कदम पर चलने का अहद करना चाहिए और उनके बताए हुए रास्ते को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।
रौशन सफर का आगाज़
मौलाना ग़ुलाम असकरी (रह.) का जन्म 1928 में उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में हुआ। आपकी परवरिश एक ऐसे घराने में हुई जहां इस्लाम सिर्फ एक मज़हब नहीं, बल्कि जिंदगी गुज़ारने का सबसे बड़ा उसूल था। इल्म से गहरी मोहब्बत और मजलूमों के लिए दिल में खास दर्द ने आपको इस मुकाम तक पहुंचाया जहां आज भी आपका नाम रौशनी की मानिंद चमक रहा है।
आपने अपनी तालीम हिंदुस्तान और बैरूनी ममालिक (विदेश) के बड़े मदरसों से हासिल की और फिर अपनी पूरी जिंदगी इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.) के मिशन और हज़रत अब्बास (अ.स.) की वफादारी का अमली नमूना बनकर बसर की।
तनज़ीमुल मकातिब – इल्म और इंसानियत का चिराग़
मौलाना ग़ुलाम असकरी (रह.) को इस हकीकत का एहसास था कि किसी भी कौम की तरक्की तालीम के बगैर मुमकिन नहीं। इसी सोच के साथ 1968 में आपने तनज़ीमुल मकातिब की बुनियाद रखी।
यह इदारा सिर्फ एक तालीमी तंज़ीम नहीं, बल्कि एक तहरीक है जो दीनी और दुनियावी तालीम को एकजुट करती है। आज इस तंज़ीम के तहत 1200 से ज्यादा मकातिब (इस्लामी स्कूल) हिंदुस्तान भर में चल रहे हैं। इनमें बच्चों को कुरआन, हदीस, फिक़्ह, तफ़्सीर, अरबी के साथ-साथ साइंस, गणित और समाजी उलूम की तालीम दी जाती है ताकि वे दीन और दुनिया दोनों में कामयाब हो सकें।
मौलाना ग़ुलाम असकरी (रह.) का यह अज़ीम कारनामा आज भी लाखों बच्चों को तालीम के नूर से मुनव्वर कर रहा है।
खतीब ए आज़म मौलाना ग़ुलाम असकरी साहब – हज़रत अब्बास (अ.स.) की वफादारी का असली अक्स
अगर किसी एक शख्सियत को मौला हज़रत अब्बास (अ.स.) की वफादारी का अक्स कहा जाए तो वह मौलाना ग़ुलाम असकरी (रह.) होंगे। उन्होंने अपने हर अमल से यह साबित किया कि वह हज़रत अब्बास (अ.स.) की तरह ईमान, सब्र, इस्लाम से वफादारी और दीन के लिए कुर्बानी का जज़्बा रखते थे।
जिस तरह हज़रत अब्बास (अ.स.) ने करबला में अपनी आखिरी सांस तक हक़ और इंसाफ का दिफ़ा किया, उसी तरह मौलाना ग़ुलाम असकरी (रह.) ने भी इल्म, मजलूमियत और मज़हबी तालीम के तहफ्फुज़ (संरक्षण) के लिए अपनी पूरी जिंदगी वक्फ कर दी।
उनके कुछ उसूल, जो हज़रत अब्बास (अ.स.) की तालीमात की याद दिलाते हैं:
- ईमान पर मज़बूती – मौलाना साहब का अकीदा हमेशा पुख्ता रहा और उन्होंने कभी भी हक़ से समझौता नहीं किया।
- खिदमत का जज़्बा – उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी खिदमत-ए-ख़ल्क़ में गुज़ारी।
- इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.) से वफादारी – वे हमेशा इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.) के ज़ुहूर के लिए दुआगो रहते और उनकी तहरीक को आगे बढ़ाने में सरगर्म रहते थे।
उनके मिशन को आगे बढ़ाने वाले – रहबर ए हिंद मौलाना सैयद सफ़ी हैदर ज़ैदी
मौलाना ग़ुलाम असकरी (रह.) के इंतिकाल के बाद भी उनका मिशन जिंदा है। उसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उनके भांजे हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद सफ़ी हैदर ज़ैदी ने संभाल रखी है।
मौलाना सफ़ी हैदर ज़ैदी साहब तनज़ीमुल मकातिब के जरिए उनके ख्वाब को हकीकत में बदल रहे हैं। उन्होंने इस इदारे को नई बुलंदियों तक पहुंचाया है, जहां टेक्निकल एजुकेशन, डिजिटल क्लासरूम और क़ौमी सतह पर इस्लामी तालीम को और ज्यादा मज़बूत किया जा रहा है।
मौलाना ग़ुलाम असकरी (रह.) की बरसी – एक सबक़, एक पैग़ाम
आज जब हम मौलाना ग़ुलाम असकरी (रह.) की बरसी मना रहे हैं तो यह सिर्फ एक रस्मी मजलिस नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी है। हमें खुद से यह सवाल करना चाहिए:
- क्या हमने उनके मिशन को आगे बढ़ाने की कोशिश की?
- क्या हमने गरीब और मजलूम बच्चों की तालीम का इंतेज़ाम किया?
- क्या हमने अज़ादारी और दीनी तालीम के लिए अपना फर्ज़ अदा किया?
अगर इन सवालों का जवाब “हां” नहीं है, तो आज ही से हम इस मिशन का हिस्सा बनें और मौलाना ग़ुलाम असकरी (रह.) की याद को अमल के जरिए जिंदा रखें।
आईए, हम भी उनके मिशन का हिस्सा बनें
आज जरूरत इस बात की है कि हम भी मौलाना ग़ुलाम असकरी (रह.) के बताए हुए रास्ते पर चलें और उनकी दीनी, तालीमी और समाजी खिदमात को आगे बढ़ाएं।
तनज़ीमुल मकातिब से जुड़कर, गरीब बच्चों की तालीम का बंदोबस्त करके और इस्लाम के नूर को हर घर तक पहुंचाकर, हम मौलाना ग़ुलाम असकरी (रह.) की रूह को सच्ची खिराज-ए-अकीदत पेश कर सकते हैं।
“जो इल्म का चिराग जलाएगा, वही इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.) के करीब होगा।”
मौलाना ग़ुलाम असकरी (रह.) सिर्फ एक नाम नहीं, एक तहरीक थे। उनकी जिंदगी और खिदमात हमें यह सबक देती हैं कि तालीम और वफादारी ही सबसे बड़े हथियार हैं जो दुनिया को बेहतरी की तरफ ले जा सकते हैं।
आईए, हम सब मिलकर इस नूरानी मिशन का हिस्सा बनें और मौलाना साहब के इस्लाही सफर को आगे बढ़ाएं।
✍ सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा
एडिटर – तहलका टुडे
📍 सैयद वाड़ा नगराम, लखनऊ
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