✍️ सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा/तहलका टुडे इंटरनेशनल डेस्क
📜 डर का फतवा या हताशा की चीख?
जी7 बैठक में डोनाल्ड ट्रंप की बड़बड़ाहट: “I have to be back as soon as I can…”
सुनने में बयान था, असल में सन्नाटा था — एक ऐसा सन्नाटा जो किसी हार चुके खिलाड़ी की अंतर्मन से निकली फुसफुसाहट हो।
शायद उन्हें किसी ने बता दिया कि तेहरान अब खाली हो जाएगा। शायद उन्हें लगता है कि उनके फतवे का असर क़ुम, मशहद या तेहरान की गलियों तक होगा।
लेकिन अफ़सोस! ये 1979 का पेरिस नहीं, जहां खुमैनी निर्वासन में थे — ये आज का ईरान है, जहां सैयद अली खामेनई रहबर हैं।
📖 जब एक फतवे ने तख्त उलट दिया था
1979, एक तारीख नहीं — इंसानियत की आवाज़ का साल था।
जब अयातुल्लाह खुमैनी ने फ्रांस की धरती से एलान किया कि शाह की तख्तगाह अब मस्जिदों से चलेगी।
🕊️ उनके फतवे से लाखों महिलाएं सड़कों पर हिजाब के साथ उतरीं,
🕌 उनके हुक्म से एक तानाशाह रातों-रात तेहरान से भागा,
⚖️ उनके इरादे से एक इस्लामिक रिपब्लिक की नींव पड़ी।
🔥 शाह भागा था, अब अमेरिका और इज़राइल के जालिमों की बारी?
शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के पास सबकुछ था:
पेट्रोल डॉलर, अमेरिका की गोदी, मखमली तख्त —
पर नहीं था जनता का भरोसा।
और जो भरोसे से खाली हो, वो सत्ता से कब तक भरेगा?
आज ट्रंप की भाषा में वही घबराहट झलक रही है।
क्योंकि उन्हें पता है कि जिस ईरान को वो डराना चाहते हैं,
वो देश शहादत से सीना तानता है, और ज़ुल्म से लड़ना जानता है।
⚔️ 8 साल की जंग, 80 साल का सबक
1980 से 1988 — इराक-ईरान युद्ध।
⚔️ सद्दाम को अमेरिका ने हथियार दिए,
☠️ रासायनिक हथियार दिए,
🩸 और ईरान को दी गईं लाशें और ज़ख्म।
पर उस जंग ने जो जन्म दिया —
वो था इंकलाबी ईरान,
जो अब न झुकता है, न बिकता है।
🛰️ तेहरान: अब इज़राइल का सिरदर्द
इज़राइल ने सोचा कि वो ड्रोन बनाएगा, डोम बनाएगा,
लेकिन ईरान ने दिल बनाए, और “कुद्स फोर्स” भेज दी।
तेहरान ने सिर्फ मिसाइल नहीं,
फिलस्तीन, यमन, इराक और लेबनान को उम्मत का हौंसला दे दिया।
आज इज़राइल की नींद हराम है,
क्योंकि तेहरान में बैठा रहबर मुसलमानों को इख़लाक़ और इंकलाब दोनों सिखा रहा है।
💡 ट्रंप का फतवा बनाम खामेनई की बात
डोनाल्ड ट्रंप — वो आदमी जो ट्विटर से दुनिया चलाना चाहता था,
आज खुद ही ट्रायल पर खड़ा है।
वो ईरान को नसीहत देने आया है?
जहां हर फतवा ज़मीर से निकलता है, और
हर फैसला शहादत की रोशनी में होता है?
यहां सिक्का रहबर का चलता है,
ना कि किसी ज़ायोनी प्यादे या कॉर्पोरेट के गुलाम का।
📣 ईरान एक मुल्क नहीं, मिसाल है
ईरान वो देश है —
जहां से कर्बला की रूह जिंदा होकर बोलती है,
जहां हुसैनी सिपाही ताक़तवरों की आंखों में आंखें डालते हैं।
जहां महिलाएं हिजाब में भी विद्रोह की आवाज़ बन जाती हैं,
जहां बच्चे जुल्म से लड़ना स्कूल की किताब से पहले सीखते हैं।
🛑 फतवे बंदूक से नहीं, सच्चाई से निकलते हैं
तो ट्रंप साहब!
अगर आपको लगता है कि तेहरान आपके फतवे से खाली हो जाएगा —
तो आप 2025 में नहीं, शायद 1925 में जी रहे हैं।
ईरान को खाली नहीं किया जाता —
वहां क्रांति बसाई जाती है।
वहां आवाज़ नहीं दबती —
बल्कि “मरग़ बर अमेरिका” की गूंज तेज़ होती है।
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