✍️ सैयद रिज़वान मुस्तफा
🌍 दुनिया का एक सख्त नियम है: कमज़ोर को ठोकर मिलती है।
लेकिन क्या ये कमजोरी टाई, लैपटॉप और अंग्रेज़ी भाषा से दूर रहना है? या वो कमजोरी है जो आत्मा, ईमान और चरित्र से समझौता करके पाई जाती है?
कभी-कभी इतिहास का सबसे बड़ा धोखा “प्रगति” के नाम पर बौद्धिक आत्मसमर्पण होता है। जस्टिस काटजू साहब, आपने ईरान जैसे देश को “पिछड़ा”, “जाहिल”, “गांव का मौलवी” कहकर जिस हिकारत से देखा है, वही दरअसल आपके पश्चिम-पूजक चश्मे की धुंधली सोच है।
🕋 जब हराम को हराम कहना क्रांति बन जाए: ईरान की तहज़ीबी इंकलाब
जब पूरी दुनिया नैतिक पतन और पूंजीवादी स्वार्थ में डूबी हुई थी, तब सबसे पहले इमाम रुहुल्लाह खुमैनी ने डंके की चोट पर कहा –
“हराम, हराम है – चाहे कोई भी करे।”
- शराब, जुआ, अश्लीलता, बेहयाई – इनके खिलाफ़ सबसे मज़बूत आवाज़ ईरान से उठी।
- इज्ज़त को तिजारत नहीं बनने दिया गया।
- औरत को हिजाब में कैद नहीं, इज्जत और इख़्तियार के साथ संसद, विज्ञान, फौज और तिब्ब में दाख़िल किया गया।
यह वो मुल्क बना जहां इज्ज़त बिकती नहीं, महफूज़ होती है।
आज अमेरिका, तुर्की, इस्राइल जैसे मुल्कों में इज्ज़त बिकती है, लेकिन ईरान में “इज्ज़त” हिजाब, हया और हक़ के क़ानून में breathing करती है।
⚛️ ईरान: मज़लूमों की आवाज़, मज़हब के साथ विज्ञान का संगम
- पूरी दुनिया की पाबंदियों के बावजूद, ईरान ने ड्रोन, मिसाइल, सैटेलाइट, मेडिकल रिसर्च में खुद को सिद्ध किया।
- आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इमाम खुमैनी के मिशन को परवान चढ़ाया, और दुनिया को दिखा दिया:
“मजहब कोई रुकावट नहीं, बल्कि मार्गदर्शक भी हो सकता है।”
आज ईरान टैक्सीलाब नहीं, एक्सीलेंस का नाम है – जहां मौलवी सिर्फ मिम्बर पर नहीं, माइक्रोस्कोप और मशीनों के साथ भी है।
🤡 “Village idiot” कहना आपकी मानसिक दरिद्रता है, काटजू साहब
आपने आयतुल्लाह को गांव का जाहिल कहा। क्या आपको गांव से सिर्फ गंवारपन दिखता है?
- इसी गांव में गांधी ने सत्याग्रह सीखा था।
- भगत सिंह का बचपन खेतों में लहू का मतलब समझते हुए बीता।
- और ईरान का “मौलवी” गांव से निकलकर ज़ालिम सत्ताओं के सामने मज़लूमों की सबसे बड़ी ढाल बन गया।
ये ‘जाहिल’ ही थे जिन्होंने अमेरिका को बार-बार झुकाया, और अरब तानाशाहों की नीयत पर शिकंजा कसा।
🧠 असल पिछड़ापन क्या है?
- क्या पाकिस्तान की तरक्की रुक गई क्योंकि वो “इस्लामी गणराज्य” है या क्योंकि वहां के नेता चरित्रहीन और अज्ञानी हैं?
- क्या तुर्की की गिरावट इसलिए आई क्योंकि अतातुर्क ने दीन मिटा दिया था?
- क्या भारत इसलिए गरीब बना क्योंकि अंग्रेज़ आधुनिक थे, या इसलिए क्योंकि हमने आत्मसम्मान खो दिया था?
असल पिछड़ापन तब होता है जब राष्ट्र अपना ज़मीर, अपनी तहज़ीब और अपनी ज़बान बेच दे।
📜 “भारत-पाक-बांग्लादेश एक हों” – तो चरित्र की बुनियाद पर हों
काटजू साहब, आपने कहा कि हमें एक होना चाहिए — बिलकुल, लेकिन सवाल यह है कि किन मूल्यों पर?
- क्या हम उस “एकता” की ओर बढ़ें जहां इज्ज़त बिकती हो, लाइव-इन गर्व का मुद्दा हो, और रिश्ते पॉर्नोग्राफी में बदल दिए जाएं?
- या फिर उस ईरानी मॉडल की तरह – जहां हया, हिम्मत, और हकीकत साथ-साथ चलें?
अगर हमें वाकई आधुनिक बनना है, तो हमें तकनीक जापान से, चरित्र ईरान से और इरादा गांधी से लेना होगा।
ईरान को मत कोसिए काटजू साहब, उससे सीखिए।
- जब पूरी दुनिया चुप थी, ईरान बोला।
- जब सब बिक गए, ईरान डटा रहा।
- और जब “आधुनिक” कहे जाने वाले देश इज्ज़त और हया बेचकर विकास खरीदते हैं, तब ईरान ने इज्ज़त के साथ आत्मनिर्भरता को गले लगाया।
** इमाम खुमैनी और रहबर आयतुल्लाह खामेनेई वो नाम हैं जिन्हें इतिहास गालियाँ नहीं, सलाम देगा।** और जो लोग आज उन्हें ‘जाहिल’ कह रहे हैं, कल उन्हीं की मज़ारों पर खुद के बच्चों को दुआएं मांगते देखा जाएगा।
✍️ सैयद रिज़वान मुस्तफा
संपादक – तहलका टुडे
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