“शिकायत की तो लिस्ट में नाम, भ्रष्टाचार किया तो इनाम – यही है LDA का इंसाफ!”“भ्रष्टाचारियों का गुट और प्रथमेश कुमार की भूमिका” क्या, LDA उपाध्यक्ष भी उसी गुट का हिस्सा बन चुके हैं?

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“शिकायत की तो लिस्ट में नाम, भ्रष्टाचार किया तो इनाम – यही है LDA का इंसाफ!

सैयद रिज़वान मुस्तफा- 9452000001Srm@gmail.com

जब जनता की आवाज़ दबाने के लिए सत्ता तंत्र खुद भोंपू बन जाए, तो समझ लीजिए कि हम लोकतंत्र नहीं, ‘लोक-प्रदर्शन’ में जी रहे हैं।

लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) ने हाल ही में एक ऐसी सूची जारी की है, जो अपने आप में लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों की शवयात्रा जैसी है। इसमें उन 28 नागरिकों के नाम हैं जिन्होंने LDA में भ्रष्टाचार, अनियमितता और उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठाई। अब वे खुद कटघरे में हैं।
कारण? उन्होंने हिम्मत की।


🧾 LDA की सूची: शिकायतकर्ता नहीं, अपराधी बना दिए गए नागरिक

इस लिस्ट में कोई पत्रकार है, कोई वकील, कोई समाजसेवी, और कोई रिटायर्ड अधिकारी। इन सबका “अपराध” सिर्फ इतना है कि इन्होंने LDA की गड़बड़ियों पर सवाल उठाया। अब इनका नाम, मोबाइल नंबर, और शिकायतों की संख्या सार्वजनिक कर दी गई — बिना यह जांचे कि शिकायतें सही थीं या नहीं।

क्या ये कोई पारदर्शिता है या फिर खुलेआम बदले की भावना?


🧠 प्रथमेश कुमार: अभिषेक प्रकाश की छाया या भ्रष्टाचारियों की शरण?

एक और सवाल खड़ा होता है — LDA के वर्तमान उपाध्यक्ष प्रथमेश कुमार का रुख आखिर किस ओर है?
क्या वे जनता के साथ हैं या उस भ्रष्टाचार कॉकस के हिस्से बनते जा रहे हैं, जिसकी जड़ें इंजीनियरों, बाबुओं और ठेकेदारों तक फैली हैं?

पिछले कुछ महीनों में जिन नीतियों को लागू किया गया है, वो पूर्व LDA VC अभिषेक प्रकाश की राह पर चलती दिख रही हैं — मतलब:

  • आवाम की शिकायतों को ‘ब्लैकमेल’ बताकर खारिज करना
  • जन सुनवाई को फार्मेलिटी बना देना
  • और भ्रष्ट इंजीनियरों को संरक्षण देना

अगर यही चलता रहा, तो आने वाले चुनावों में योगी सरकार के माथे पर यह LDA एक बड़ा कलंक बन सकता है।


🔍 शिकायत करने वालों की सूची नहीं, भ्रष्टाचारियों की सूची जारी करें!

अगर LDA में सच में पारदर्शिता होती, तो सबसे पहले ये सूची जारी की जाती:

  • किन अफसरों पर RTI में सवाल उठे?
  • किन ज़ोनल इंजीनियरों ने फ़र्ज़ी नक्शे पास किए?
  • किन बाबुओं ने फाइलें दबाकर करोड़ों की वसूली की?

लेकिन अफ़सोस! भ्रष्टाचार करने वालों को बचाया जा रहा है, और आवाज़ उठाने वालों को लज्जित किया जा रहा है।


💣 अब शिकायत करना नहीं, सहना सिखाया जा रहा है!

LDA का संदेश साफ है:

“हमारे भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करोगे, तो हम तुम्हारा नाम लिस्ट में डाल देंगे ताकि अगली बार कोई और हिम्मत न करे।”

यह लोकतंत्र है या ‘ठेका राज’?


🧅 प्रस्ताव :

  • LDA को चाहिए कि एक “Anti-LDA Complaint Medal” शुरू करे — जो सबसे ज्यादा शिकायत करे, उसे सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया जाए।
  • LDA मुख्यालय में एक “Whistleblower Wall of Shame” बनाई जाए — जहां नागरिकों की फोटो लगाई जाए, ताकि भ्रष्टाचारियों को पहचानने में कोई परेशानी न हो।
  • और हां, एक “भ्रष्टाचार मैत्री योजना” लाई जाए — जिसमें अफसरों को साल के अंत में ‘सबसे कम पकड़े जाने वाला’ पुरस्कार दिया जाए।

🏁 लोकतंत्र की हार, व्यवस्था का तमाशा

LDA की यह हरकत न केवल भारतीय लोकतंत्र के खिलाफ है, बल्कि योगी सरकार की ईमानदारी की मुहिम पर भी सवाल खड़े करती है। अगर प्रथमेश कुमार जैसे अफसर भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देते रहे, तो यह लखनऊ ही नहीं, यूपी की छवि के लिए गंभीर खतरा बन जाएगा।

आज अगर शिकायत करने वाले डर गए, तो कल कोई बोलने की हिम्मत नहीं करेगा।


यह लेख केवल एक चेतावनी नहीं, एक आईना है — जिसमें LDA को अपना चेहरा देखना चाहिए।
क्योंकि जब “जनता डरने लगे” और “अफसर बचने लगे”, तब समझ लीजिए कि व्यवस्था में सड़ांध आ चुकी है।

 

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