हराम कमाई, रिश्वत और ग़स्ब की संपत्ति पर नजरो नियाज़ और इबादत,इस्लाम में इसकी हकीकत और असर
तहलका टुडे /हसनैन मुस्तफा
इस्लाम में हलाल और हराम की धारणा बेहद महत्वपूर्ण है। यह न केवल इंसान के रोज़मर्रा के जीवन को प्रभावित करती है, बल्कि उसकी इबादत, दुआ, और आखिरत पर भी इसका गहरा असर पड़ता है। हराम कमाई, रिश्वत और ग़स्ब (कब्जा की हुई संपत्ति) से जुड़े मसले को कुरान और अहलेबैत (अ) की शिक्षाओं में बार-बार उठाया गया है। इस लेख में हम इस्लाम के नजरिए से हराम कमाई और इसके असर पर चर्चा करेंगे।
हराम कमाई और रिश्वत का निषेध
कुरान में हराम की कमाई पर चेतावनी
अल्लाह तआला ने कुरान में साफ तौर पर हराम कमाई को नकारा है और इसे इंसान के लिए ज़लालत का सबब बताया है।
> “और लोगों के माल को नाहक मत खाओ, और न उसे रिश्वत के तौर पर हाकिमों के पास ले जाओ ताकि तुम दूसरों के माल का कुछ हिस्सा गुनाह के साथ खा जाओ।”
(सूरह अल-बक़रा, 2:188)
यह आयत बताती है कि रिश्वत और हराम खोरी इंसान के किरदार को खराब करती है और समाज में ज़ुल्म और फितना फैलाती है।
हराम माल और गुनाह
> “जो लोग ज़ुल्म के साथ माल खाते हैं, वे अपने पेट में सिर्फ आग भर रहे हैं। और वे जल्दी ही जहन्नम में झोंके जाएंगे।”
(सूरह अल-निसा, 4:10)
हराम कमाई के जरिए जमा किया गया माल, चाहे वह जमीन हो, दुकान हो, या मकान, न केवल दीन और ईमान के लिए नुकसानदेह है, बल्कि दुनिया में भी इसकी सजा भुगतनी पड़ती है।
अहलेबैत (अ) की शिक्षाओं में हराम कमाई का हुक्म
हराम कमाई पर इबादत की कबूलियत?
इमाम अली (अ) फरमाते हैं:
“हराम से कमाया हुआ एक दीनार भी अगर इंसान अल्लाह की राह में खर्च करे, तो वह कबूल नहीं होगा।”
(नहजुल बलाग़ा)
हराम जमीन पर नमाज
इमाम जाफर सादिक़ (अ) ने फरमाया:
“ग़स्ब की हुई (हराम तरीके से कब्जा की हुई) जमीन पर पढ़ी गई नमाज हराम और रद्द है।”
हराम कमाई और दुआ की असरदारी
इमाम सादिक़ (अ) फरमाते हैं:
“जो हराम खाता है, उसकी न नमाज कबूल होती है, न रोजा और न ही उसकी दुआ।”
(काफी, जिल्द 4, पृष्ठ 25)
हराम कमाई न केवल इंसान की इबादत और दुआ को अल्लाह की बारगाह में बेअसर कर देती है, बल्कि उसके दिल को सख्त कर देती है।
हराम से बनी संपत्ति का इस्तेमाल और असर
1. ग़स्ब मकान और जमीन:
ग़स्ब मकान या जमीन पर रहना या उसका इस्तेमाल करना इस्लाम में सख्त मना है।औकाफ की जमीन पर रह रहे लोग अगर किराया मौजूदा वक्त के हिसाब से या कमेटी से तय करके नहीं देते तो वो भी इसी कैटेगरी में आयेगा।
> अगर कोई व्यक्ति हराम तरीके से कब्जा की हुई जमीन पर नमाज पढ़ता है, तो उसकी नमाज हराम और रद्द हो जाती है।
2. हराम रकम से दी गई नजर या सदका:
हराम कमाई से दी गई नजर, सदका, या कोई खैरात अल्लाह के दरबार में कबूल नहीं होती। यह न केवल कबूलियत से महरूम रहती है, बल्कि गुनाह का सबब बनती है।
3. हराम खाना चखना:
अगर किसी को मालूम हो कि यह नजर नियाज़, तबर्रूक हराम रकम से तैयार किया गया है, और फिर भी वह इसे खाता है, तो वह गुनाह में बराबर का भागीदार बनता है।
हराम से बचने का रास्ता
1. हराम संपत्ति छोड़ना और तौबा करना:
हराम तरीके से हासिल की गई संपत्ति को तुरंत असल मालिक को लौटा देना चाहिए। अगर मालिक का पता न चले, तो इसे गरीबों और जरूरतमंदों में बांटना चाहिए।
2. हलाल कमाई की तलाश:
इस्लाम ने मेहनत और हलाल रोज़ी को इंसान के लिए जरूरी बताया है।
> “ऐ रसूल, पाक (हलाल) चीज़ें खाओ और नेक अमल करो।”
(सूरह अल-मुमिनून, 23:51)
3. ग़स्ब की हुई जगह खाली करें:
अगर किसी ने ग़स्ब की हुई जमीन, दुकान, या मकान पर कब्जा कर रखा है, तो उसे तुरंत छोड़ देना चाहिए।
4,औकाफ की जमीन पर मौजुदा वक्त के हिसाब से किराया अदा करे,
अल्लाह की जमीन जिसके निगरा इमाम ए जमाना है कि रकम मारना सबसे बड़ा गुनाह है।
हराम कमाई, रिश्वत, और ग़स्ब की संपत्ति न केवल इंसान के लिए गुनाह का सबब बनती है, बल्कि उसके दीन, दुनिया, और आखिरत को भी बर्बाद कर देती है। कुरान और अहलेबैत (अ) की शिक्षाओं में हराम से बचने और हलाल कमाई की अहमियत पर जोर दिया गया है।
हराम संपत्ति से की गई इबादत, सदका, या नजर अल्लाह और अहलेबैत के दरबार में कबूल नहीं होती। इसके अलावा, ऐसी संपत्ति पर पलने वाले परिवार और उसकी पीढ़ियां भी इस असर से नहीं बच पातीं।
इसलिए, हमें चाहिए कि हम अपनी कमाई और इबादत को हराम से बचाते हुए हलाल के रास्ते पर चलें, ताकि अल्लाह की रहमत और बरकत हमारे जीवन का हिस्सा बने।