जनाबे ज़ैनब: करबला की अज़ीम शख्सियत और रिश्तों की मिसाल

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आमिना मुस्तफा

जब इंसानियत पर अंधेरा छा रहा था, जब हक़ और बातिल का टकराव अपने चरम पर था, तब करबला के मैदान में अल्लाह की राह में दी जाने वाली कुर्बानियां इंसानी तारीख़ का रुख़ मोड़ने वाली थीं। इस घटना में एक नाम ऐसा है जो सब्र, शुजाअत (साहस), और रिश्तों को निभाने की मिसाल बन गया—हज़रत जनाबे ज़ैनब (स.अ)।

करबला की शख्सियत: जनाबे ज़ैनब (स.अ)

जनाबे ज़ैनब, इमाम अली (अ.स) और बीबी फातिमा ज़हरा (स.अ) की बेटी, नबी-ए-करीम (स.अ.व) की नवासी थीं। आपका पूरा जीवन साहस, बलिदान और सच्चाई के लिए संघर्ष की मिसाल है। करबला की घटना के बाद आपकी भूमिका केवल एक बहन या बेटी की नहीं, बल्कि इस्लाम के पैगाम को बचाने वाली एक अज़ीम रहनुमा की थी।

हज़रत अब्बास (अ.स) के बाद अलमदार बनना

करबला में हज़रत अब्बास (अ.स) की शहादत के बाद, जनाबे ज़ैनब ने अलम (ध्वज) को संभाला। यह अलम सिर्फ एक झंडा नहीं था, बल्कि हक़ और इंसाफ़ का प्रतीक था। इस्लाम के मूल संदेश को ज़िंदा रखने के लिए आपने न केवल इस अलम को उठाया, बल्कि अपने शब्दों और कर्मों से उसे दुनिया तक पहुंचाया।

रिश्तों का सबक़: सब्र और ईमान की बेमिसाल कहानी

करबला के बाद का सफर आसान नहीं था। जनाबे ज़ैनब ने एक बहन, बेटी, मां और उम्मत की रहनुमा के तौर पर अपनी जिम्मेदारियों को निभाया। जब हर रिश्ता आज़माया जा रहा था, जब दर्द और ग़म अपनी हदों पर थे, तब जनाबे ज़ैनब ने रिश्तों की असल ताकत को दिखाया।

भाई के लिए सब्र का पहाड़

अपने भाई, इमाम हुसैन (अ.स), और उनके बच्चों की शहादत को देखना आसान नहीं था। लेकिन आपने सब्र का दामन कभी नहीं छोड़ा। करबला में खड़े होकर आपने इमाम हुसैन (अ.स) के मकसद को आगे बढ़ाया।

अनाथों की मां बनीं

करबला के बाद जब बच्चे यतीम हो गए, और महिलाएं बेपरदा कर दी गईं, जनाबे ज़ैनब ने उन्हें संभाला। आपने हर एक बच्चे को अपनी गोद में लिया और उन्हें सहारा दिया।

दुश्मनों के सामने हुज्जत

कूफ़ा और शाम के दरबारों में खड़े होकर आपने यज़ीद और उसके दरबारियों को आइना दिखाया। आपने इस्लाम और करबला के मकसद को पूरी दुनिया के सामने बयान किया। आपकी बेबाक तकरीरें यज़ीद के नापाक मंसूबों को उजागर करने के लिए काफी थीं।

दुनिया के लिए पैगाम

जनाबे ज़ैनब ने यह पैगाम दिया कि रिश्ते निभाने का मतलब सिर्फ खुशी के पलों में साथ होना नहीं है, बल्कि दुख और तकलीफों में भी इंसानियत और ईमान को बचाना है। करबला ने सिखाया कि जब हालात मुश्किल हों, तब रिश्तों की असली अहमियत सामने आती है।

बहनों के लिए सीख: बहन सिर्फ खून का रिश्ता नहीं है, बल्कि यह हिम्मत और हौसले का सहारा है।

मां के लिए पैगाम: बच्चों की परवरिश सिर्फ उनके भविष्य को सुधारने के लिए नहीं, बल्कि उनके ईमान को मजबूत बनाने के लिए भी होती है।

इंसानियत के लिए संदेश: हक़ के रास्ते पर चलने के लिए सब्र, शुजा’त और ईमान का होना ज़रूरी है।

https://youtu.be/f-shEEMnJMg?si=wI-rLbFS8gTeNdPp

जागरूकता का आह्वान

आज के दौर में, जब रिश्ते नफरत और स्वार्थ की बुनियाद पर टूट रहे हैं, जनाबे ज़ैनब का किरदार हमें याद दिलाता है कि रिश्तों का मकसद सिर्फ व्यक्तिगत फायदे तक सीमित नहीं होना चाहिए। हमें अपने परिवार और समाज के साथ मिलकर हक़ और इंसाफ के लिए खड़ा होना चाहिए।

हमारा कर्तव्य:

  1. जनाबे ज़ैनब के किरदार को समझें: उनकी ज़िंदगी का हर पहलू हमें रिश्तों की अहमियत और ईमानदारी का सबक सिखाता है।
  2. करबला के पैगाम को फैलाएं: यह केवल एक घटना नहीं है, बल्कि एक जिंदा तहरीक (आंदोलन) है।
  3. रिश्तों को मजबूत बनाएं: अपनी ज़िंदगी में सब्र और शुजा’त को शामिल करें।

जनाबे ज़ैनब (स.अ) की शख्सियत करबला के बाद के हालात में इंसानियत और रिश्तों की ताकत की सबसे बड़ी मिसाल है। सलाम हो जनाबे ज़ैनब पर, जिन्होंने करबला के दर्दनाक मंजर के बाद भी रिश्तों की गरिमा और हक़ की राह को दुनिया तक पहुंचाया। उनकी ज़िंदगी हम सबके लिए सबक है—कि चाहे हालात कितने भी मुश्किल हों, रिश्तों और इंसानियत की कद्र करना ही इंसान का असली मकसद है।

“सलाम हो जनाबे ज़ैनब पर, जिन्होंने हक़ और इंसानियत की रौशनी को कभी बुझने नहीं दिया।”

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