तहलका टुडे टीम/ सैयद रिजवान मुस्तफा
नई दिल्ली: हाल ही में रूस और उत्तर कोरिया के बीच हुई नई रणनीतिक साझेदारी ने वैश्विक मंच पर भू-राजनीतिक हलचल मचा दी है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन ने एक ऐतिहासिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत किसी भी सशस्त्र हमले की स्थिति में दोनों देश एक-दूसरे की सैन्य सहायता करेंगे। यह समझौता अब रूसी संसद की मंजूरी और आधिकारिक प्रकाशन के बाद कानून का रूप ले चुका है, जिससे दोनों देशों के बीच सुरक्षा और सहयोग का एक मजबूत स्तंभ बन गया है।
प्योंगयांग शिखर सम्मेलन और रणनीतिक साझेदारी की शुरुआत
यह समझौता जून में प्योंगयांग में हुई शिखर वार्ता में तय हुआ था, जिसमें पुतिन और किम ने अपने देशों के बीच नई रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की। पुतिन ने इस समझौते को दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंधों का प्रतीक बताया और इसे एक नई दिशा देने के तौर पर पेश किया। इस समझौते के तहत, रूस और उत्तर कोरिया एक-दूसरे की रक्षा में सक्रिय सहयोग करेंगे, खासकर किसी बाहरी आक्रमण या संघर्ष की स्थिति में। यह सहयोग दोनों देशों के लिए सैन्य और रणनीतिक महत्व रखता है, क्योंकि रूस को यूक्रेन युद्ध में समर्थन की जरूरत है, जबकि उत्तर कोरिया को अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
रूस-ईरान-उत्तर कोरिया-चीन की चौकड़ी और अमेरिका के लिए चुनौती
रूस और उत्तर कोरिया की साझेदारी, जो ईरान और चीन के साथ मिलकर वैश्विक शक्ति संतुलन को चुनौती दे रही है, अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई है। यह चतुष्कोणीय गठबंधन (रूस, ईरान, और उत्तर कोरिया चाइना) सुरक्षा और आर्थिक दृष्टिकोण से एकजुट हो रहा है, जिससे अमेरिका के लिए इन देशों के खिलाफ प्रतिक्रिया करना और अधिक कठिन हो गया है। इस गठबंधन से अमेरिका को न सिर्फ सैन्य बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी चुनौती मिल रही है। उदाहरण के तौर पर, ईरान और रूस की बढ़ती सैन्य साझेदारी और उत्तर कोरिया का रूस को सैन्य सहायता देना, अमेरिका के लिए दबाव की स्थिति बना रहा है।
वैश्विक प्रतिक्रियाएं और भविष्य की दिशा
इस नई साझेदारी पर वैश्विक स्तर पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों के नीति निर्माता इसे वैश्विक स्थिरता के लिए खतरे के रूप में देख रहे हैं, जबकि चीन इस गठबंधन को अपनी ताकत बढ़ाने के रूप में देख सकता है। यह गठबंधन न केवल सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि आर्थिक सहयोग के लिहाज से भी। उदाहरण के तौर पर, रूस और चीन के बीच ऊर्जा व्यापार में वृद्धि हुई है, जिससे रूस को आर्थिक मजबूती मिली है। इसके अलावा, ईरान और चीन के बीच तेल और गैस व्यापार भी प्रगति कर रहा है, जिससे अमेरिकी नीतियों को और अधिक चुनौती मिल रही है।
अमेरिका का नजरिया और “आक्सिस ऑफ ईविल” की पुनरावृत्ति
अमेरिका के खुफिया अधिकारी जॉन मैकलॉघलिन ने जुलाई में ऐस्पन सिक्योरिटी फोरम में कहा कि चीन, ईरान, उत्तर कोरिया और रूस के आतंकवाद को रोकने से उत्पन्न होने वाले खतरे को “हमारी दुनिया की सबसे बड़ी पहचान” बताया। हालांकि यह पहले से स्पष्ट हो चुका है कि इन देशों के बीच सहयोग अधिकतर द्विपक्षीय और अस्थायी है, फिर भी उन्हें एकजुट खतरे के रूप में देखा जा रहा है।
यह सही है कि रूस की यूक्रेन में आक्रमण के बाद, चीन, ईरान, और उत्तर कोरिया के बीच संबंध मजबूत हुए हैं, लेकिन यह कहना कि ये देश एक स्थिर “आक्सिस ऑफ ईविल” बना रहे हैं, शायद अत्यधिक सरलीकरण होगा। इन देशों के रिश्ते व्यावहारिक और अस्थायी हैं, जो उनके भूराजनीतिक हितों और अमेरिकी नीति के चलते बने हैं। रूस, ईरान और उत्तर कोरिया के बीच बढ़ती सैन्य सहयोग की घटनाएं चिंता का विषय हो सकती हैं, लेकिन इनके बीच का सामरिक गठबंधन अभी तक पूरी तरह से एकीकृत नहीं हुआ है।
चीन और रूस के बीच सीमित सहयोग और अस्थिर संबंध
रूस और चीन के बीच बढ़ते सहयोग की सीमाएँ भी हैं। चीन और रूस के हित पूरी तरह से मेल नहीं खाते हैं। उदाहरण के लिए, चीन ने रूस के रक्षा क्षेत्र में सहायता दी है,वही रूस-चीन के बीच गैस पाइपलाइन परियोजना “पॉवर ऑफ साइबीरिया 2” की वार्ता जारी है। इसी प्रकार, चीन और उत्तर कोरिया के रिश्ते भी स्थिरता की तरफ बड़े हैं, क्योंकि चीन उत्तर कोरिया के अमेरिका पर आक्रामक रवैये को लेकर खुश है।
वैश्विक राजनीति में बदलाव
रूस, ईरान, उत्तर कोरिया और चीन के बढ़ते सहयोग ने वैश्विक शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। हालांकि इन देशों के रिश्ते अस्थायी और द्विपक्षीय समझौतों पर आधारित हैं, फिर भी इनका सामूहिक असर अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत कर रहा है। अमेरिका को अब आतंकवादियों को बनाने की इंडस्ट्रीज उनका सहयोग करना तानाशाही मिजाज पर विचार करने की आवश्यकता है, और यह जरूरी है कि वे अपने सामरिक दृष्टिकोण को पुनः परिभाषित करें।
यह स्पष्ट है कि रूस-ईरान-उत्तर कोरिया-चीन का गठबंधन अमेरिकी नीति को चुनौती दे सकता है, और इसके प्रभाव से वैश्विक राजनीति के परिदृश्य में और भी बदलाव आ सकते हैं। इजराइल के गुरुर को मिट्टी में मिलाने के लिए काफी है ।