जहन्नुम की आग में दूसरे दिन भी झुलसता इज़राइल: कुदरत का कहर या जुल्म की सज़ा? यरुशलम से ग़ज़ा तक फैली दहशत की एक नई दास्तान

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जहन्नुम की आग में झुलसता इज़राइल: कुदरत का कहर या जुल्म की सज़ा?
यरुशलम से ग़ज़ा तक फैली दहशत की एक नई दास्तान

यरुशलम, 
कभी जो खुद को मिडिल ईस्ट की सबसे ताक़तवर ताक़त समझता था, आज उसी इज़राइल की फिज़ाओं में सिर्फ़ धुआं है, ज़मीन पर सिर्फ राख, और आसमान में सिर्फ बेबसी। यरुशलम और उसके आसपास के इलाकों में भड़की आग ने ना सिर्फ 5,000 एकड़ ज़मीन को जला कर राख कर दिया, बल्कि एक पूरी कौम की घमंड भरी अकड़ को भी झुका दिया।

आग बुझाने में नाकाम, दुसरे दिन भी धधकता रहा जंगल
जहां तकनीक, हथियार और फौज को अपनी ताक़त समझने वाला इज़राइल हर आग को बारूद से बुझाने का आदी था, वहां अब खुद उसकी तकनीकें बेबस हैं। दो दिन बीत चुके हैं, लेकिन आग थमी नहीं। तेज़ हवाएं, सूखा मौसम और चारों ओर बिखरा सूखा ईंधन – ये सब मिलकर आग को और भड़का रहे हैं। दमकल कर्मी थक चुके हैं, हवाई जहाज़ों से पानी गिराया जा रहा है, लेकिन लपटें बढ़ती जा रही हैं।

अंतरराष्ट्रीय मदद के बावजूद, आग बेक़ाबू
इटली, फ्रांस, साइप्रस, क्रोएशिया और यूक्रेन जैसे देशों से विशेष फायरफाइटिंग विमानों की मदद ली गई। लेकिन जब कुदरत रूठती है, तो इंसानी ताक़तें उसके आगे बौनी साबित होती हैं। यह आग सिर्फ पेड़ नहीं जला रही, यह इज़राइल की नीयत, उसके ज़ुल्म, और घमंड को भस्म कर रही है।

18 संदिग्ध गिरफ्तार – आगजनी या साजिश?
अब तक 18 लोगों को आगजनी के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इनमें से कुछ को मौके पर आग लगाते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया। उनके पास लाइटर, रुई और पेट्रोल जैसे ज्वलनशील सामान बरामद हुए हैं। इज़राइली खुफिया एजेंसी ‘शिन बेट’ इस जांच में जुटी है कि कहीं यह कोई आतंकी साजिश तो नहीं, या फिर यह खुदा की अदालत का फैसला है?

जुल्म का इतिहास, और आज का हिसाब
जिस देश ने सालों से ग़ज़ा, वेस्ट बैंक और फिलिस्तीनियों पर बम बरसाए, उनकी ज़िंदगियों को राख में बदला, आज उसी की फिजा में धुआं है और घरों में खौफ। यरुशलम की सड़कों पर जब अपने बच्चों को गोद में उठाए लोग आग से जान बचाते हुए भागते हैं, तो तस्वीरें याद आती हैं ग़ज़ा की – बस किरदार बदल गए हैं, तकलीफ वही है।

जश्न की जगह मातम – शर्मसार हुआ स्वतंत्रता दिवस
इज़राइल का स्वतंत्रता दिवस, जो हर साल धूमधाम से मनाया जाता था, इस बार मातम में बदल गया। राष्ट्रगान की जगह अब सायरनों की आवाज़ें हैं, आतिशबाजी की जगह आग की लपटें हैं, और जीत के गीतों की जगह सिर्फ चीत्कार है। यह वही देश है, जो दूसरों के घर जलाकर अपने जश्न मनाता रहा – आज उसका अपना आंगन जल रहा है।

पूरी दुनिया बनी गवाह
सोशल मीडिया से लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक, हर मंच पर अब यही चर्चा है – क्या यह आग एक इत्तेफाक है या ऊपर वाले का इन्साफ? तुर्की, ईरान, लेबनान, पाकिस्तान, भारत, मलेशिया और इराक जैसे देशों के लोगों ने खुलकर कहा कि यह इज़राइल पर खुदा का कहर है। “जो दूसरों के घर जलाता है, उसे अपने घर की राख भी देखनी पड़ती है।”

कुदरत की अदालत – देर है, अंधेर नहीं
हर मज़लूम की आह जब आसमान तक पहुंचती है, तो कुदरत चुप नहीं रहती। इज़राइल की ताक़त, उसकी सुरक्षा, उसकी अंतरराष्ट्रीय पहुंच – सब कुछ आज इस आग के सामने बेमानी हो गए हैं। यह आग सिर्फ जंगल नहीं जला रही, यह उस फरेब और फासीवाद को जला रही है, जिस पर यह राष्ट्र खुद को खड़ा करता रहा।

नतीजा साफ़ है

  • जिन हाथों ने दूसरों के घर जलाए, अब उन्हीं हाथों से अपने बच्चों को आग से बचाया जा रहा है।
  • जो सेना दूसरों के घर उजाड़ती रही, आज खुद अपने मुल्क को बचाने में हांफ रही है।
  • जो सरकार दूसरों को सजा देती थी, आज खुद खुदा की सज़ा में फंसी है।

यह आग सिर्फ़ यरुशलम की नहीं, इंसाफ़ की मशाल है।
यह राख सिर्फ़ पेड़ों की नहीं, ज़ुल्म की कब्रगाह है।
और यह मंज़र सिर्फ़ इज़राइल की नहीं, पूरी इंसानियत की चेतावनी है –
जब इंसाफ़ नहीं होता, तो कुदरत बोलती है। और जब कुदरत बोलती है, तो हर ज़ालिम चुप हो जाता है।

 

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