“अल- मुन्तज़र ” के बानी, मौलाना नईम अब्बास साहब रुख़सत,ख़िदमात और इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.) के ज़हूर की तैयारियों का पैग़ाम और उनके इतंजार के सबक को याद करेगा हिंदुस्तान,मज़हबी, इल्मी और समाजी हल्क़ों में ग़म का माहौल

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तहलका टुडे टीम/सैयद तकी हसनैन रिजवी

लखनऊ : हिंदुस्तान की इस्लामी और अदबी दुनिया आज ग़मगीन है, क्योंकि मशहूर ख़तीब और आलिम-ए-दीन मौलाना नईम अब्बास साहिब क़िबला इस दुनिया को छोड़कर अपने मालिक-ए-हक़ीक़ी से जा मिले। उनकी वफ़ात से न सिर्फ़ उनके चाहने वालों, बल्कि पूरे मज़हबी और इल्मी हल्क़ों में ग़म और सोग का माहौल है। उनकी तक़रीरों और तहरीरों ने न जाने कितने दिलों को रोशन किया, न जाने कितने लोगों को हिदायत दी और न जाने कितनों को इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.) के सच्चे इंतज़ार की राह दिखाई।

मौलाना साहिब ने अपनी ज़िंदगी का हर लम्हा इस्लाम और अहलेबैत (अ.) की तालीमात को फैलाने में गुज़ारा। वह न सिर्फ़ बेहतरीन ख़तीब थे, बल्कि इस्लामी अदब और तशय्यु की इल्मी दुनिया में भी उनका एक अहम मक़ाम था। उनका मिशन सिर्फ़ मज़हबी मालूमात देना नहीं था, बल्कि वो लोगों को इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.) के ज़हूर के लिए तैयार करना चाहते थे। इसी मक़सद के लिए उन्होंने “जामिया तुल-मुन्तज़र ” नाम से एक मदरसे की बुनियाद रखी और अल मुन्तज़र नाम से एक इस्लामी रिसाला भी जारी किया, जिसमें उन्होंने बार-बार इस हक़ीक़त को बयान किया कि इमाम (अ.ज.) का इंतज़ार महज़ एक अकीदा नहीं, बल्कि एक अमली ज़िम्मेदारी है।

मौलाना नईम अब्बास साहिब की शख़्सियत – इल्म, तक़वा और ख़िदमत का संगम

मौलाना नईम अब्बास साहिब को अल्लाह ने इल्मी गहराई और तक़रीर में अजीब असर बख़्शा था। उनकी तक़रीरें सिर्फ़ दीनी मालूमात का बयान नहीं होती थीं, बल्कि वो जज़्बात और रूहानियत का संगम होती थीं। उनकी आवाज़ में ऐसी कशिश थी, जो सुनने वालों के दिलों में उतर जाती थी। वो जब इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.) का तज़किरा करते, तो मजलिस का माहौल बदल जाता, लोग रोने लगते और अपने अमल का जायज़ा लेने पर मजबूर हो जाते।

उनकी दीनी खिदमात सिर्फ़ तक़रीरों तक महदूद नहीं थीं। उन्होंने अपने इल्मी और तबलीग़ी कामों को आगे बढ़ाने के लिए कई अहम क़दम उठाए। उन्होंने “अल-मुन्तज़िर” मदरसे और रिसाले को इस मक़सद के लिए वक़्फ़ कर दिया कि लोग सिर्फ़ इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.) का इंतज़ार करने वाले ही न बनें, बल्कि उनके नुसरत के लिए तैयार भी हों।

अल-मुन्तज़र– इंतज़ार को अमल में बदलने का पैग़ाम

“अल-मुन्तज़र ” सिर्फ़ एक नाम नहीं था, बल्कि यह एक पूरी तहरीक थी। मौलाना साहिब का मानना था कि इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.) का इंतज़ार महज़ एक अकीदा नहीं, बल्कि एक समाजी और सियासी ज़िम्मेदारी भी है। उन्होंने अपने बयानात और रिसाले के ज़रिए इस बात को आम किया कि इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.) के ज़हूर की तैयारियाँ सिर्फ़ इबादत तक महदूद नहीं होनी चाहिए, बल्कि हमें अपनी समाजी, सियासी और मआशरती ज़िंदगी को भी इस्लामी तालीमात के मुताबिक़ बनाना होगा।

