तहलका टुडे, इंटरनेशनल डेस्क
Saudi Arabia ने उमरा ज़ियारत के इतिहास में अभूतपूर्व अध्याय लिखा। महज़ 29 दिनों में करीब 1.2 करोड़ ज़ायरीन, जिनमें 17 लाख से अधिक विदेशी शामिल रहे, हरमैन शरीफ़ैन पहुँचे। इस ऐतिहासिक सैलाब में भारत से आए ज़ायरीनों की बड़ी भागीदारी ने इबादत को दुआ, सब्र और उम्मीद की रोशनी से भर दिया।
डिजिटल व्यवस्था—सहूलियत भी, इम्तिहान भी
ई-वीज़ा, स्मार्ट ट्रैवल सिस्टम और एकीकृत डिजिटल सेवाओं ने उमरा को पहले से कहीं अधिक सुचारु बनाया। लेकिन मस्जिद-ए-नबवी ﷺ में रियाज़ुल जिन्ना की ज़ियारत के लिए Nusuk App पर भारी दबाव रहा। बड़ी संख्या में ज़ायरीनों को वेटलिस्ट पर रहना पड़ा—कई दिल मायूस हुए, पर सब्र ने शिकवा नहीं बनने दिया। ज़ायरीनों ने माना कि यह व्यवस्था पवित्रता और भीड़-नियंत्रण के लिए ज़रूरी है, भले ही हर चाह तुरंत पूरी न हो सके।
भारत से उठी इंसानियत की पुकार
इसी उमरा के दौरान भारतीय ज़ायरीनों की दुआओं में एक साझा स्वर गूंजा—
“जालिमों के ज़ुल्म से इंसानियत को निजात मिले।”
भारत की तरक़्क़ी, बुलंदी, आपसी एकता और भाईचारे के साथ दुनिया में अमन और शांति के लिए ख़ास दुआएँ की गईं। हर सज्दे में यह यक़ीन शामिल था कि इंसाफ़, रहमत और इंसानियत—यही मज़हब की रूह है।
विलायत, इल्म और अद्ल के लिए ख़ास दुआ
हरम और रौज़ा-ए-रसूल ﷺ की फ़िज़ाओं में एक और मन्नत बार-बार पेश की गई—
भारत की सरज़मीं पर Hazrat Ali (AS) International Central University की क़ायमी के लिए ख़ास दुआएँ।
इल्म, अद्ल और विलायत का यह ख़्वाब—देश में तालीम, इंसाफ़ और अख़लाक़ की रोशनी फैलाए—इसी उम्मीद के साथ सज्दों में रखा गया कि अल्लाह इसे क़ुबूल फ़रमाए।
यह उमरा सिर्फ़ आँकड़ों की कहानी नहीं, दिलों की तहरीर है—जहाँ तकनीक ने रास्ते आसान किए, वहीं सब्र ने रूह को मज़बूत किया। रियाज़ुल जिन्ना की वेटलिस्ट से उपजी मायूसी के बावजूद, भारतीय ज़ायरीनों की दुआओं ने अमन, एकता और इंसानियत का पैग़ाम दिया।
आस्था और उम्मीद—इन्हीं दो पंखों पर यह ऐतिहासिक उमरा दुनिया को शांति की तरफ़ बुलाता रहा




