अहमद अल-शारा: इज़राइल और अमेरिका का खाड़ी में मजलूम मुसलमानो को बर्बाद करने का नया मोहरा

  1. अहमद अल-शारा: इज़राइल और अमेरिका का खाड़ी में नया मोहरा

तहलका टुडे इंटरनेशनल डेस्क/सैयद रिज़वान मुस्तफा

गद्दारों और मुनाफिकों का इतिहास हमेशा इस्लामिक दुनिया को कमजोर करने और मजलूमों की आवाज दबाने में सहायक रहा है। आज इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अहमद अल-शारा, जिन्हें पहले अबू मोहम्मद अल-जोलानी के नाम से जाना जाता था, ने खुद को इज़राइल और अमेरिका के एजेंडे का नया मोहरा साबित कर दिया है। दमिश्क में सत्ता हासिल करने के बाद, उन्होंने अपने असली मंसूबों को उजागर किया, जो इस्लामिक एकता को तोड़ने और ईरान जैसे मजलूमों के समर्थक देशों को कमजोर करने के लिए खाड़ी में साम्राज्यवादी शक्तियों के इशारे पर काम कर रहे हैं।

सीरिया को बनाया अमेरिकी और इज़राइली साजिशों का केंद्र

अहमद अल-शारा ने दमिश्क में सत्ता संभालने के बाद दावा किया कि उन्होंने ईरान की परियोजना को 40 साल पीछे धकेल दिया है। यह बयान उनके इज़राइल और अमेरिका के खतरनाक एजेंडे को लागू करने का खुला सबूत है। उन्होंने कहा कि सीरिया अब ईरानी प्रभाव से मुक्त है और किसी भी अरब या खाड़ी देश के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होगा। यह बयान इस बात की गवाही देता है कि अल-शारा क्षेत्रीय इस्लामी ताकत को कमजोर करने की साजिशों में जुटे हुए हैं।

अमेरिका की चापलूसी और इस्लामी मूल्यों का तिरस्कार

अल-शारा ने अपने बयान में सोची समझी साजिश के तहत सऊदी अरब और खाड़ी देशों की प्रशंसा की और उनकी विकास योजनाओं को आदर्श बताया। यह केवल सत्ता बनाए रखने के लिए की गई चापलूसी थी। उनका रवैया इस्लामी मूल्यों और मजलूमों के समर्थन के खिलाफ है।

दमिश्क में सत्ता, लेकिन इरादे गद्दारी के

अहमद अल-शारा, जो एक समय खुद को विद्रोही बताते थे, अब सत्ता में आते ही अपने असली रंग में आ गए हैं। उन्होंने अपने पुराने नाम अबू मोहम्मद अल-जोलानी को छोड़कर खुद को एक उदारवादी नेता के रूप में पेश किया। लेकिन उनकी नीतियां और बयान यह साबित करते हैं कि वह इज़राइल और अमेरिका के हाथों का नया मोहरा बन गए हैं।

ईरानी प्रभाव खत्म करने का दावा: इस्लामिक एकता पर हमला

अल-शारा का यह दावा कि उन्होंने सीरिया से ईरानी प्रभाव खत्म कर दिया है, इस्लामिक जगत पर सीधा हमला है। ईरान ने हमेशा मजलूमों का समर्थन और इस्लामी एकता के लिए प्रयास किया है, लेकिन अल-शारा ने इसे अस्थिरता फैलाने वाला बताया। यह उनके गद्दारी भरे इरादों को साफ जाहिर करता है।

ईरान: मजलूमों का सच्चा हमदर्द

गृहयुद्ध और साजिशों के भंवर में फंसे सीरिया में, जब दुनिया ने इसे अपने हित साधने का जरिया बनाया, ईरान ने अपने इंसानी फर्ज़ और इस्लामी हमदर्दी का परिचय दिया। ईरान ने उन हालात में सीरिया की आवाम की हरसंभव मदद की, जब वहां के लोग भूख, बीमारी और असुरक्षा से जूझ रहे थे।

राशन, अस्पताल और सुरक्षा: ईरान की इंसानियत भरी मदद

ईरान ने सीरिया में न केवल राशन और स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधाएं प्रदान कीं, बल्कि अस्पतालों और मेडिकल कैंप्स के माध्यम से लाखों लोगों की जान बचाई। इसके साथ ही, ईरान ने सीरिया के पवित्र स्थलों, विशेष रूप से जनाबे ज़ैनब (स.अ) और जनाबे सकीना (स.अ) के रौज़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपनी ताकत झोंक दी।

नेकी और कुर्बानी का मिशन

ईरान का यह कदम सत्ता की राजनीति से प्रेरित नहीं था, बल्कि मजलूमों की मदद और इस्लामी एकता को मजबूत करने का प्रतीक था। उसने यह दिखाया कि एक सच्चा इस्लामी देश किस तरह अपने फर्ज़ निभाता है।

सीरिया का आर्थिक और सामाजिक पतन

सीरिया, जो कभी एक समृद्ध देश था, गृहयुद्ध और बाहरी हस्तक्षेप के कारण बर्बाद हो गया। 2011 में सीरिया की जीडीपी 67.5 बिलियन डॉलर थी, जो 2021 में घटकर मात्र 8.9 बिलियन डॉलर रह गई। 90% आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है, और 1.4 करोड़ लोग अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए।

50 साल का शासन समाप्त

1970 में शुरू हुआ असद परिवार का शासन 2024 में खत्म हुआ। हालांकि, गृहयुद्ध के कारण सीरिया का सामाजिक और राजनीतिक ढांचा बुरी तरह टूट चुका है।

इस्लामी उम्माह के लिए चेतावनी

अहमद अल-शारा जैसे गद्दारों और मुनाफिकों का उद्देश्य इस्लामी उम्माह को विभाजित करना और बाहरी ताकतों के इशारे पर मजलूमों की आवाज दबाना है। वहीं, ईरान ने साबित किया है कि इंसानियत, मजलूमों का समर्थन, और इस्लामी एकता की रक्षा ही सच्चा फर्ज़ है। उम्माह को ऐसे गद्दारों के खिलाफ एकजुट होना होगा और मजलूमों की रक्षा के लिए प्रयास करना होगा।

 

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