तहलका टुडे । बाराबंकी, उत्तर प्रदेश
जिस वक़्त पूरी दुनिया में मध्य-पूर्व की राजनीति, इमाम खुमैनी की विरासत और भारत के वैचारिक प्रभाव को लेकर बहसें हो रही हैं, उसी समय एक अमेरिकी रिसर्चर, केरल के प्रोफेसर और ‘Times of India’ के लिए स्वतंत्र पत्रकार होने का दावा करने वाली गायत्री त्यागी अचानक बाराबंकी के एक ऐतिहासिक कस्बे किंतूर में दस्तक देते हैं।
यह कोई सामान्य दौरा नहीं था, यह एक वैचारिक और ऐतिहासिक अन्वेषण था – जिसमें दुनिया यह जानना चाहती है कि आखिर हिंदुस्तान और इमाम खुमैनी के रिश्तों की असल बुनियाद क्या है।
को
किंतूर : जहाँ इतिहास की हर परत से तहज़ीब टपकती है
किंतूर — वो नाम जो सुनने में साधारण लगता है, लेकिन इसकी मिट्टी में भारत की आत्मा, सभ्यता और संघर्ष की खुशबू है।
इस गाँव ने केवल धर्म और संस्कृति ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ गूंगे क्रांतिकारियों का साथ भी दिया। यहाँ के खेतों में सिर्फ गेहूं नहीं उगे, बल्कि कई गुमनाम आज़ादी के दीवाने भी पले बढ़े जिनके नाम इतिहास की किताबों में दर्ज नहीं, पर ज़मीन आज भी उनके क़दमों की गवाही देती है।
खानवादा-ए-खुमैनी की मिट्टी से मुलाकात
डेलिगेशन का मक़सद साफ था – आयतुल्लाह रुहुल्लाह खुमैनी और उनके हिंदुस्तान से रिश्तों को जानना। इस यात्रा की सबसे अहम कड़ी रही खानवादा-ए-खुमैनी के वारिस निहाल काज़मी से मुलाक़ात, जिनका दावा है कि इमाम खुमैनी के पूर्वजों की जड़ें इसी किंतूर की सरज़मीं से जुड़ी हैं।
निहाल काज़मी ने खुलकर कहा :
“इमाम खुमैनी सिर्फ ईरान के नेता नहीं,पूरी दुनिया के लिए शांति के रहनुमा थे, बल्कि भारत की रूह से भी उनका रिश्ता था। उनके ख़ून में हिंदुस्तानी तहज़ीब थी, और उनकी सोच में सूफियाना जज़्बा। आज अगर अमेरिका इस रिश्ते की तलाश में हमारे दरवाज़े तक आ रहा है, तो ये सिर्फ इतिहास नहीं, एक इंकलाब की वापसी है।”
अमेरिकी रिसर्चर कैथरीन की दिलचस्पी : खुमैनी और हिंदुस्तान का रूहानी रिश्ता
अमेरिकी नागरिक कैथरीन इस बात से हैरान थीं कि भारत के एक गाँव में इमाम खुमैनी की जड़ों से लेकर सूफीवाद, आज़ादी का संघर्ष और आध्यात्म — सब कुछ कैसे समाया हुआ है। उन्होंने यह भी माना कि “यह धरती केवल भारत का अतीत नहीं, दुनिया की सोच का केंद्र बन सकती है।”
देवा शरीफ की रूहानी छाया : वारिस पाक़ की सरज़मीं
किंतूर से कुछ ही दूरी पर मौजूद है रसूलपुर , जहां सूफी संत हाजी वारिस अली शाह पैदा हुए उनकी मज़ार देवा शरीफ में स्थित है। वो संत जिन्होंने जात-पात, मज़हब और नस्ल के बंधनों को तोड़कर इंसानियत का झंडा बुलंद किया। यही वो रूहानी ताक़त है जिसने शायद खुमैनी की सोच और हिंदुस्तानी तहज़ीब को जोड़ने का काम किया।
भारत की विरासत, अब वैश्विक जिज्ञासा का केंद्र
ये कोई इत्तेफ़ाक नहीं कि अमेरिका और इज़राइल से जुड़े शोधकर्ता आज भारत के गुमनाम गाँवों तक पहुंच रहे हैं। यह संकेत है — कि भारत की गहराई, उसका दर्शन, उसकी तवारीख आज फिर से दुनिया की सोच का हिस्सा बन रहा है।
किंतूर : एक मिट्टी जो इंकलाब, आध्यात्म और आज़ादी का संगम है
किंतूर आज भी ज़िंदा है — सिर्फ गाँव की शक्ल में नहीं, बल्कि एक रूह, एक दस्तावेज़, एक मीनार की तरह जो आने वाली नस्लों को ये याद दिलाती रहेगी कि विरासत सिर्फ किताबों में नहीं, मिट्टी में छुपी होती है। और जब दुनिया उस मिट्टी तक पहुँचती है, तो इतिहास फिर से जाग उठता है।