तहलका टुडे टीम
नई दिल्ली, 6 नवंबर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) द्वारा वक्फ संशोधन विधेयक 2024 पर जारी प्रक्रियाओं और न्यायसंगत सिद्धांतों के उल्लंघन को लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने अपनी कड़ी नाराज़गी जताई है। बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. सैयद क़ासिम रसूल इलयास ने इस मुद्दे पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा है कि यह विधेयक जिस प्रकार से आगे बढ़ाया जा रहा है, वह न केवल संवैधानिक और संसदीय नियमों के खिलाफ है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का भी अपमान है।
असंबंधित संस्थाओं की राय लेने पर कड़ी आपत्ति
डॉ. सैयद क़ासिम रसूल इलयास ने बताया कि संयुक्त संसदीय समिति को विधेयक पर केवल संबंधित व्यक्तियों और संगठनों (स्टेकहोल्डर्स) से ही राय लेनी चाहिए थी, ताकि निष्पक्षता बनी रहे। हालांकि, वर्तमान में जेपीसी न केवल केंद्रीय मंत्रालयों, पुरातत्व विभाग, बार काउंसिल, और आरएसएस की सहायक संस्थाओं से राय ले रही है, बल्कि कई ऐसी संस्थाओं को भी आमंत्रित कर रही है, जिनका समाज में कोई विशेष योगदान नहीं है और जिनका वक्फ मामलों से कोई संबंध नहीं है। इस प्रकार की कार्यवाही का उद्देश्य विधेयक के समर्थन में अधिक से अधिक राय जुटाने का प्रतीत होता है।
विपक्ष के सदस्यों का विरोध
गौरतलब है कि संयुक्त संसदीय समिति में शामिल विपक्षी दलों के सदस्य भी इस मामले पर अपनी गंभीर आपत्तियां दर्ज करा चुके हैं। समिति के अध्यक्ष श्री जगदंबिका पाल पर आरोप लगाते हुए विपक्षी सदस्यों ने लोकसभा स्पीकर श्री ओम बिड़ला को पत्र लिखकर समिति में हो रही प्रक्रियाओं पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि समिति की बैठकें इतनी जल्दी-जल्दी आयोजित की जा रही हैं कि सदस्यों को प्रस्तुत किए गए सुझावों का उचित अध्ययन करने का अवसर नहीं मिल रहा है।
कल, विपक्ष के छह सदस्यों ने एक बार फिर से स्पीकर को पत्र लिखकर समिति के अध्यक्ष के रवैये पर नाराज़गी जाहिर की है। इन सदस्यों का आरोप है कि समिति की कार्यवाही इस तरह संचालित की जा रही है, जिससे विधेयक के समर्थन में असंबंधित व्यक्तियों और संगठनों की राय जुटाई जा सके और वास्तविक मुद्दों पर चर्चा करने का समय भी न मिले।
मुस्लिम संगठनों की मांग: निष्पक्षता और उचित प्रक्रिया का पालन हो
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जोर देकर कहा कि जब यह विधेयक पहली बार लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था, तब विपक्षी दलों और कई मुस्लिम संगठनों ने इस पर गंभीर आपत्तियां व्यक्त की थीं। AIMPLB के अनुसार, इन्हीं आपत्तियों के कारण इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को सौंपा गया, ताकि इसका गहन अध्ययन किया जा सके और सभी पक्षों की राय को ध्यान में रखते हुए निष्पक्ष निर्णय लिया जा सके।
बोर्ड ने अपनी मांग स्पष्ट करते हुए कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और विश्वसनीय मुस्लिम संगठनों की आपत्तियों को गंभीरता से सुना जाए और किसी भी असंबंधित संस्था या व्यक्ति की राय को महत्व न दिया जाए। साथ ही, AIMPLB ने यह भी आग्रह किया कि समिति जल्दबाजी में कोई रिपोर्ट स्पीकर को न सौंपे। रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले सभी विपक्षी और सत्ताधारी दलों के बीच विस्तृत विचार-विमर्श होना चाहिए, ताकि संसद के तय किए गए नियमों और प्रक्रियाओं का सही ढंग से पालन किया जा सके।
लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करने की अपील
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस अवसर पर सभी पार्टियों से अपील की है कि वे संकीर्ण दृष्टिकोण और पार्टी हितों से ऊपर उठकर लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों का सम्मान करें। बोर्ड ने उम्मीद जताई कि वक्फ संशोधन विधेयक पर निष्पक्षता और व्यापक सहमति के आधार पर ही कोई निर्णय लिया जाएगा, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि इस विधेयक के जरिए वक्फ संपत्तियों के सही प्रबंधन और संरक्षण की दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठाया जा सकेगा।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के ऑफिस सचिव डॉ. वकारुद्दीन लतीफी ने कहा कि अगर सरकार और संसद इस विधेयक पर सहमति बनाने की प्रक्रिया में लोकतांत्रिक और संवैधानिक सिद्धांतों का पालन नहीं करती है, तो बोर्ड इसके खिलाफ उचित मंच पर अपनी आपत्ति जताने का हरसंभव प्रयास करेगा।
निष्कर्ष जेपीसी (वक्फ) की वर्तमान कार्यवाहियों को लेकर देश में एक बड़ी बहस शुरू हो गई है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कड़ी आपत्ति और विपक्षी दलों की ओर से बार-बार दर्ज की जा रही नाराज़गी से यह स्पष्ट है कि वक्फ संशोधन विधेयक पर एक सटीक और संतुलित रिपोर्ट की आवश्यकता है। यदि जल्दबाजी और पक्षपात से भरे निर्णय लिए गए, तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान के सिद्धांतों के विरुद्ध साबित हो सकता है, जिसका असर वक्फ संपत्तियों के भविष्य पर भी पड़ेगा।