पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली मुसलमानो में बेपर्दगी, बेहयाई और इस्लामी शरीयत को तार तार करने के लिए हुए एक जुट,बना चर्चा

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पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली मुसलमानो में बेपर्दगी, बेहयाई और इस्लामी शरीयत को तार तार करने के लिए हुए एक जुट,बना चर्चा

तहलका टुडे टीम/सैयद रिजवान मुस्तफा

लखनऊ:इस्लाम एक ऐसा मजहब है जो न केवल आध्यात्मिकता बल्कि सामाजिक मर्यादा और नैतिकता का भी मार्गदर्शन करता है। पर्दा और हिजाब इस्लामी संस्कृति और धार्मिक शरायत का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो समाज में शालीनता, आत्म-सम्मान और सुरक्षा की नींव रखते हैं। परंतु आज के दौर में, कुछ तथाकथित धार्मिक नेता, जो इस्लामी समाज के मार्गदर्शक होने का दावा करते हैं, शरियत और कुरान के स्पष्ट निर्देशों की अनदेखी करते हुए समाज को बेहयाई और बेपर्दगी की ओर ले जा रहे हैं।  आज रात में, लखनऊ में एक मुस्लिम परिवार में शादी के दौरान, जहाँ पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और अन्य प्रमुख हस्तियां मौजूद थीं, दुल्हन और मेहमान बेपर्दा थे। और निकाह पढ़ाने वाले मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली जैसे व्यक्ति ने इस स्थिति पर कोई आपत्ति नहीं जताई, बल्कि बेपर्दगी को बढ़ावा देते हुए निकाह पढ़ा और न महरमो के साथ खड़े होकर तनकर फोटो भी खिंचाई।

और इसको अखिलेश यादव ने अपने x हैंडल और फेस बुक पर वायरल कर बेहयाई बेपर्दगी के चलन को प्रमोट किया

https://x.com/yadavakhilesh/status/1881740028759695802?t=qdlSHPOaD3za9-0DIFpOSw&s=19

यह एक चिंताजनक स्थिति है, जो इस्लामी समाज के नैतिक पतन और धार्मिक मूल्यों की अनदेखी का संकेत देती है।वो भी एक मौलाना और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की साजिश से।

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इस्लाम में पर्दा और हिजाब की अहमियत

कुरान और पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने साफ तौर पर हिजाब और पर्दे की अहमियत पर जोर दिया है।

1. कुरान में हिजाब के निर्देश

सूरह-अन-नूर (24:31) में अल्लाह तआला फरमाता है:
“और ईमान वाली औरतों से कहो कि वह अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी शर्मगाह की हिफ़ाज़त करें और अपनी ज़ीनत (सौंदर्य) को न दिखाएं सिवाय जो ज़ाहिर हो। और वह अपनी ओढ़नी अपने सीने पर डालें।”

सूरह-अल-अहज़ाब (33:59) में अल्लाह फरमाता है:
“ऐ नबी! अपनी बीवियों, बेटियों और मुसलमान औरतों से कह दो कि वह अपने ऊपर अपनी चादरें डाल लिया करें।”

2. पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की शिक्षाएं

रसूलुल्लाह ने फरमाया: “औरत पूरी की पूरी पर्दे में रहने के काबिल है।”

आपने यह भी फरमाया: “जो औरत बिना पर्दे के बाहर निकलती है, वह शैतान के करीब हो जाती है।”

3. अहले बैत और हदीस की शिक्षा

हज़रत फातिमा (अ.स) ने पर्दे की अहमियत को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाया। उन्होंने फरमाया: “औरत की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि वह न गैर मर्द को देखे और न गैर मर्द उसे देखे।”

समाज में बढ़ती बेहयाई और मौलवियों की जिम्मेदारी

आज के दौर में, मुस्लिम समाज में शादियों और अन्य सामाजिक समारोहों में जिस तरह से बेपर्दगी और गैर-इस्लामी रीति-रिवाज बढ़ रहे हैं, वह बेहद चिंता का विषय है।

1. शादी में बेपर्दगी

मुस्लिम शादियों में आजकल दुल्हनें खुले सिर और बिना हिजाब के नजर आती हैं। उनका मेकअप और पहनावा इस्लामी सादगी के बजाय पश्चिमी सभ्यता को दर्शाता है।

रिश्तेदार और मेहमान भी इस्लामी परंपराओं को नजरअंदाज करते हुए फिजूलखर्ची और दिखावे में लिप्त रहते हैं।

2. मौलवियों का दायित्व

निकाह पढ़ाने वाले मौलवियों की जिम्मेदारी होती है कि वे शरियत और इस्लामी शिक्षाओं को अमल में लाने के लिए जागरूकता फैलाएं।

परंतु जब खुद मौलवी बेपर्दगी और शरियत के खिलाफ हरकतों का समर्थन करते हैं या चुप रहते हैं, तो यह समाज में इस्लामी मूल्यों के क्षरण को बढ़ावा देता है।

लखनऊ का मामला: समाज के लिए सबक

लखनऊ में हुए इस आयोजन में मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली की उपस्थिति और उनका निकाह पढ़ाना यह दर्शाता है कि कुछ धार्मिक नेताओं ने अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है। इस्लामी समाज को यह सोचने की जरूरत है कि क्या ऐसे लोग हमारे धार्मिक और सामाजिक मार्गदर्शक बनने के काबिल हैं।

समाज को नसीहत: अपनी राह पर लौटें

1. पर्दे की अहमियत समझें

मुस्लिम समाज को चाहिए कि वह अपनी आने वाली पीढ़ियों को हिजाब और पर्दे की अहमियत सिखाए।
माएं और बहनें खुद पर्दे का पालन करें और अपने बच्चों को इस्लामी शिक्षाओं के साथ बड़ा करें।

2. मौलवियों से सवाल करें

समाज को ऐसे धार्मिक नेताओं से सवाल करना चाहिए जो शरियत और कुरान के आदेशों की अनदेखी करते हैं।
सही इस्लामी मार्गदर्शन के लिए उन आलिमों की ओर रुख करें जो कुरान और सुन्नत के मुताबिक चलने वाले हैं।

3. शादी समारोहों को इस्लामी बनाएं

शादियों में बेपर्दगी, फिजूलखर्ची और गैर-इस्लामी रीति-रिवाजों से बचें।
दुल्हन और रिश्तेदारों को हिजाब और इस्लामी लिबास अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें।

मौलाना इफ्तिखार हुसैन इंकलाबी कहते है कि इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो शालीनता, मर्यादा और नैतिकता पर आधारित है। पर्दा केवल एक कपड़े का टुकड़ा नहीं, बल्कि एक औरत की पहचान, इज्जत और सम्मान का प्रतीक है। यदि आज के समाज में मौलाना और धार्मिक नेता खुद शरियत की अनदेखी करते हैं, तो हमें उनके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। यह वक्त है अपनी गलतियों को सुधारने का, इस्लामी शिक्षाओं पर लौटने का और अपनी पीढ़ियों को कुरान और सुन्नत के सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने का।

अल्लाह हमें इस्लाम की सच्ची राह पर चलने की तौफीक दे।

 

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