तहलका टुडे टीम/सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा
लखनऊ, 9 मई 2025 — जब देश की सीमाओं पर दुश्मन के खिलाफ युद्ध तेज़ है और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चिंताएँ चरम पर हैं, उत्तर प्रदेश में युवाओं की सैन्य और सामाजिक तैयारी सवालों के घेरे में है। राज्य में NCC (नेशनल कैडेट कोर) और NSS (राष्ट्रीय सेवा योजना) जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं या तो निष्क्रिय हैं या सिर्फ फाइलों में ज़िंदा हैं।
NCC-NSS की गिरती स्थिति: आंकड़े चौंकाते हैं
- NSS में 2020-21 के 1.5 लाख स्वयंसेवकों की संख्या घटकर 2022-23 में 1.2 लाख रह गई।
- NCC के 2003 में 1 लाख कैडेट्स अब घटकर 70,000 के आसपास रह गए हैं।
- NCC प्रशिक्षण शिविरों की संख्या 2018-19 में 150 से घटकर 2022-23 में 90 हो गई।
यह गिरावट सिर्फ संख्या नहीं, एक पूरे जनरेशन के भविष्य और देश की आंतरिक शक्ति पर संकट की आहट है।
मोबाइल पीढ़ी और खोता हुआ उद्देश्य
आज का युवा मोबाइल गेम्स, सोशल मीडिया रील्स, और ओटीटी कंटेंट में इतना उलझा हुआ है कि शारीरिक प्रशिक्षण, अनुशासन और राष्ट्रभक्ति जैसे मूल्यों से उसका नाता टूटता जा रहा है। लड़ाई सिर्फ सीमा पर नहीं, मानसिक स्तर पर भी है—जहां दुश्मन नहीं, हमारी लापरवाही हार दिला रही है।
शैक्षणिक संस्थानों में सन्नाटा क्यों?
- निजी कॉलेजों और स्कूलों में NCC/NSS की इकाइयाँ ना के बराबर हैं।
- सरकारी संस्थानों में संसाधन, प्रशिक्षक और नियोजन का घोर अभाव है।
- लाठी, जूडो, कराटे, रायफल शूटिंग जैसे खेल, जो आत्मरक्षा का हिस्सा थे, अब सिर्फ इतिहास बनकर रह गए हैं।
क्या हम एक ऐसा समाज बना रहे हैं, जहाँ आपातकाल में घर में डंडा तक न हो?
सरकारी और राजनीतिक उपेक्षा
- शिक्षा विभाग की तरफ से कोई ठोस मॉनिटरिंग नहीं।
- विधायक-सांसद निधि का NCC/NSS के लिए प्रयोग लगभग शून्य।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव साफ़ झलकता है।
यह हाल तब है जब देश सीमाओं पर तनाव की स्थिति से गुज़र रहा है।
मीडिया और समाज की चुप्पी
NCC-NSS जैसे राष्ट्रनिर्माण कार्यक्रमों को न मीडिया में प्रमुखता मिलती है, न सोशल संवाद में। नतीजतन, समाज इन योजनाओं की ज़रूरत और महत्व से अनजान बना रहता है।
ध्यान देने वाली बात ये भी है कि हम सिर्फ बाहरी दुश्मन से नहीं जूझ रहे — टीवी चैनलों, धार्मिक ध्रुवीकरण और सोशल मीडिया ने समाज के भीतर भी विभाजन पैदा कर दिया है। NCC-NSS जैसे कार्यक्रम, जो सामाजिक एकता और नेतृत्व की मिसाल थे, अब सिसकियाँ भर रहे हैं।
समाधान का रास्ता: एक रचनात्मक क्रांति की ज़रूरत
- हर स्कूल-कॉलेज में NCC/NSS इकाइयाँ अनिवार्य की जाएं।
- शारीरिक प्रशिक्षण (लाठी, कराटे, शूटिंग) जैसे अभ्यासों को दोबारा पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
- विशेष प्रशिक्षक नियुक्त हों और नियमित शिविर चलाए जाएं।
- सांसद-विधायक निधियों से संसाधनों की पूर्ति सुनिश्चित हो।
- मीडिया में NCC/NSS को जगह मिले, जन-जागरूकता अभियान चलें।
देश की सीमाएँ सेना से सुरक्षित होती हैं, लेकिन राष्ट्र का भविष्य अनुशासित, जागरूक और प्रशिक्षित नागरिकों से बनता है। NCC और NSS जैसे कार्यक्रम महज़ गतिविधियाँ नहीं, एक राष्ट्र को जीवित रखने की सांस हैं। यदि हमने आज इन्हें पुनर्जीवित नहीं किया, तो कल ये लापरवाही हमें न केवल कमजोर करेगी, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को निशस्त्र, निर्बल और निर्नायक छोड़ जाएगी।
क्या आप चाहते हैं कि आपके बच्चे सिर्फ मोबाइल के योद्धा बनें, या राष्ट्र के रक्षक भी?