तहलका टुडे डेस्क
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि इंसानियत, मोहब्बत और भाईचारे की राह में कोई सरहद नहीं होती। 10 मोहर्रम, यौमे आशूरा के मौके पर जब श्रीनगर के डाउनटाउन बोताकदल इलाके में मातमी जुलूस निकला, तो वहां का मंज़र देखने लायक था। भीड़ के बीच, बगैर किसी डर या सिक्योरिटी की परवाह किए, मनोज सिन्हा खुद ज़ुलजनाह की ज़ियारत के लिए पहुंचे और इमाम हुसैन (अ.स) और उनके जांनिसार साथियों को ख़िराजे अकीदत पेश किया।
बंद पड़ी आज़ादारी को दिलाई नई रौशनी
मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर में दशकों से बंद पड़े आशूरा के जुलूसों को दोबारा शुरू कराने का श्रेय भी दिया जाता है। उन्होंने न केवल इस धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान किया, बल्कि राज्य प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर माहौल को पुरसुकून और सम्मानजनक बनाया।
ग़ाज़ीपुर से श्रीनगर तक इंसानियत का पैग़ाम
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले से ताल्लुक रखने वाले मनोज सिन्हा का यह कदम पूरे देश को यह संदेश देता है कि इमाम हुसैन (अ.स) किसी एक फिरक़े या मज़हब की नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत की आवाज़ हैं। उन्होंने कहा:
> “हज़रत इमाम हुसैन (अ.स) ने अमन, मोहब्बत और इंसाफ़ के लिए कुर्बानी दी। उनकी शहादत हमें एक ऐसा समाज बनाने की प्रेरणा देती है, जो बराबरी, करुणा और भाईचारे पर टिका हो।”
उन्होंने युवाओं से भी अपील की कि वे इमाम हुसैन (अ.स) की ज़िंदगी और उनके उसूलों से सीख लें, और अपने जीवन को इंसाफ़ और सच्चाई की राह पर चलाएं।
मातमी माहौल में दिल छू लेने वाला नज़ारा
बोताकदल में जब ज़ुलजनाह का जुलूस अपने शबाब पर था, तो उसमें मनोज सिन्हा की मौजूदगी ने अज़ादारों के दिलों को जीत लिया। हज़ारों लोगों की भीड़ में जब उन्होंने हाथ जोड़कर ज़ियारत की, तो लोगों की आँखें नम हो गईं और चारों तरफ “या हुसैन” की सदाएं गूंजने लगीं।
एक लीडर, जो सिर्फ़ सियासत नहीं, मोहब्बत समझता है
यह पहला मौका नहीं है जब मनोज सिन्हा ने अपने बर्ताव से दिलों को जीता हो। मगर आशूरा जैसे संवेदनशील मौके पर उनकी मौजूदगी, उनका विनम्र और आदरयुक्त व्यवहार, और इमाम हुसैन (अ.स) की शहादत को सम्मान देना—ये सब उनके किरदार की गहराई को दिखाता है।
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