तहलका टुडे डेस्क
दुनिया के हर कोने में अगर कोई एक नाम है जिससे शैतान कांपता है, तो वो है अयातुल्लाह सैय्यद अली खामेनई।
वो ना बादशाह हैं, ना ताज पहनते हैं, मगर उनकी आंखों की चमक और आवाज़ की गरज ने यज़ीदी फ़िक्र और ज़ालिम गठबंधनों की नींदें हराम कर रखी हैं।
जब दुश्मन के पास मीडिया की ताक़त थी, मिलिट्री की क्रूरता थी, डॉलर की बारिश थी और साजिशों की लंबी फेहरिस्त — तब भी ये हुसैनी रहबर एक बर्फ़ की तरह ठंडा, मगर आग की तरह तपता खड़ा रहा।
“सिर्फ रहबर नहीं — कर्बला के मक़सद का ज़िंदा नमूना”
अयातुल्लाह खामेनई सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि कर्बला की तर्जुमानी हैं।
वो नारा लगाते हैं:
“हमें मौत से डर नहीं, ज़ुल्म से समझौता नहीं, और इमाम हुसैन के रास्ते से कोई हटा नहीं सकता।”
जहां आज के लीडर कैमरों के सामने मुस्कुराते हैं, वहां खामेनई मजलिसों में रोते हैं।
जहां दुनिया के राजा आलीशान महलों में बसते हैं, वहाँ ये रहबर सादा लिबास में, दरवाज़ा खोलकर मिलने वाला शख्स है।
उनकी नमाज़ में ज़मीन भी गवाही देती है कि ये शख्स इमामे मज़लूम का सच्चा वारिस है।
“शैतान परेशान, क्योंकि एक अयातुल्लाह ने रात की नींद हराम कर दी”
अमेरिका, इस्राईल, नाटो, और खाड़ी के कुछ खुदगर्ज़ तानाशाह — सब मिलकर भी ईरान को झुका न सके।
क्यों?
क्योंकि वहाँ सिर्फ हुकूमत नहीं, हुसैनी सोच हुकूमत कर रही है।
जब जनरल क़ासिम सुलेमानी शहीद हुए, तो खामेनई की आंखें नम थीं — मगर लफ़्ज़ों में कर्बला की आग थी:
“हम हर क़तरे का हिसाब लेंगे… ये इंतेकाम अल्लाह की मर्ज़ी से होगा!”
और फिर वही हुआ — दुश्मन के अड्डों पर मिसाइलें बरसीं, दुनिया हैरान रह गई, और पूरी उम्मत को यकीन हो गया कि ये रहबर सिर्फ बोलता नहीं, अमल करके दिखाता है।
“जहाँ खामोशी में हौसला हो, वहाँ दुश्मन भी चीख़ता है”
खामेनई ने हथियार नहीं उठाया, लेकिन उनकी खामोशी की गूंज में वो ताक़त थी जो पूरे शैतानी महलों को हिलाकर रख देती है।
- सीरिया में बश्शार को गिराने की हर साजिश नाकाम हुई — खामेनई की तदबीर से।
- यमन के भूखे-प्यासे अंसारुल्लाह ने दुनिया की सबसे बड़ी पेट्रो-ताक़त को चित कर दिया — रहबर की दुआओं से।
- लेबनान में हिज़्बुल्लाह ने इस्राईल की ईंट से ईंट बजा दी — खामेनई की तालीम से।
“रहबर सिर्फ ईरान का नहीं, उम्मत का दिल है”
आज दुनिया के कोने-कोने में, चाहे वो लखनऊ हो या लंदन, कर्बला हो या कश्मीर — जो भी हुसैनी है, उसकी रूह में खामेनई की आवाज़ बसती है।
वो मस्जिदों में दुआ भी हैं, जुर्म के खिलाफ उठते हाथ भी हैं, और क़लम के ज़रिए जंग लड़ने वाले भी।
हर अज़ादार की जबान पर, हर शहीद के खून में, और हर मजलूम की आँखों में बस एक ही तस्वीर है —
अयातुल्लाह अली खामेनई।
दुनिया शैतानियत की साज़िशों से भरी है। मगर जब तक एक हुसैनी अयातुल्लाह खामेनई जिंदा है —
- ज़ुल्म की हुकूमतें हिलती रहेंगी,
- मज़लूमों को उम्मीद मिलती रहेगी,
- और इमामे ज़माना (अज) के ظहूर का रास्ता साफ़ होता रहेगा।