“जो इमाम (अ.ज.) का सच्चा मुंतज़िर है, वह ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करेगा, वह इंसाफ़ की हिमायत करेगा, वह समाज में हक़ को आम करने की कोशिश करेगा।” – मौलाना नईम अब्बास साहिब

भारत की सुप्रीम रिलीजियस अथॉरिटी मौलाना डॉ. कल्बे जवाद नक़वी का अफ़सोस

भारत की सुप्रीम रिलीजियस अथॉरिटी आफ़ताब-ए-शरीयत मौलाना डॉ. कल्बे जवाद नक़वी ने मौलाना साहिब की वफ़ात पर गहरे दुख का इज़हार किया। उन्होंने कहा:

“मौलाना नईम अब्बास साहिब मज़हबी बेदारी की एक अज़ीम आवाज़ थे। उनकी तक़रीरें सिर्फ़ अहलेबैत (अ.) की फ़ज़ीलत का बयान नहीं करती थीं, बल्कि वो दीनी और समाजी हक़ीक़तों को सामने लाने का एक ज़रिया थीं। उन्होंने हमें ये सिखाया कि इंतज़ार-ए-इमाम (अ.ज.) का असली मतलब क्या है। उनकी वफ़ात से जो नुक़सान हुआ है, उसकी भरपाई मुमकिन नहीं।”

तंजीमुल मकातिब के सेक्रेट्री मौलाना सैयद सफ़ी हैदर जैदी के तास्सुरात

तंजीमुल मकातिब के सेक्रेट्री और रहबर-ए-हिंद मौलाना सैयद सफ़ी हैदर जैदी ने भी इस वाक़े पर अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहा:

“मौलाना साहिब की दीनी ख़िदमात को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने मज़हब और समाज को बेहतरीन अंदाज़ में जोड़ा। उनकी तहरीरें और तक़रीरें हमेशा हमें इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.) की सच्ची मदद करने की याद दिलाती रहेंगी।”

सेव वक्फ़ इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट सैयद रिज़वान मुस्तफा का ख़िराज-ए-अक़ीदत

सेव वक्फ़ इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट सैयद रिज़वान मुस्तफा ने मौलाना साहिब की वफ़ात को हिंदुस्तान के लिए एक बहुत बड़ा नुक़सान क़रार दिया। उन्होंने कहा:

“मौलाना नईम अब्बास साहिब ने हमेशा मज़लूमों और महरूमों की हिमायत की। उन्होंने हमें बताया कि असली इंतज़ार क्या होता है। उनकी तहरीरें और तक़रीरें हमेशा हमारे दिलों में ज़िंदा रहेंगी।”
उनके मशविरे आज मेरे इमाम के इतंजार में हर वक्त साथ रहते है,

रहबर-ए-मुअज़्ज़म के नुमाइंदे आयतुल्लाह महदवीपुर ने नौगवां सादात में किया था यादगार एहतमाम

मौलाना साहिब की दीनी और इल्मी ख़िदमात को देखते हुए नौगवां सादात में रहबर-ए-मुअज़्ज़म आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामेनई के हिंदुस्तान में नुमाइंदे आयतुल्लाह महदवीपुर ने एक यादगार प्रोग्राम मुनक्किद किया था, जिसमें मौलाना साहिब की ज़िंदगी और उनके मिशन को सराहा गया था।

मौलाना साहिब आज हमारे बीच नहीं लेकिन उनकी इल्मी और मज़हबी ख़िदमात हमेशा ज़िंदा रहेंगी।
अल्लाह तआला मौलाना साहिब के दर्जात बुलंद फरमाए, उन्हें जवार-ए-मासूमीन (अ.) में आला मक़ाम अता करे और उनके खानवादा को सब्र-ए-जमील अता फरमाए।

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