तहलका टुडे टीम/मोहम्मद हैदर,अली मुस्तफा
21 रमज़ान की तारीख़, एक ऐसी सुबह लेकर आती है, जब कायनात का हर जर्रा ग़मगीन हो जाता है। यह वो रात थी, जब कायनात का इमाम इस दुनिया से रुखसत हो गया, मस्जिद-ए-कूफ़ा का मिंबर सुना हो गया, जब ज़मीन ने सबसे बड़े इंसाफ़ के पैरोकार का लहू देखा, और जब आसमान ने एक ऐसा मंज़र देखा कि सदियों तक उसकी सिसकियां थमने का नाम नहीं ले रही है।
मौलाए कायनात हज़रत अली (अ), जिनकी ज़िंदगी का हर लम्हा इंसाफ़, तक़वा, इल्म और इबादत से भरा था, उन्हें सज्दे की हालत में ज़हर बुझी तलवार से शहीद कर दिया गया। लेकिन यह तलवार सिर्फ़ उनके जिस्म को ज़ख्मी कर पाई, उनके किरदार और उनके पैग़ाम को नहीं।
उस रात, जब मौला का लहू मस्जिद-ए-कूफ़ा की मिट्टी में मिला, तो ऐसा लगा मानो पूरी कायनात ग़म में डूब गई।
💧 मस्जिद-ए-कूफ़ा में मौला का आख़िरी सज्दा
19 रमज़ान की रात, मौला अली (अ) हमेशा की तरह मस्जिद-ए-कूफ़ा में नमाज़ के लिए आए। उनके चेहरे पर हमेशा की तरह सुकून और रूहानियत का नूर था।
- जैसे ही उन्होंने सज्दे में सिर रखा, कायर और मक्कार अब्दुर्रहमान इब्ने मुल्जिम ने ज़हर में बुझी तलवार से हमला कर दिया।
- मौला की पेशानी से लहू टपकने लगा, मस्जिद की मिट्टी लाल हो गई।
- मगर मौला के लबों पर कोई चीख़ नहीं थी, बल्कि सिर्फ़ ये सदा थी:
“रब्बे काबा की क़सम, मैं कामयाब हो गया!” - वो अली (अ), जिन्होंने पूरी ज़िंदगी इंसाफ़ का पैग़ाम दिया, उन्होंने इबादत में ही अपनी जान कुर्बान कर दी।
🌑 कायनात ने किया मौला का मातम
21 रमज़ान की रात, जब मौला अली (अ) दुनिया से रुख़सत हुए, तो सिर्फ़ इंसान नहीं, बल्कि पूरी कायनात ने मातम किया।
- आसमान का सुबह का रंग सुर्ख़ हो गया, जैसे सूरज भी मौला अली (अ) के ग़म में रो रहा हो।
- हवाएं सिसकियों की तरह चल रही थीं, जैसे मौला की जुदाई पर अफ़सोस कर रही हों।
- चिड़ियों की बेचैन आवाज़, जैसे वो भी मौला के ग़म में रो रही थीं।
- ज़मीन पर हर गली, हर बस्ती, हर चौक पर “या अली मौला, हैदर मौला” की सदाएं गूंज रही थीं।
🌍 दुनिया भर में गूंजा “या अली मौला, हैदर मौला”
इराक़ के कर्बला और नजफ़ में लाखों अज़ादार काले लिबास में सड़कों पर निकले।
- हर लब पर बस एक ही सदा थी:
“या अली मौला, हैदर मौला!” - ईरान, पाकिस्तान, लेबनान, सीरिया और अफ़ग़ानिस्तान में मस्जिदें और इमामबारगाहें अज़ादारों से भर गईं।
- हर गली, हर चौक, हर बस्ती में मौला अली (अ) का ग़म मनाया गया।
- ताबूत की ज़ियारत के लिए लाखों हाथ उठे, हर आंख नम थी, हर दिल ग़मज़दा था।
🇮🇳 भारत में भी ग़म-ए-अली (अ) का मंज़र
भारत के कोने-कोने में 21 रमज़ान का मातम हर गली, हर इमामबारगाह और मस्जिद में मनाया गया।
- लखनऊ की गलियों में “या अली मौला, हैदर मौला” की सदाएं गूंजती रहीं। आज़ादार उमड़ पड़े,
- बाराबंकी में ताबूत की ज़ियारत के लिए सड़कों पर अज़ादार निकल पड़े।
- नई दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और जयपुर में भी मजलिसों और जुलूसों का सिलसिला जारी रहा।
- जोगीराम पूरा,कानपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ और मुज़फ्फरनगर में हजारों अज़ादार सड़कों पर मातम कर रहे थे।
- हैदराबाद की सड़कों पर लाखों अज़ादारों ने मौला का मातम किया।
💖 मौलाए कायनात का ग़म: सिर्फ़ आंसू नहीं, अमल भी हो
21 रमज़ान का ग़म सिर्फ़ आंसू बहाने का नाम नहीं है, बल्कि मौला अली (अ) के किरदार को अपनाने का पैग़ाम है।
- अगर हम उनकी शहादत का मातम करें, मगर उनकी तालीमात को न अपनाएं, तो यह मोहब्बत अधूरी है।
- मौला ने फ़रमाया:
- “ज़ालिम के ख़िलाफ़ खड़े हो जाओ, और मज़लूम का साथ दो।”
- “यतीमों और गरीबों का हक़ अदा करो।”
- “सच्चाई को पकड़ो और झूठ से दूर रहो।”
- अगर हम मौला के बताए रास्ते पर न चलें, तो हमारा मातम सिर्फ़ रस्म बनकर रह जाएगा।
💡 मातम के साथ अमल भी ज़रूरी
21 रमज़ान सिर्फ़ आँसुओं का दिन नहीं है, बल्कि हमारे अमल का इम्तिहान है।
- क्या हम गरीबों का सहारा बनते हैं?
- क्या हम ज़ालिमों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं?
- क्या हम वक्फ़ की हिफ़ाज़त करते हैं?
- अगर हम सिर्फ़ मातम करें, मगर उनके बताए रास्ते पर न चलें, तो हमारा ग़म अधूरा है।
💔 मौलाए कायनात का पैग़ाम: इंसाफ़ और मोहब्बत का रास्ता
मौलाए कायनात का ग़म वही सच्चा ग़म है, जो हमारी ज़िंदगी को बदल दे।
- अगर हमने आंसू बहाए, मगर अमल न किया, तो हमने मौला अली (अ) के ग़म से धोखा किया।
- “अली (अ) का ग़म वही है, जो तुझे इंसाफ़ का पैरोकार बना दे, वरना तूने सिर्फ़ रस्म निभाई है।”
🌿 “या अली मौला, हैदर मौला”
यह सिर्फ़ एक सदा नहीं, बल्कि इंसाफ़, मोहब्बत और इंसानियत का पैग़ाम है, जो हमेशा इस कायनात में गूंजता रहेगा।
- मौला अली (अ) का ग़म हमें मज़लूम का साथ देने और ज़ालिम के ख़िलाफ़ खड़े होने का हौसला देता है।
- उनके किरदार का नूर हमेशा इंसानियत को रोशन करता रहेगा।
🌿 “या अली मौला, हैदर मौला!” 💔