“मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर से गुंजा भारत का जुगाड़: फिंगरप्रिंट क्लोनिंग ने हिला दी दुनिया, पर क्या इस प्रतिभा को सलाम मिलेगा या सलाखें?”

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तहलका टुडे विशेष रिपोर्ट

दैनिक भास्कर की खोज पर आधारित https://dainik.bhaskar.com/qQnuTxf74Sb  राष्ट्र-हित में विश्लेषणात्मक लेख

जब विश्व की महाशक्तियाँ अरबों डॉलर की बायोमेट्रिक सुरक्षा पर निर्भर थीं, तब उत्तर प्रदेश के एक साधारण शहर — गोरखपुर — से एक देसी जुगाड़ ने वो कर दिखाया, जिसकी कल्पना तक विदेशी विशेषज्ञ नहीं कर सके।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि मानी जाने वाली इस नगरी से निकला एक फिंगरप्रिंट क्लोनिंग तकनीक का मामला अब सिर्फ अपराध नहीं, बल्कि एक राष्ट्रव्यापी तकनीकी चेतावनी बन चुका है।

जुगाड़ या जीनियस? गोरखपुर से उठी अंगूठे की चोट ने खोली आंखें

दैनिक भास्कर की खोजी रिपोर्ट के मुताबिक, गोरखपुर के एक युवक ने हजारों सिलिकॉन फिंगरप्रिंट क्लोन तैयार कर सरकारी योजनाओं, बैंकिंग प्रणाली और आधार आधारित सेवाओं की सुरक्षा को छलनी कर दिया। बिना किसी विदेशी लैब, प्रशिक्षण या कोडिंग डिग्री के, एक स्थानीय जुगाड़बाज़ ने बायोमेट्रिक सिस्टम की सबसे बड़ी कमजोरी को उजागर कर दिया।

कहानी का दूसरा पक्ष: जुर्म नहीं, तकनीकी दक्षता का प्रतीक

दुनिया के विकसित देशों में ऐसे युवाओं को व्हाइट हैट हैकर कहकर सम्मान मिलता है। उन्हें सेना, साइबर यूनिट्स या रिसर्च फर्मों में लीडरशिप की भूमिकाएं दी जाती हैं।
भारत में, अफसोस की बात है कि यही प्रतिभाएं धोखाधड़ी, फ्रॉड और साइबर क्राइम के मामलों में फंसा दी जाती हैं।

क्या यह केवल एक अपराध है?
या फिर यह हमारे सिस्टम का आइना है — जिसमें बायोमेट्रिक टेक्नोलॉजी की नींव ही कमजोर है?

जुगाड़: भारत की पहचान, जिसे दिशा चाहिए अपराध नहीं

भारत की मिट्टी से निकली जुगाड़ तकनीक कोई नई बात नहीं। 1975 में बिना अमेरिका के सहयोग के हमने पहला सैटेलाइट ‘आर्यभट्ट’ लॉन्च किया, 2014 में ‘मंगलयान’ दुनिया का सबसे सस्ता मंगल मिशन बना, और 2023 में ‘चंद्रयान-3’ ने दुनिया को भारत की स्पेस काबिलियत पर भरोसा दिलाया।

तो फिर गोरखपुर की यह खोज — जो हमारी डिजिटल संरचना की सबसे बड़ी खामी को उजागर करती है — अपराध कैसे है?

भारत बनाम बाज़ार की लड़ाई: आत्मनिर्भर दिमागों से डर क्यों?

विश्व बाजार नहीं चाहता कि भारत अपने इनोवेशन से स्वतंत्र हो। इसलिए हमारे युवा जब कुछ बड़ा कर दिखाते हैं — तो या तो उन्हें कानूनी झमेले में उलझा दिया जाता है, या फिर अनदेखा कर दिया जाता है।
हमारे हीरो, हमारे दुश्मन बना दिए जाते हैं — सिर्फ इसलिए कि हमने उन्हें समझा नहीं।

क्या करें अब? सुझाव जो देश को सुरक्षा और सम्मान दोनों दे सकते हैं:

1. राष्ट्रीय तकनीकी सतर्कता आयोग (National Technical Vigilance Commission) बनाया जाए जो तकनीकी खामियों को उजागर करने वालों को संरक्षण और मार्गदर्शन दे।

2. जुगाड़ से समाधान निकालने वाले युवाओं को इथिकल हैकर स्कीम के तहत प्रशिक्षित कर साइबर सुरक्षाकर्मी बनाया जाए।

3. गोरखपुर, मेरठ, पटना, इंदौर जैसे शहरों में “जुगाड़ टेक्नोलॉजी हब” बनाए जाएं — जहां इनोवेशन को दिशा दी जाए, दबाया न जाए।

4. बायोमेट्रिक सिस्टम में मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन लागू हो, जिससे क्लोनिंग को निष्क्रिय किया जा सके।

5. टेक्नोलॉजी अपराधों के मामलों में पुनः विचार की प्रक्रिया (Reassessment Panel) हो, जहां ऐसे मामलों को नवाचार की दृष्टि से भी देखा जाए।

सलाखें नहीं, सलाम का हक़दार है ये जुगाड़

जब कोई नौजवान महज़ 2,000 रुपए की डिवाइस से अरबों डॉलर की सुरक्षा प्रणाली को चुनौती दे सकता है, तो सोचिए अगर उसे सरकार की मंजूरी, मार्गदर्शन और मंच मिल जाए — तो वह भारत को साइबर सुरक्षा का सुपरपावर बना सकता है।

यह अपराध नहीं, अवसर है — इसे पहचाना जाए

गोरखपुर से निकला यह मामला केवल तकनीकी उल्लंघन नहीं, एक राष्ट्रीय आईना है — जिसमें हम अपनी व्यवस्था, सुरक्षा और सोच को देख सकते हैं।
अब यह भारत सरकार, समाज और टेक्नोलॉजी नीति-निर्माताओं पर है कि वो इस प्रतिभा को दबाएं नहीं, दिशा दें।

> जिंदाबाद उस भारत का, जो जुगाड़ से जीनियस बनने की राह पर चल पड़ा है। और धिक्कार उस व्यवस्था पर, जो प्रतिभा को अपराध बना देती है।

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