✍️ विशेष रिपोर्ट: सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा रिज़वी
🔍 G7: एक शक्तिशाली क्लब या साम्राज्यवादी बचे हुए लोगों का गठबंधन?
G7 (Group of Seven) कोई संयुक्त राष्ट्र संस्था नहीं है, न ही इसमें दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले या सबसे बड़े लोकतंत्र शामिल हैं। फिर भी, यह खुद को दुनिया के “सुपर-डिसीजन मेकर” के रूप में पेश करता है।
स्थापना: 1975, फ्रांस के राष्ट्रपति वालेरी गिस्कार द’एस्ते और जर्मन चांसलर हेल्मुट श्मिट ने इसे बनाया था — उद्देश्य: वैश्विक आर्थिक संकटों पर आपसी सामंजस्य।
असली मक़सद:
👉 पश्चिमी वर्चस्व को बनाए रखना
👉 पूंजीवाद की बुनियाद को मज़बूत करना
👉 नव-उपनिवेशवाद के ज़रिए एशिया-अफ्रीका पर नियंत्रण बनाए रखना
लेकिन आज G7 सवालों के घेरे में है। क्यों?
क्योंकि इतिहास बदल रहा है।
पश्चिमी ‘हुकूमत की मानसिकता’ के सामने अब एशियाई आत्मनिर्भरता, इस्लामी प्रतिरोध और वैश्विक जनमत की आवाज़ खड़ी हो गई है।
🛑 ट्रंप का ‘जल्दी वापसी’ बयान: एक घबराया सुपरपावर!
“I have to be back as soon as I can.”
- डोनाल्ड ट्रंप, G7 समिट में fellow leaders से
इस एक पंक्ति में छिपा है अमेरिका की गहराती चिंता, गिरती साख और शायद उसकी ऐतिहासिक पराजय की झलक।
💥 क्या हुआ था ठीक पहले?
- ईरान ने ‘अल-महदी डिफेंस डॉक्ट्रिन’ के तहत इज़राइल और अमेरिकी बेस को चेतावनी दी
- सीरिया, इराक, यमन और लेबनान में ईरान समर्थित ताक़तें युद्ध मोड पर आ गईं
- IRGC (Islamic Revolutionary Guard Corps) ने लंबी दूरी की मिसाइलों को अलर्ट कर दिया
- और तेहरान से जारी बयान: “हम अमेरिका के घमंड को उसकी सरज़मीन पर जवाब देंगे।”
📜 इतिहास से सीखता ईरान – और अमेरिका की भटकी हुई विरासत
जब अमेरिका ने 1953 में ईरान के प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्देक को तख्तापलट कर सत्ता से हटा दिया था, तब वह समझता था कि वह इस्लामी दुनिया को हमेशा के लिए झुका सकता है।
लेकिन 1979 की इस्लामी क्रांति ने वह मिथ तोड़ दिया।
👉 आयतुल्लाह खोमैनी के नेतृत्व में ईरान ने अमेरिका के “शाह” को निकाल फेंका
👉 444 दिन तक अमेरिकी दूतावास को बंद कर दुनिया को झटका दिया
👉 “Death to America” सिर्फ एक नारा नहीं, एक वैचारिक प्रतिरोध बन गया
आज 2025 में, उसी क्रांति की जड़ें इतनी मज़बूत हो चुकी हैं कि अमेरिका को G7 जैसी मंचों पर भी ईरान का डर सता रहा है।
📉 क्या अमेरिका अब वैसा सुपरपावर नहीं रहा?
- अफगानिस्तान से शर्मनाक वापसी
- इराक में शासन परिवर्तन के बावजूद अस्थिरता
- गाजा में इज़राइल का समर्थन कर मानवाधिकारों का मखौल
- यूक्रेन संकट को हल करने में असमर्थता
अब सवाल यह नहीं है कि अमेरिका क्यों भागा —
सवाल यह है कि उसकी साख क्यों घटी?
💬 विश्लेषकों की राय: ट्रंप की वापसी डर का संकेत
राजनयिक विशेषज्ञों का कहना है:
“ट्रंप को G7 छोड़कर अमेरिका लौटना पड़ा क्योंकि ईरान का प्रतिरोध अब सिर्फ ‘बयानबाज़ी’ नहीं, बल्कि रणनीतिक हकीकत बन गया है।”
“G7 के मंच पर रहकर भी जब कोई नेता खुद को सुरक्षित महसूस न करे, तो यह सिर्फ उसकी नहीं, पूरी पाश्चात्य नीति की हार है।”
🔥 आज का ईरान: न झुकने वाला, न रुकने वाला
- सैटेलाइट, ड्रोन, मिसाइल, साइबर डिफेंस में स्वदेशी तकनीक
- अर्थव्यवस्था पर अमेरिका के 40 साल के प्रतिबंधों के बावजूद आत्मनिर्भरता
- आयतुल्लाह खामेनेई और शहीद कासिम सुलेमानी जैसे लीडर्स के नेतृत्व में ‘वैचारिक युद्ध’
- ग्लोबल साउथ (India, Africa, Latin America) में बढ़ता समर्थन
✊ नया इतिहास बन रहा है…
अब “सुपरपावर” वो नहीं जो बम गिराए,
बल्कि वो है जो मज़लूमों के लिए खड़ा हो।
अब G7 जैसे मंच खोखले हो चुके हैं। असली ताक़त उन देशों के पास है, जो अन्याय के खिलाफ अपने हक़ पर अड़े हुए हैं।
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