तहलका टुडे टीम
लखनऊ की रचनात्मक धरोहर और तहज़ीब का जादू रूस की राजधानी मॉस्को में उस समय छा गया, जब मशहूर दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी ने अपनी अनूठी शैली से भारतीय संस्कृति और लखनवी अदब का परचम बुलंद किया। हिमांशु ने अपने शब्दों और प्रस्तुतियों से न केवल भारतीयों के दिलों को छुआ, बल्कि रूसियों के भी दिलों में जगह बनाई।
रूस में पहली बार सजी दास्तानगोई की महफ़िल
30 नवंबर 2024 को मॉस्को स्थित भारतीय दूतावास के जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केंद्र में दास्तानगोई का ऐतिहासिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) और हिंदुस्तानी समाज मॉस्को के सहयोग से हुआ। इसके बाद 1 दिसंबर को हिमांशु बाजपेयी ने पेरेजेलकिना के प्रसिद्ध राइटर्स विलेज में भी अपनी प्रस्तुति दी, जो विश्व साहित्य के महान केंद्रों में से एक है।
यह पहली बार था कि राइटर्स विलेज में किसी भारतीय कार्यक्रम का आयोजन हुआ, और यह अवसर साहित्य और संस्कृति के वैश्विक आदान-प्रदान का प्रतीक बन गया।
राज कपूर और शैलेंद्र की दोस्ती: दास्तान का केंद्र बिंदु
हिमांशु बाजपेयी ने अपनी दास्तान में राज कपूर और महान गीतकार शैलेंद्र की दोस्ती के किस्सों को जीवंत किया। कहानी उस समय की है जब आज़ादी के बाद मुंबई में एक मुशायरे के दौरान राज कपूर ने शैलेंद्र की नज़्म सुनकर उनकी प्रतिभा को पहचाना। दास्तान में उन गीतों की रचना के रोचक किस्से सुनाए गए, जो भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर हो गए।
‘आवारा हूं’ की कहानी: यह गीत बिना फिल्म की कहानी सुने ही लिखा गया था। राज कपूर ने पहले इसे अस्वीकार कर दिया, लेकिन बाद में यह गीत भारतीय सिनेमा का हिस्सा बनकर कालजयी हो गया।
‘रमैया वस्तावैया’ की प्रेरणा: आंध्र प्रदेश के एक ढाबे पर वेटर रमैया से प्रेरित इस गीत ने संगीत और कहानी को अनोखे तरीके से जोड़ा।
रूसी दर्शकों का दिल जीतने वाली प्रस्तुति
इस दास्तान का रूसी भाषा में अनुवाद प्रगति टिपणीस ने किया, जिससे रूसी श्रोताओं ने भी इसे समान रूप से सराहा। दर्शकों ने दास्तान के हर पल का आनंद लिया और लखनवी अंदाज की तारीफ की।
भारतीय दूतावास में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, डिप्टी चीफ ऑफ मिशन निखिलेश गिरी ने हिमांशु की कला को अद्वितीय बताया। उन्होंने कहा, “हिमांशु बाजपेयी ने दास्तानगोई को इतनी खूबसूरती से पेश किया कि श्रोताओं ने हर दृश्य को अपनी आंखों के सामने घटित होते देखा। यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक अभूतपूर्व प्रदर्शन था।”
लखनऊ से मॉस्को तक: कला का सफर
हिमांशु बाजपेयी की प्रस्तुतियों ने भारत और रूस के बीच सांस्कृतिक संबंधों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। हिंदुस्तानी समाज मॉस्को की महासचिव प्रगति टिपणीस ने इसे ऐतिहासिक क्षण बताया। उन्होंने कहा, “यह पहली बार था जब रूस में रहने वाले लोग दास्तानगोई जैसी भारतीय कला से रूबरू हुए। हिमांशु ने दोनों देशों के बीच एक सेतु का काम किया है।”
रूस में हिमांशु बाजपेयी की दास्तानगोई को मिले व्यापक समर्थन को देखते हुए, भारतीय दूतावास ने उन्हें अगले वर्ष फिर आमंत्रित करने की योजना बनाई है। यह न केवल भारतीय संस्कृति को विश्व मंच पर स्थापित करने का एक बड़ा कदम होगा, बल्कि दास्तानगोई जैसी प्राचीन विधा के संरक्षण और प्रसार में भी सहायक सिद्ध होगा।
हिमांशु बाजपेयी ने अपनी कला के माध्यम से यह साबित कर दिया कि लखनऊ की तहज़ीब और अदब वैश्विक मंचों पर भी अपनी अनूठी पहचान बना सकते हैं। मॉस्को में उनकी प्रस्तुतियों ने भारतीयता की गहरी छाप छोड़ी और लखनऊ की सांस्कृतिक धरोहर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरवान्वित किया। यह आयोजन भारतीय और रूसी संस्कृति को जोड़ने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ।
लखनऊ और भारत को हिमांशु बाजपेयी की इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर गर्व है।