कटका, बाराबंकी | 15 अप्रैल 2025
जहां सियासत वादों तक सिमट जाए और व्यवस्था मौन हो जाए, वहीं कुछ खिदमतगुज़ार ऐसे होते हैं जो इबादत समझकर इंसानियत की सेवा में जुटे रहते हैं। ऐसे ही एक बेमिसाल और जज़्बाती मंजर का गवाह बना जनपद बाराबंकी का छोटा सा गाँव कटका, जहां इमाम ख़ुमैनी फ़ाउंडेशन (भारत) की जानिब से “फ्री नेत्र परीक्षण एवं परामर्श शिविर” का आयोजन किया गया।
यह आयोजन महज़ एक मेडिकल कैंप नहीं था, बल्कि यह एक मुहिम थी — अंधेरे में जी रहे चेहरों को रौशनी लौटाने की। यह एक इबादत थी — उन मरहूम आत्माओं के नाम जो आज भी अपनों की दुआओं में ज़िंदा हैं।
शुभारंभ में सियासी और सामाजिक हस्तियों की गरिमामयी मौजूदगी
कार्यक्रम का उद्घाटन प्रदेश के कद्दावर नेता और विकास पुरुष स्व. बेनी प्रसाद वर्मा की बहू, सिरौली गौसपुर ब्लॉक की वर्तमान ब्लॉक प्रमुख रेनू वर्मा ने फीता काटकर किया। इस मौके पर सानिया रिजवी (लॉ फैकल्टी) ने एक शिक्षाप्रद और प्रेरणादायक व्याख्यान देकर कार्यक्रम की भूमिका को और प्रभावशाली बना दिया।
मुख्य सहयोगी संस्था काज़मी एजुकेशनल एंड हेल्थ केयर सोसाइटी, रसूलपुर, बाराबंकी के संस्थापक और प्रमुख समाजसेवी डॉ. रेहान काज़मी भी इस आयोजन की केंद्रबिंदु रहे, जिनकी देखरेख में कैंप को व्यवस्थित रूप से संचालित किया गया।
शिविर में चिकित्सा सेवा की बेमिसाल मिसाल
सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक चले इस शिविर में 95 मरीज़ों की आंखों की मुफ्त जांच की गई। जांच के दौरान 32 मरीज़ों में मोतियाबिंद पाया गया, जिन्हें मुफ्त ऑपरेशन के लिए चिन्हित किया गया। साथ ही जरूरतमंदों को नि:शुल्क चश्मे, दवाइयां और परामर्श भी मुहैया कराया गया।
विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम में शामिल थे :
डॉ. मुमताज़ अहमद
डॉ. गरिमा सिदार
डॉ. तनवीर हुसैन
डॉ. ज़ाकिर अली
डॉ. दीपक मसीह
(टी एल एम हॉस्पिटल)
इन चिकित्सकों की कर्मनिष्ठा और मरीज़ों से आत्मीयता ने इस शिविर को केवल एक इलाज़गाह नहीं, बल्कि एक उम्मीदगाह बना दिया।
मरहूमों के नाम से पेश की गई इंसानी खिदमत
इस आयोजन को ईसाल-ए-सवाब की नियत से आयोजित किया गया था, जो अज़ीज़ और बुजुर्ग मरहूमों के नाम समर्पित रहा :
मरहूम मीर मोहम्मद तकी साहब
मरहूम मोहम्मद नसीर साहब
ख़ानवादा-ए-सैयद मोहम्मद अकबर रिज़वी के तमाम मरहूमीन
इस मुहिम की मेज़बानी की जिम्मेदारी निभाई ख़ानवादा-ए-सैयद मोहम्मद अकबर रिज़वी कटका, बाराबंकी, इस नेक काम का मरकज़ बना।
“आंखों का नूर” — रोशनी सिर्फ आँखों की नहीं, दिलों की भी
“आंखों का नूर” केवल एक प्रोग्राम नहीं, बल्कि एक सुलगती हुई ज़रूरत का जवाब है — उन बुज़ुर्गों के लिए जो चश्मा नहीं ले सकते, उन बच्चों के लिए जो साफ़ नहीं देख पाते, और उन ग़रीबों के लिए जिनकी दुनिया मोतियाबिंद के अंधेरे में कैद हो चुकी है।
इमाम ख़ुमैनी फ़ाउंडेशन (भारत) का यह कारवां एक रिवायत बन रहा है — जो हर गांव, हर कस्बे, और हर दरकिनार इंसान तक यह पैग़ाम लेकर जा रहा है कि “इंसानियत अभी ज़िंदा है।”
समापन की घड़ी में दुआएं और शुक्रिया
कार्यक्रम के समापन पर मरीज़ों ने आंखों में आंसू और दिल में दुआओं के साथ इस नेक खिदमत के लिए आयोजकों का शुक्रिया अदा किया। तमाम मौज़िज़ मेहमानों और डॉक्टरों को माला पहनाकर और शॉल भेंट कर सम्मानित किया गया।
“आंखों का नूर ” जैसे कैंप न केवल रौशनी लौटाते हैं, बल्कि समाज की आंखें भी खोलते हैं — यह एहसास कराने के लिए कि सेवा ही सबसे बड़ी सियासत है, और इंसानियत ही सबसे ऊंचा मज़हब।