गंगा-जमुनी तहज़ीब का पैग़ाम लेकर संगम में आस्था की डुबकी: अरविंद सिंह गोप का ऐतिहासिक स्नान
तहलका टुडे टीम/सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा
प्रयागराज, 23 फरवरी – इतिहास के पन्नों में प्रयागराज का संगम सदियों से भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का प्रतीक रहा है। इसी पावन धरा पर गंगा, जमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन स्थल पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री अरविंद कुमार सिंह गोप ने अपने परिवार संग कुंभ मेले में आस्था की डुबकी लगाई।
इस पवित्र स्नान के दौरान उन्होंने देश को गंगा-जमुनी तहज़ीब को मज़बूत करने और सौहार्द की परंपरा को आगे बढ़ाने का संदेश दिया। बाराबंकी, जो कि उत्तर भारत में सांस्कृतिक समरसता और सौहार्द की मिसाल रहा है, से आकर उन्होंने प्रयागराज के इस ऐतिहासिक कुंभ में एकता, सद्भाव और मानवता का संदेश दोहराया।
बाराबंकी और प्रयागराज: एकता और आध्यात्मिकता की साझी विरासत
बाराबंकी की धरती अपने इतिहास और संस्कृति के लिए जानी जाती है। यहाँ सूफी संतों की दरगाहें, ऋषियों की तपोभूमि और स्वतंत्रता संग्राम की अनगिनत कहानियाँ हैं। वहीं, प्रयागराज भारत की आध्यात्मिक राजधानी के रूप में समूचे विश्व को आकर्षित करता है। यह कुंभ केवल एक मेला नहीं बल्कि भारतीय सभ्यता की वह धरोहर है, जिसने हर कालखंड में समाज को जोड़ने का कार्य किया है।
अरविंद सिंह गोप ने कहा, “कुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की विराटता, एकता और समरसता का अद्भुत संगम है। गंगा-जमुनी तहज़ीब का असली संदेश यही है कि हम सब मिलकर प्रेम और भाईचारे को अपनाएँ, भेदभाव को त्यागें और देश की तरक्की में योगदान दें।”
इतिहास के आईने में कुंभ और राष्ट्रीय एकता का संदेश
कुंभ मेले का उल्लेख हजारों वर्षों पुरानी पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक दस्तावेजों में मिलता है। सम्राट हर्षवर्धन से लेकर मुगल काल के इतिहासकारों तक, सभी ने इसकी महत्ता को दर्ज किया है। यह मेला न केवल सनातन परंपराओं को संजोता है, बल्कि इसमें अनेकता में एकता का वह स्वर गूंजता है, जो भारत को संपूर्ण विश्व में विशिष्ट बनाता है।
बाराबंकी और प्रयागराज की इस संस्कृति के संगम में एक और नाम जुड़ गया है—अरविंद सिंह गोप, जिन्होंने अपने इस धार्मिक व आध्यात्मिक यात्रा के माध्यम से समाज को प्रेम, सौहार्द और एकजुटता का संदेश दिया।
गंगा-जमुनी तहज़ीब का संदेश और बाराबंकी की भूमिका
बाराबंकी की माटी से निकले सूफी संतों, ऋषियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने हमेशा समाज में आपसी प्रेम और सौहार्द का संदेश दिया है। इस यात्रा के माध्यम से अरविंद सिंह गोप ने यह दर्शाया कि चाहे कोई भी जाति, धर्म या संप्रदाय हो—भारत की आत्मा गंगा-जमुनी तहज़ीब से ही जीवंत है।
कुंभ के इस शुभ अवसर पर गंगा माता का आशीर्वाद लेकर उन्होंने संकल्प लिया कि समाज को जोड़ने और सद्भावना की इस विरासत को और मज़बूत किया जाएगा। उनका यह संदेश आज के समय में और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है, जब समाज को जोड़ने वाली ताकतों को बढ़ावा देने की ज़रूरत है।
एक ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बना कुंभ
प्रयागराज के संगम में डुबकी लगाकर अरविंद सिंह गोप ने न केवल धार्मिक आस्था को व्यक्त किया, बल्कि भारतीय संस्कृति और मानवता के मूल्यों को भी उजागर किया। उनकी यह यात्रा कुंभ की विराट परंपरा और बाराबंकी की गंगा-जमुनी तहज़ीब के मिलन का एक यादगार अध्याय बन गई।
“यह संगम केवल तीन नदियों का नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की अखंडता और एकता का संगम है। इसी को हमें सहेजकर आगे बढ़ना है।” – अरविंद सिंह गोप