लखनऊ की तहज़ीब को फिर से ज़िंदा करते वफा अब्बास – आम नहीं, मोहब्बत बांटने की बेमिसाल मिसाल

THlkaEDITR
5 Min Read
✍️ Syed Rizwan Mustafa

तहलका टुडे टीम

लखनऊ, वो शहर जो अपनी तहज़ीब, तमीज़ और नफ़ासत के लिए जाना जाता है। जहां अदब और अख़लाक़ महज़ किताबों तक सीमित नहीं थे, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा हुआ करते थे। लेकिन अफ़सोस, वक़्त के साथ जैसे जैसे दुनिया बदली, इस शहर की वह तहज़ीब भी धीरे-धीरे तस्वीरों में सिमटती चली गई।

कभी अमीर-ओ-उमरा आम की सौगातों से अपने दीवानों का दिल जीतते थे, लेकिन अब यही आम खास महफ़िलों की शोभा बनकर रह गए हैं। गरीब, यतीम, बेसहारा सिर्फ़ आम की मिठास को देखने और उसे पाने का ख्वाब लिए रह जाते हैं।

लेकिन इस शहर की मिट्टी में अब भी कुछ ऐसे लोग मौजूद हैं जो इस तहज़ीब को सिर्फ़ याद नहीं करते, बल्कि उसे जीते हैं, उसे ज़िंदा रखते हैं। उन्हीं में एक नाम है — वफा अब्बास, अम्बर फाउंडेशन के चेयरमैन, जो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की संसदीय क्षेत्र लखनऊ में उनके सामाजिक सेवा और सद्भाव की प्रेरणा से प्रेरित होकर एक ऐसा काम कर बैठे जिसने लोगों के दिल जीत लिए।

🍋 आम का स्वाद नहीं, मोहब्बत की सौगात 🍋

जब गर्मियों में आम का मौसम आता है, तो शहर के रसूखदार लोग बड़े-बड़े टोकरे भरकर एक-दूसरे को आम भेजते हैं — रस्म अदायगी होती है, कैमरे चमकते हैं, सोशल मीडिया पोस्ट सजते हैं। लेकिन आम के बाग़ से निकलकर ये फल अक्सर यतीमों, गरीबों, और बुजुर्गों तक नहीं पहुंचते। वे केवल देखते हैं, तरसते हैं, और बस आम का ख्वाब लेकर रह जाते हैं।

लेकिन वफा अब्बास ने इस परंपरा को न केवल तोड़ा, बल्कि एक नई तहज़ीब की शुरुआत की। न कोई प्रेस नोट, न कोई इंस्टाग्राम पोस्ट, न कोई पत्रकार, न कोई फोटोशूट — बस एक खामोश काफिला, मोहब्बत का पैगाम लिए, उन घरों की तलाश में निकला जहां आम नहीं, लेकिन दुआओं की कमी नहीं थी।

🕊️ खामोशी से की गई खिदमत, जो तस्वीरों से कहीं बड़ी बन गई

वफा अब्बास की टीम ने शहर के यतीमखानों, बुज़ुर्गों के शेल्टर होम्स, और उन इलाकों को चुना जहां ग़रीबी, भूख और बेबसी बसी हुई थी। उन्होंने आम पहुंचाया, लेकिन उसके साथ-साथ उन चेहरों पर मुस्कान भी दी जिनका कोई पूछने वाला नहीं।

उनकी टीम को लेकर कई लोग तैयार थे फोटो खिंचवाने के लिए, सोशल मीडिया पर दिखाने के लिए, लेकिन वफा अब्बास  की टीम ने साफ़ शब्दों में मना कर दिया —
“ये आम दुआओं के लिए हैं, प्रचार के लिए नहीं।”

🌹 जब नीयत पाक हो, तो अल्फ़ाज़ की ज़रूरत नहीं

कितनी अजीब बात है — जहां आजकल एक पानी की बोतल या एक छोटा-सा कंबल बांटने के लिए भी कैमरा ज़रूरी समझा जाता है, वहीं वफा अब्बास ने यह साबित किया कि खिदमत को अगर खामोशी से किया जाए, तो वह इबादत बन जाती है।

उनका यह क़दम लखनऊ की गंगा-जमुनी तहज़ीब की उस रूह को फिर से जिंदा करता है जो कहती है:

“दूसरे के चूल्हे की आग को बुझते देख अपनी रोटी नहीं सेंकनी चाहिए।”

🤲 दुआएं जो कैमरे में नहीं आती, दिलों में बस जाती हैं

आज लखनऊ में सैकड़ों ग़रीब, यतीम बच्चे और बुजुर्ग वो आम खा रहे हैं जिनका स्वाद किसी आम के स्वाद से अलग है। उसमें इज्ज़त, मोहब्बत, और इंसानियत की मिठास है — और यह सब मुमकिन हुआ वफा अब्बास और उनकी टीम के उस इख़लास से, जो उन्होंने कैमरे से नहीं, दिल से दिखाया।

🔚 एक नई तहज़ीब की शुरुआत…

वफा अब्बास ने जो किया, वह कोई बहुत बड़ा ‘इवेंट’ नहीं था, लेकिन यह एक बड़ी सोच थी, जो लखनऊ जैसे तहज़ीब के शहर में नई जान फूंकने का काम कर रही है। आज जबकि चापलूसी और अमीरों की ख़ुशामद करने वाले दौर में हर कोई मंच ढूंढता फिरता है, वफा अब्बास ने ज़मीन से जुड़कर वो मंच तैयार किया जिस पर सिर्फ़ इंसानियत बोलती है।

लखनऊ को वफा अब्बास जैसे खामोश सिपाही चाहिए, जो सिर्फ़ आम नहीं, मोहब्बत बांटते रहें।
शहर की फिज़ाओं में फिर से वो तहज़ीब लौटे — जो किसी जमाने में लखनऊ की पहचान हुआ करती थी।


#वफा_अब्बास | #AmberFoundation | #लखनऊ_की_तहज़ीब | #InsaniyatZindabad | #RajNathSinghKeSansadiyaKshetraKaFakhr

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *