वक़्फ़ संपत्तियों के आँकड़ों पर केंद्र सरकार से भिड़ा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, सुप्रीम कोर्ट में दायर किया जवाबी हलफ़नामा

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तहलका टुडे टीम

नई दिल्ली, 3 मई 2025 — ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने केंद्र सरकार के उस दावे पर कड़ी आपत्ति जताई है, जिसमें कहा गया कि वर्ष 2013 के बाद वक़्फ़ संपत्तियों की संख्या में “चौंकाने वाली वृद्धि” हुई है। बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफ़नामा दाख़िल कर केंद्र द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों को “भ्रामक और असत्य” बताया है और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के एक अधिकारी के विरुद्ध कार्यवाही की मांग की है, जिन्होंने यह हलफ़नामा दायर किया था।

गलत तथ्यों से गुमराह करने का आरोप

AIMPLB ने कहा है कि केंद्र सरकार यह दिखाना चाहती है कि 2013 से पहले जितनी वक़्फ़ संपत्तियाँ पंजीकृत थीं, वे सभी उसी वर्ष WAMSI (वक़्फ़ प्रबंधन सूचना प्रणाली) पोर्टल पर अपलोड कर दी गई थीं। लेकिन वास्तविकता इससे भिन्न है। हलफ़नामे में प्रयुक्त चार्ट को “भ्रामक” करार देते हुए कहा गया है कि उसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया कि 2013 में पंजीकृत सभी संपत्तियाँ उस वर्ष पोर्टल पर डाली गई थीं या नहीं। बोर्ड ने कहा, “इस चार्ट की विश्वसनीयता ही संदेह के घेरे में है। यह तथ्य जानबूझकर या लापरवाही में छुपाया गया है।”

WAMSI पोर्टल के आँकड़ों से ही टकरा रहे हैं केंद्र के दावे

बोर्ड ने कहा कि केंद्र द्वारा प्रस्तुत आँकड़े खुद WAMSI पोर्टल के आँकड़ों से मेल नहीं खाते। उदाहरण स्वरूप, 31 अक्तूबर 2024 तक WAMSI पोर्टल पर वक़्फ़ सम्पत्तियों की संख्या 3,30,008 दर्शाई गई है, जबकि केंद्र ने अपने हलफ़नामे में वर्ष 2025 में यह संख्या 6,65,476 बताई है। AIMPLB ने इन दोनों आँकड़ों को विरोधाभासी करार देते हुए कहा कि यह विसंगति स्वयं सरकारी एजेंसियों द्वारा ही उत्पन्न की गई है।

“जायदाद” बनाम “वक़्फ़ एस्टेट” — आंकड़ों में भ्रम पैदा करने की साज़िश?

बोर्ड ने आरोप लगाया कि केंद्र ने जानबूझकर “वक़्फ़ एस्टेट” और “संपत्तियों” के बीच भ्रम पैदा किया है। AIMPLB ने स्पष्ट किया कि एक वक़्फ़ एस्टेट के अंतर्गत कई इकाइयाँ हो सकती हैं—जैसे दरगाह, मस्जिद, कब्रिस्तान, मदरसा इत्यादि—जो एक ही रजिस्ट्रेशन नंबर के अंतर्गत आती हैं। लेकिन WAMSI में इन्हें ‘मालिक़ाना यूनिट्स’ के रूप में अलग-अलग दिखाया जाता है। इसी तकनीकी भेद का उपयोग करके आँकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।

AIMPLB ने इसे आंकड़ों की “तोड़-मरोड़” बताते हुए कहा कि यह प्रसिद्ध कहावत का उदाहरण है—“Lies, damned lies, and statistics.” यानी आँकड़े भी झूठ बोल सकते हैं, जब उन्हें उद्देश्यपूर्वक पेश किया जाए।

2013 के बाद वक़्फ़ क्षेत्र में 116% वृद्धि का दावा भी सवालों के घेरे में

केंद्र ने अपने हलफ़नामे में यह भी कहा था कि 2013 में वक़्फ़ ज़मीन की कुल मात्रा 18,29,163.896 एकड़ थी, जो 2025 में बढ़कर 39,21,236.459 एकड़ हो गई—यानी 116% की वृद्धि। AIMPLB ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह दावा ठोस साक्ष्यों पर आधारित नहीं है, बल्कि गुमराह करने का प्रयास है।

कलेक्टर को मिले व्यापक अधिकारों पर भी AIMPLB की आपत्ति

AIMPLB ने केंद्र द्वारा प्रस्तुत हलफ़नामे पर यह भी सवाल उठाया कि 50 से अधिक अनुच्छेदों में रजिस्ट्रेशन की उपयोगिता को तो रेखांकित किया गया, लेकिन यह नहीं बताया गया कि वक़्फ़ की परिभाषा से “user waqf” को हटाने की आवश्यकता क्यों है, जब पहले से ही रजिस्ट्रेशन के लिए कड़ा प्रावधान (धारा 36) मौजूद है।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 5 मई को

यह जवाबी हलफ़नामा वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली याचिका के तहत दाख़िल किया गया है, जिसकी सुनवाई 5 मई को भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष होगी।

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