तहलका टुडे टीम/सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा
(जब आतंकवाद ने सूट पहन लिया और दुनिया ने कहा — ‘वाह, क्या व्यक्तित्व है!’)
कभी सोचा था कि एक दिन वो आएगा, जब जो सिर कलम करता था, वही सिर झुकाकर वोट मांगेगा?
जब जो इंसानियत को खौफ से कुचलता था, वो अब लोकतंत्र के मंच पर “शांति” की बातें करेगा?
अबू मोहम्मद अल-जोलेनी — नाम तो सुना होगा। वही जिहादी, जो कभी बगदादी का भाई-बंधु था, अब सूट पहनकर CNN पर मुस्कराता है। और हैरानी की बात यह है कि अब अमेरिका और सऊदी अरब उसके “नए अवतार” पर फूल बरसा रहे हैं।
अब आतंकवाद भी रिटायर्ड नहीं होता, बस अपना पहनावा और एजेंडा बदल लेता है।
1. जब ‘कत्ल’ कैपिटल हिल में कैरियर बन जाए
बगदादी ने क्या कमी छोड़ी थी? सिर काटे, बस्तियाँ उड़ाईं, और दुनिया को बता दिया कि आतंक क्या होता है।
लेकिन जोलेनी साहब तो आगे निकले।
उन्होंने सिखाया:
“अगर सूट पहन लो, दाढ़ी ट्रिम करा लो, और ‘लोकल हित’ की बातें करने लगो — तो आतंकवाद का कलंक, राजनीति का तमगा बन सकता है।”
अब क्या करें?
दुनिया अब कातिलों को नहीं देखती, बस कैमरे में उनकी स्माइल देखती है।
2. ट्रंप का मंत्र: ‘डील कर लो, चाहे शैतान से ही क्यों न हो!’
डोनाल्ड ट्रंप का सिद्धांत बड़ा सरल है:
“अगर तुम्हारे पास तेल है, या तुम मेरे दुश्मन से दुश्मनी रखते हो — तो तुम मेरे दोस्त हो। चाहे तुमने कल ही किसी स्कूल को उड़ा दिया हो।”
“मॉरल वैल्यूज”?
उफ्फ! ये तो स्कूल की किताबों में ही अच्छे लगते हैं।
राजनीति में तो अब बस “डील”, “डॉलर”, और “डैमेज कंट्रोल” चलता है।
3. सऊदी क्राउन प्रिंस: बाहर से ‘मॉडर्न’, अंदर से ‘मॉड्यूल’ सप्लायर
मोहम्मद बिन सलमान यानी MBS, जो दुनिया को ‘नीओम सिटी’ और ‘सिनेमाघर खोलने’ की कहानियाँ सुनाते हैं,
अंदरखाने आज भी वही पुराना खेल चल रहा है —
जिहादियों को गोदी में बिठाना और ‘रिफॉर्म’ के नाम पर फोटोशूट कराना।
सवाल यह है:
क्या वाकई बिन सलमान बदल गए हैं,
या बस अच्छा मेकअप आ गया है?
4. जिन्हें बम से उड़ाना था, अब उन्हें चाय पर बुलाया जा रहा है
सीरिया में वही HTS, जिसे अमेरिका ने ‘आतंकी संगठन’ घोषित किया था,
अब ‘स्थानीय सरकार’ चलाने की काबिलियत रखता है।
क्यों?
क्योंकि अब उसकी ज़रूरत है —
ईरान और असद के खिलाफ एक प्यादा चाहिए था, और जोलेनी सूट पहनकर बोर्ड पर आ गया।
अमेरिका का संदेश साफ़ है:
“तुम हमारे दुश्मन के दुश्मन हो, इसलिए तुम थोड़े कम खतरनाक हो।”
5. दुनिया की चेतावनी: आतंकवाद अब सिर्फ AK-47 नहीं, Armani सूट में भी आता है
अब आतंकवादी ऐसे दिखते हैं जैसे कोई स्टार्टअप चला रहे हों।
न प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिचकिचाहट,
न अपने अतीत पर पछतावा,
और न ही मानवता के लिए कोई ग्लानि।
बस एक चमकदार सूट, दो चार अंग्रेज़ी वाक्य, और
“Congratulations, You are now a Leader!”
6. जोलेनी का जिहाद: खून से शुरुआत, कैमरे पर समाप्ति
कभी इराक की गलियों में जो सिर कलम करता था,
आज वॉशिंगटन की मीटिंग में टाई बाँधकर बैठा है।
और हमें कहा जा रहा है —
“Change is real.”
क्या बदल गया?
ना उनका मन बदला,
ना उनका मकसद।
बस मारने की शैली बदल गई,
अब तलवार नहीं — पॉलिसी पेपर से मारा जाता है।
7. भावनात्मक अंत: क्या हम इतनी जल्दी भूल जाते हैं?
क्या हमने उन माँओं की चीखें नहीं सुनीं, जिनके बच्चों को IS के दरिंदों ने मार डाला?
क्या हमें याद नहीं, कैसे HTS के बमों से मस्जिदें, स्कूल और अस्पताल उजड़े?
फिर कैसे हम उस जोलेनी को “राजनीतिक विकल्प” मान सकते हैं?
क्या मानवता अब इतनी सस्ती हो गई है?
क्या “लीडरशिप” अब बस कैमरे के सामने अच्छा दिखने का नाम है, न कि किरदार का?
जब दुनिया तालियाँ बजा रही है, तब इंसाफ रो रहा है
आज हम जिस दुनिया में जी रहे हैं,
वहां ‘सच’ को कूटनीति, और ‘झूठ’ को राजनैतिक विवेक कहा जाता है।
जिसे कल ‘आतंकी’ कहा गया, उसे आज नेता बना दिया गया।
और सबसे खतरनाक बात —
हमने इस पाखंड पर सवाल उठाना भी छोड़ दिया है।
जोलेनी, ट्रंप और बिन सलमान की ये “Holy Trinity” इस बात की गवाही है कि
अब दुनिया में ज़ुल्म, राजनीति, और धंधा — सब एक ही ताने-बाने में बुने जा रहे हैं।
और हम?
हम बस स्क्रीन पर मुस्कुराते चेहरों को देखकर सोचते हैं —
“शायद अब शांति आ जाएगी।”
लेकिन याद रखिए —
जब हत्यारे नेता बनते हैं, तब शांति सबसे पहले मारी जाती है।