तहलका टुडे टीम/सैयद रिज़वान मुस्तफा
लखनऊ:कुछ लोग अपने किरदार और कामों की वजह से केवल अपने परिवार ही नहीं, बल्कि पूरी क़ौम और समाज के लिए मिसाल बन जाते हैं। इंजीनियर शमीम अहमद साहब भी उन्हीं नामों में से एक हैं, जिनका जीवन इंसानियत, हमदर्दी, और खुदा की बंदगी में बसा हुआ है। उनका सफर केवल एक एक्सक्यूटिव इंजीनियर के पद तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी समाज और कमजोर तबकों की भलाई में लगा दी।
परिवार और विरासत
टांडा, अकबरपुर, अंबेडकर नगर के रहने वाले शमीम अहमद साहब, मंज़ूर अहमद साहब के बेटे हैं। लखनऊ के मुफ्तीगंज में स्थित अहमद मंज़िल उनकी पारिवारिक एकता और विरासत की पहचान है। लोग उन्हें प्यार और इज्जत से “शम्मू भाई” के नाम से जानते हैं। उनके बड़े भाई इंजीनियर हसन अहमद (हस्सू भाई) थे, जबकि छोटे भाई समाजसेवी शब्बीर अहमद (शब्बू भाई) लखनऊ के सज्जाद बाग में समाज की सेवा कर रहे हैं। दिल्ली में उनके छोटे भाई कंपनी सेक्रेट्री कमर अहमद (कम्मू भाई) भी एक प्रतिष्ठित व्यक्ति और नेशनल हाइवे में डायरेक्टर हैं।
उनके बेटे अजहर अहमद (अज्जू भाई) अपने क्षेत्र में एक नामी इंपोर्ट-एक्सपोर्ट व्यवसायी हैं और अपने पिता की तरह ही समाज के लिए बेहतर करने का हौसला रखते हैं।
बंदगी और हमदर्दी की मिसाल
शमीम अहमद साहब की शख्सियत केवल उनके ओहदे या पेशे तक सीमित नहीं है। उनके दिन की शुरुआत सुबह की नमाज से होती है, और उनका फोन उन तमाम लोगों की जरूरतों के लिए हमेशा खुला रहता है, जिनकी वो किसी भी तरह से मदद कर सकते हैं। वे हर समय अल्लाह की इबादत में लगे रहते हैं और साथ ही, जरूरतमंदों के लिए राहत का जरिया भी बने रहते हैं।
शिया यतीमखाने की दुबारा तामीर: एक संघर्ष और फक्र की दास्तान
उनकी सबसे बड़ी खिदमत में से एक रही शिया यतीमखाने की बेहतरी। जब यह संस्था अराजक तत्वों और मूर्तद गैंग के कब्जे में आकर अपनी असली पहचान खोने लगी, तब शिया वक्फ बोर्ड ने शमीम अहमद साहब को सेक्रेटरी नियुक्त किया।
अपने मजबूत इरादों और नेक नीयत के साथ, उन्होंने यतीमखाने में रहने वाले बेसहारा बच्चों की देखभाल की, उनकी पढ़ाई, रहन-सहन, और बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का संकल्प लिया। उन्होंने न केवल इस संस्था के दस्तावेज़ों को दुरुस्त करवाया, बल्कि इसकी मरम्मत और पुनर्निर्माण भी करवाया।
जाहिर है, यह काम आसान नहीं था। मूर्तद गैंग और अवैध कब्जेदारों ने उनके खिलाफ साजिशें रचीं, उन्हें परेशान करने की कोशिश की, लेकिन शमीम अहमद साहब अपने इरादों से पीछे नहीं हटे। उन्होंने समाज के दबे-कुचले यतीम बच्चों को नई जिंदगी देने का जो संकल्प लिया था, उसे पूरी शिद्दत से निभाया।
लेकिन जब इन षड्यंत्रों और बेबुनियाद आरोपों से उनका दिल टूट गया, तब उन्होंने इस पद को दोबारा स्वीकार करने से इनकार कर दिया। यह उनके आत्मसम्मान और ईमानदारी का ही सबूत है कि उन्होंने किसी भी गलत दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया।
भतीजे भैय्यू की मौत और एक दिली सदमा
शमीम अहमद साहब ने अपनी जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन अपने नौजवान भतीजे भैय्यू की मौत ने उन्हें गहरे दुख में डाल दिया। यह हादसा उनके दिल पर एक गहरी चोट की तरह था, लेकिन फिर भी उन्होंने इंसानियत की सेवा से अपना नाता नहीं तोड़ा।
शमीम अहमद साहब का मखसूस अंदाज और समाज के लिए मुहब्बत
शमीम अहमद साहब की एक खासियत यह भी है कि वे जिस भी महफिल या शादी में मिलते हैं, अपनी मखसूस अंदाज में गले लगाकर मुहब्बत से नवाजते हैं, दुआएं देते हैं और हिम्मत बढ़ाते हैं। वे हमेशा समाज के कमजोर तबके के हक में आवाज उठाते रहे हैं और वक्फ की संपत्तियों को बचाने की लड़ाई में भी उन्होंने मजबूत भूमिका निभाई।
एक दुआ और उम्मीद
शमीम अहमद साहब केवल एक इंसान का नाम नहीं, बल्कि हमदर्दी, इंसानियत और बंदगी का दूसरा नाम हैं। उनकी खिदमत, उनकी मोहब्बत, और उनका जज्बा आज भी हर उस इंसान के दिल में जगह बनाए हुए है, जिसने कभी भी उनसे एक लफ्ज़ मुहब्बत का सुना है।
हम दुआ करते हैं कि रब्बेकरीम, हर बला और आफत से महफूज़ रखे, सेहतमंद रखे और उनकी नेक खिदमात का सिला उन्हें दुनिया और आखिरत दोनों में दे।
“ऐसी शख्सियतें विरले ही जन्म लेती हैं, जिनका हर लफ्ज़ मुहब्बत और हर अमल इंसानियत के नाम हो।”