पीएम मोदी के बनारस की बत्तख बाराबंकी की आबोहवा में दे रही है अंडे: महाभारत काल के परिजात पेड़ और इमाम खुमैनी के कित्तूर के पास अमरा कटहरा गांव में जाड़े में कई वर्षों से चली यह सफलता की कहानी

तहलका टुडे टीम/अली मुस्तफा

बाराबंकी:बनारस, जो सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भारत का दिल माना जाता है, अब एक नई पहल के चलते चर्चा में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र बनारस से लाई गईं छोटी बत्तखें बाराबंकी के कित्तूर इलाके के अमरा कटहरा गांव में एक अद्वितीय और सफल बत्तख पालन प्रोजेक्ट का हिस्सा बन चुकी हैं।

बत्तख पालन की शुरुआत: बनारस से लेकर कित्तूर तक

बनारस की छोटी बत्तखों ने बाराबंकी के ऐतिहासिक इलाके में कदम रखा है। यहां अमरा कटहरा गांव में महाभारत काल के ऐतिहासिक परिजात पेड़ के पास बत्तख पालन का यह सिलसिला कई वर्षों से जाड़े के मौसम में सफलतापूर्वक चल रहा है। यह पहल एक नई आर्थिक संभावनाओं और स्वास्थ्य लाभ की ओर इशारा करती है।

इन बत्तखों का पालन सिर्फ एक व्यवसाय नहीं है, बल्कि यह रोजगार, पर्यावरण संरक्षण, और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी प्रभाव डाल रहा है।

छोटी बत्तखों का योगदान: अंडा उत्पादन और स्वास्थ्य लाभ

अमरा कटहरा गांव के फार्म में करीब 2,000 से अधिक बत्तखें हैं, जो हर दिन हजारों अंडे देती हैं। इन अंडों की खासियत यह है कि ये प्राकृतिक और पौष्टिक तत्वों से भरपूर होते हैं।

बत्तख अंडों के फायदे:

  1. पोषण से भरपूर:
    बत्तख के अंडे प्रोटीन, ओमेगा-3 फैटी एसिड, और विटामिन से भरपूर होते हैं, जो शारीरिक विकास और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।
  2. स्वाद और ताकत:
    बत्तख के अंडे चिकन के अंडों से गाढ़े और क्रीमी होते हैं। इसके सेवन से मांसपेशियों को मजबूती मिलती है।
  3. एनर्जी बूस्टर:
    बत्तख के अंडे प्राकृतिक रूप से शरीर में ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  4. सौ फीसदी ऑर्गेनिक:
    यह अंडा बिना किसी कृत्रिम तरीका या रासायनिक उपयोग के उत्पादन किया जाता है, जिससे यह पूरी तरह से सुरक्षित और प्राकृतिक होता है।

बत्तख पालन और आर्थिक समृद्धि: ग्रामीण रोजगार का नया जरिया

बत्तख पालन न केवल स्वास्थ्य के क्षेत्र में योगदान दे रहा है, बल्कि यह आर्थिक दृष्टिकोण से भी बेहद लाभकारी है।

बाजार में मांग:
फार्म से हर दिन हजारों अंडे उत्पादित होते हैं, जिन्हें 12 से 15 रुपए प्रति अंडे की दर से बेचा जाता है।

ग्रामीण रोजगार:
यह व्यवसाय स्थानीय समुदाय के लोगों के लिए रोजगार और आर्थिक समृद्धि का एक जरिया है।

पर्यावरण पर प्रभाव: जैविक खेती और कृषि में सहायक पहल

बत्तख पालन ने क्षेत्र के पर्यावरण और खेती पर भी सकारात्मक प्रभाव डाला है।

  1. कीड़ों और खरपतवारों का नियंत्रण:
    बत्तख खेतों में प्राकृतिक तरीके से कीड़े और खरपतवारों को नियंत्रण करती हैं, जिससे किसानों को रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम हो जाती है।
  2. भूमि की उर्वरता में सुधार:
    बत्तखों के मल से भूमि की उर्वरता बढ़ती है, जो जैविक खेती को बढ़ावा देती है।

चुनौतियां और अवसर

हालांकि बत्तख पालन एक लाभकारी और संभावनाओं से भरा व्यवसाय है, लेकिन इस क्षेत्र को कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है:

बत्तखों की सुरक्षा:
जंगली जानवरों से बत्तखों की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है।

मौसमी अनिश्चितता:
मौसमी बदलाव और ठंड की समस्या भी प्रभाव डाल सकती है।

बाजार तक पहुंच:
उचित बाजार तक पहुंच न होना भी एक प्रमुख समस्या है।

यदि सरकार और स्थानीय प्रशासन इस पहल को सहयोग प्रदान करें, तो यह बत्तख पालन मॉडल और भी सफल हो सकता है।

*स्वास्थ, रोजगार और पर्यावरण के समन्वय का नया अध्याय*

बनारस से लाई गई इन छोटी बत्तखों ने बाराबंकी के अमरा कटहरा गांव में एक नई कहानी लिखी है। महाभारत काल के परिजात पेड़ और इमाम खुमैनी जैसे ऐतिहासिक तत्वों के संगम में बत्तख पालन एक नया आर्थिक और स्वास्थ्य सुधार का जरिया बन चुका है।

इस पहल ने स्वास्थ्य, पर्यावरण और रोजगार के क्षेत्र में अपने सकारात्मक प्रभाव दिखाए हैं। यह कहानी न केवल एक छोटे से प्रयास से बड़े बदलाव की मिसाल है, बल्कि भारत के ग्रामीण इलाकों में नवाचार और व्यवसायिक संभावनाओं के दरवाजे भी खोलती है।

यह बत्तख पालन न केवल किसानों और ग्रामीणों के लिए आय का जरिया है, बल्कि यह पोषण और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी एक नई उम्मीद लेकर आया है।

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